Vistaar News|फोटो गैलरी|Janmashtami 2025: ‘महाकाल की नगरी’ से है भगवान कृष्ण का खास कनेक्शन, यहीं सीखी थीं 64 दिनों में 64 कलाएं, जानें पूरी कहानी
Janmashtami 2025: ‘महाकाल की नगरी’ से है भगवान कृष्ण का खास कनेक्शन, यहीं सीखी थीं 64 दिनों में 64 कलाएं, जानें पूरी कहानी
Janmashtami 2025: इस साल भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव यानी जन्माष्टमी का पर्व 16 अगस्त को देश भर में मनाया जाएगा. यूं तो श्रीकृष्ण का जिक्र होते ही सबसे पहले मथुरा-वृंदावन का जिक्र होता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि 'महाकाल की नगरी' उज्जैन से भगवान श्रीकृष्ण का खास कनेक्शन है. उन्होंने यहां पर ही 64 दिनों में 64 कलाएं सीखी थीं.
Written By रुचि तिवारी
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Last Updated: Aug 15, 2025 03:06 PM IST
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उज्जैन शहर सिर्फ महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के लिए ही नहीं, बल्कि और भी चीजों के लिए प्रचलित है. यहां एक ऐसा आश्रम भी है, जहां भगवान श्रीकृष्ण ने शिक्षा प्राप्त की थी और उस आश्रम का नाम 'सांदीपनि आश्रम' है.
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बहुत समय पहले सांदीपनि आश्रम शिक्षा का केंद्र हुआ करता था. यहां राजा-महाराजा और ऋषि-मुनियों के बच्चे भी ज्ञान अर्जित करने आते थे. यह वही आश्रम है, जहां भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा जी की मित्रता भी हुई थी.
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भगवान श्रीकृष्ण ने आश्रम में एक सादा जीवन व्यतीत किया, जैसे- झाड़ू लगाना, लकड़ी इकट्ठा करना और आम बच्चों की तरह रहना. उन्होंने यहां 64 दिनों में 64 कलाएं सीखी थीं.
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श्रीकृष्ण जब शिक्षा पूरी करके अपने गुरु के पास गुरुदक्षिणा के लिए गए, तब ऋषि सांदीपनि ने कहा- 'मैं तुमसे क्या ही मांग सकता हूं, पूरे संसार में ऐसा कुछ नहीं है जो तुम दे न सको. तब श्रीकृष्ण ने कहा- 'आप कुछ मांग लीजिए, तभी मेरी गुरुदक्षिणा पूरी हो पाएगी.'
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ऋषि सांदीपनि ने कहा कि शंखासुर नामक एक दैत्य मेरे पुत्र को उठाकर ले गया है. उसे लौटा लाओ. तब श्रीकृष्ण ने अपने गुरु को उनके पुत्र को लौटाने का वचन दिया और अपने भाई बलराम के साथ उसे खोजने निकल पड़े.
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खोजते-खोजते वे सागर के तट पर पहुंचे. यहां समुद्र से पूछने पर पता चला कि पंचज जाति का दैत्य शंख के रूप में समुद्र में छिपा हुआ है. भगवान श्रीकृष्ण समुद्र में जाकर शंखासुर को मारकर उसके पेट में अपने गुरु-पुत्र को खोजने लगे, लेकिन वह नहीं मिले.
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शंखासुर के शरीर का शंख लेकर श्रीकृष्ण यमलोक गए. भगवान श्रीकृष्ण ने यमराज से गुरु-पुत्र को वापस लाया और गुरु सांदीपनि को उनका पुत्र लौटाकर गुरु-दक्षिणा भी पूरी की.
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यह आश्रम महाकालेश्वर मंदिर से केवल 5-6 किलोमीटर की दूरी पर है.