3 सीएम, 4 सरकारें और 5 साल के इंतजार के बाद मिले PSC के नियुक्ति पत्र, फिर भी कोर्ट में केस, कैसे बनेंगे चयनित अधिकारी?
MPPSC: मध्य प्रदेश के रवींद्र भवन में एक के बाद एक चयनित अधिकारी अपना नियुक्ति पत्र ले रहे थे. सभाकार में तालियां बज रही थी, परिवार भावुक था. पांच साल बाद उनके बच्चे की मेहनत रंग लाई और सीएम मोहन यादव ने PSC के नियुक्ति पत्र बांटे. लेकिन अब उन अभ्यर्थियों के दर्द को भी जनिए जो कि आरक्षण की स्पष्ट स्थिति ना होने का कारण नियुक्ति पत्र नहीं पा सके. उनकी कोर्ट में लड़ाई जारी है और उन्होंने इस नियुक्ति प्रक्रिया के खिलाफ याचिका भी दर्ज करवा दी है. दरअसल 2019 PSC के सिर्फ 87 प्रतिशत छात्रों को ही नियुक्ति दी गई है, बाकी 13 प्रतिशत को आरक्षण की स्थिति स्पष्ट ना होने के चलते रोक दिया गया है.
पहली बार PSC की नियुक्ति पत्र बांटे गए
मध्यप्रदेश में MPPSC के चयनित अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र बांटने का रिवाज इससे पहले नहीं रहा है. गुरूवार को सीएम यादव नें 559 से अधिक अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र दिए हैं. मगर इस पत्र के आने से पहले ही राज्यसेवा 2019 की परीक्षा देने वाले उन अभ्यर्थियों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, जो कि उन 13 प्रतिशत में आते है जिनका रिजल्ट आरक्षण को लेकर रोक दिया गया है.
याचिका में कहा गया है कि PSC ने प्रोविजनल रिजल्ट घोषित किया है. ऐसे में नियुक्त नहीं दी जा सकती है. ये मामला SC और HC दोनों में लंबित है. याचिका में कहा गया है कि परीक्षाओं में 13 प्रतिशत जो आरक्षण बढ़ाया गया है, उन पर किस कैटेगरी में नियुक्तियां होगी ये स्थिति स्पष्ट नहीं है. PSC ने फिलहाल बढ़े हुए 13 प्रतिशत आरक्षण की सीटों को होल्ड करते हुए 87 प्रतिशत सीटों पर ही रिजल्ट घोषित किया है.
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PSC के पूरे विवाद को समझें
1. 12 जनवरी साल 2020 को MPPSC-2019 की प्री-परीक्षा अयोजित की गई थी. उस वक्त राज्य में कांग्रेस की सरकार थी और सीएम कमलनाथ थे. मगर सरकारी भर्तियों में कमलनाथ सरकार ने OBC समाज को 23 जुलाई 2019 को 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी आरक्षण करने का विधेयक पास किया था.
2. मेंस की परीक्षा होती उससे पहले 23 जुलाई 2020 को कमलनाथ सरकार गिर गई और नए सीएम शिवराज सिंह चौहान बने. शिवराज सरकार ने भी इसी आरक्षण को आगे बढ़ाने का फैसला लिया. जिसके बाद मध्यप्रदेश के आरक्षण की स्थिति 50 से बढ़कर 73 फीसदी हो गई. एमपी में नए आरक्षण बदलाव के तहत 16 प्रतिशत SC, 20 प्रतिशत ST, 27 प्रतिशत ओबीसी और 10 प्रतिशत EWS को दिया गया है.
3. मध्यप्रदेश सरकार के फैसले को थोड़ा 1992 के इंदिरा साहनी केस को समझें, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 50 प्रतिशत से ज्यादा राज्य नौकरी में आरक्षण ना दें. सिर्फ आरक्षण अनुच्छेद 15 (4), 15 (5), 16 (4) में वर्णित लोगों पर लागू होगा. इसका मतलब है कि 50 प्रतिशत की सीमा ST, SC और OBC पर ही लागू होगी. इसे समय-समय पर घटाया या बढ़ाया जा सकता है.
4. पहली बार मुख्य परीक्षा 21 से 26 मार्च 2021 तक हुई थी. रिजल्ट जारी होने के बाद 1918 उम्मीदवार इंटरव्यू के लिए चयनित हुए. इस बीच भर्ती नियम पर कोर्ट के आदेश के बाद PSC ने पुराना रिजल्ट निरस्त कर फिर से मुख्य परीक्षा करवाने का ऐलान कर दिया था.
5. MPPSC ने आरक्षण के बढ़ते विवाद को लेकर सिर्फ 87 प्रतिशत अभ्यार्थियों का रिजल्ट घोषित किया है. बाकी 13 प्रतिशत को रोक दिया. बता दें कि पहली बार पीएससी ने किसी रिजल्ट के साथ प्रोविजनल (प्रावधिक) चयन सूची लिखकर उसे अंडर लाइन किया है. ऐसे में अभ्यार्थियों की मांग है कि जब तक रिजल्ट प्रोविजनल है तो किस आधार पर नियुक्तियां दी गई. आपको बता दें कि लंबे समय से मध्यप्रदेश की कई परीक्षाओं में आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाएं जाने के चलते नियुक्ति की प्रक्रिया रूकी हुई थी.