महाकुंभ जाने वाले श्रद्धालुओं को ‘लूट’ रही हैं एयरलाइन कंपनियां! फ्लाइट्स के आसमान छूते किराए ने बढ़ाई चिंता, DGCA का निर्देश भी बेअसर

जैसे ही किराए में इस बेतहाशा वृद्धि की खबरें सामने आईं, यह मुद्दा राजनीतिक रूप से भी गरमा गया. आम आदमी पार्टी के सांसद राघव चड्ढा ने इसे श्रद्धालुओं की आस्था का मजाक करार दिया. उन्होंने कहा, "जो किराया पहले 5,000-8,000 रुपये के बीच था, वही अब 50,000-60,000 रुपये तक पहुंच गया है.
प्रतीकात्मक तस्वीर

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Maha Kumbh 2025: दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक मेले महाकुंभ में हर बार लाखों लोग अपनी आस्था और श्रद्धा लेकर संगम के तट पर पहुंचते हैं. लेकिन इस बार महाकुंभ का ये सफर किसी और ही वजह से चर्चा में है. जब आस्था की बात हो, तो कोई भी यात्रा कठिन नहीं लगती, लेकिन जब किराए इतने बढ़ जाएं कि जेबें जवाब दे दें, तो क्या होगा? 12 साल में एक बार होने वाला यह भव्य महाकुंभ मेला आयोजित होने से पहले श्रद्धालुओं से सस्ती यात्रा का वादा किया गया था, लेकिन इस बार महाकुंभ का पवित्र जल इतना महंगा हो गया है कि यात्रा के लिए पहले से ज्यादा सोचने की जरूरत है. जी हां, हवाई किराए की बढ़ती कीमतों के कारण एक बड़ा आर्थिक संकट भी बन गया है.

श्रद्धालुओं के लिए नई परेशानी

29 जनवरी को होने वाली मौनी अमावस्या, महाकुंभ का सबसे प्रमुख स्नान दिवस है, जब लाखों श्रद्धालु संगम के तट पर पवित्र स्नान करने के लिए पहुंचेंगे. इस मौके पर हवाई किराए ने एक नई परेशानी खड़ी कर दी है. 28 जनवरी तक यदि आप चेन्नई से प्रयागराज का हवाई टिकट लेना चाहते हैं, तो आपको 53,000 रुपये से अधिक खर्च करने पड़ेंगे. इसी तरह, दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद और बेंगलुरु से भी किराए 47,000 रुपये के ऊपर जा पहुंचे हैं. यह किराया सामान्य दिनों से कई गुना अधिक है, और यह उन श्रद्धालुओं के लिए एक बड़ा वित्तीय संकट बन चुका है.

DGCA की अपील भी नहीं मान रही हैं एयरलाइंस कंपनियां

नागरिक उड्डयन महानिदेशक (DGCA) ने 23 जनवरी को एयरलाइंस कंपनियों के साथ बैठक की और उनसे फ्लाइट्स बढ़ाने और किराए को युक्तिसंगत बनाने का आग्रह किया था. इसके बाद 81 अतिरिक्त उड़ानों की मंजूरी दी गई, जिससे प्रयागराज के लिए कुल फ्लाइट्स की संख्या 132 हो गई. फिर भी, किराए में कोई कमी नहीं आई. यह दिखाता है कि एयरलाइंस कंपनियां यात्रियों की जरूरतों से ज्यादा अपने मुनाफे को प्राथमिकता दे रही हैं.

श्रद्धा का मोल!

जैसे ही किराए में इस बेतहाशा वृद्धि की खबरें सामने आईं, यह मुद्दा राजनीतिक रूप से भी गरमा गया. आम आदमी पार्टी के सांसद राघव चड्ढा ने इसे श्रद्धालुओं की आस्था का मजाक करार दिया. उन्होंने कहा, “जो किराया पहले 5,000-8,000 रुपये के बीच था, वही अब 50,000-60,000 रुपये तक पहुंच गया है. यह श्रद्धालुओं के साथ अन्याय है और सरकार को इस पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए.”

महाकुंभ, एक ऐसा आयोजन है जो केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है. यह अवसर देशभर से लाखों लोगों को एक जगह एकत्र करता है, जहां वे अपनी आस्था और विश्वास को पुनः मजबूत करते हैं. लेकिन जब यात्रा महंगी हो जाती है, तो क्या यह उन लाखों श्रद्धालुओं के लिए एक चुनौती नहीं बन जाती, जो अपनी जिंदगी में इस एक अवसर को पाने के लिए वर्षों से इंतजार कर रहे होते हैं?

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श्रद्धा की बढ़ती कीमत

यह जरूरी है कि सरकार और एयरलाइंस कंपनियां इस पवित्र अवसर का लाभ श्रद्धालुओं के आस्था और श्रद्धा से कम, केवल मुनाफे के रूप में न लें. श्रद्धालुओं को महाकुंभ में भाग लेने के लिए अपनी मेहनत की कमाई खर्च करने के लिए मजबूर करना एक गंभीर चिंता का विषय है.

महाकुंभ की यात्रा में केवल आस्था और भक्ति का मेल नहीं होता, बल्कि यह समाज के विभिन्न तबकों के लोगों के संघर्ष का भी प्रतीक है. जब धर्म और आस्था के इस सबसे बड़े आयोजन के दौरान आर्थिक बोझ बढ़ जाता है, तो यह सवाल उठता है कि क्या हम इस पवित्र यात्रा को केवल कुछ चुनिंदा लोगों तक ही सीमित कर देंगे?

महाकुंभ, चाहे 12 साल में एक बार होता हो, लेकिन इसकी भव्यता और महिमा हर श्रद्धालु के दिल में हमेशा के लिए बस जाती है. अब यह देखना होगा कि सरकार और एयरलाइंस कंपनियां इस समस्या का समाधान किस तरह करती हैं, ताकि यह आस्था यात्रा हर किसी तक पहुंच सके, न कि केवल उन तक जिनकी जेब में गहरे खजाने हों.

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