धर्म की खातिर जिंदा दीवार में चुनवा दिए गए थे दो नन्हे साहिबजादे, गुरु गोबिंद सिंह जी के वीर बालकों की रूह कंपाने वाली कहानी

यह घटना तब की है जब मुगलों ने गुरु गोबिंद सिंह जी से बदला लेने के लिए हमला किया था. परिवार के सदस्य एक दूसरे से बिछड़ गए. बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह की उम्र उस समय केवल सात और पांच साल थी.
Veer Bal Diwas 2024

गुरु गोबिंद सिंह जी के वीर बालक

Veer Bal Diwas 2024: गुरु गोबिंद सिंह जी और उनके साहिबजादों की शहादत का इतिहास न केवल सिख समुदाय, बल्कि भारतीय इतिहास में अद्वितीय स्थान रखता है. उनका साहस, बलिदान और धर्म के प्रति निष्ठा न केवल प्रेरणादायक हैं, बल्कि यह भी सिखाते हैं कि धर्म और सिद्धांतों की रक्षा के लिए व्यक्ति को किसी भी कीमत पर अपने जीवन का बलिदान करने में पीछे नहीं हटना चाहिए. हर साल 26 दिसंबर को गुरु गोबिंद सिंह जी के दो छोटे साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह के शहादत दिवस को ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है. आइये आज विस्तार से इन्हीं की कहानी जानते हैं.

साहिबजादों का साहस

गुरु गोबिंद सिंह जी के दो छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह ने नन्ही उम्र में धर्म और देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी. उनका बलिदान आज भी सिख इतिहास का एक अहम हिस्सा माना जाता है. हर साल 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है, ताकि हम उन वीर बालकों को याद कर सकें, जिन्होंने मात्र सात और पांच साल की उम्र में जान की बाज़ी लगा दी थी, लेकिन अपने धर्म और सिद्धांतों से किसी भी तरह समझौता नहीं किया.

सिखों के गुरु

गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की, और यहीं से सिख समुदाय को एक नई दिशा भी दी. उन्होंने न केवल धार्मिक स्वतंत्रता की बात की, बल्कि सिखों को समाज में व्याप्त अन्याय, अत्याचार और दमन के खिलाफ संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया. गुरु गोबिंद सिंह जी के साहिबजादों के शहादत दिवस का महत्व इस दृष्टि से भी है कि ये वीर बालक न केवल अपनी जान गंवाने के लिए तैयार थे, बल्कि उन्होंने अपने जीवन में यह सिद्ध कर दिया कि धर्म के लिए आत्मबलिदान से बढ़कर कोई चीज़ नहीं होती.

साहिबजादों की कहानी

26 दिसंबर 1705, वह दिन था जब गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह ने धर्म के रास्ते पर चलते हुए अपने प्राणों की आहुति दी. यह घटना तब की है जब मुगलों ने गुरु गोबिंद सिंह जी से बदला लेने के लिए हमला किया था. परिवार के सदस्य एक दूसरे से बिछड़ गए. बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह की उम्र उस समय केवल सात और पांच साल थी. इस छोटी सी उम्र में इन साहिबजादों को अपने धर्म को बचाने के लिए बड़े-बड़े संकटों का सामना करना पड़ा. दो साहिबजादों को सरहिंद के नवाब वजीर खान ने बंदी बना लिया था. वजीर खान ने जोरावर और फतेह सिंह से धर्म परिवर्तन करने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने मुंह से एक शब्द नहीं निकाला. इसके बाद साजिबजादों ने ‘जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल’ के जयकारे लगाए.

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कैसे साहिबजादों को दीवार में जिंदा चुनवा दिया गया?

वजीर खान ने जब देखा कि छोटे साहिबजादे किसी भी कीमत पर धर्म नहीं बदलने वाले हैं, तो उसने उन्हें दीवार में जिंदा चुनवाने का आदेश दिया. यह घटना 26 दिसंबर 1705 को घटित हुई थी. बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह की आयु उस समय बहुत कम थी, लेकिन उनका साहस और उनके अंदर की धार्मिक निष्ठा इस उम्र में भी पूरी तरह से परिपक्व थी. उन्होंने मृत्यु को गले लगा लिया, लेकिन अपने धर्म से एक इंच भी पीछे नहीं हटे.

गुरु गोबिंद सिंह जी के साहिबजादों की शहादत को नमन करने के लिए सिख समुदाय ने हर साल ‘वीर बाल दिवस’ मनाने की परंपरा शुरू की. यह दिन विशेष रूप से उन वीर बच्चों को याद करने के लिए मनाया जाता है, जिन्होंने अपनी छोटी सी उम्र में धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया. 26 दिसंबर 2022 से यह दिवस एक आधिकारिक रूप से मनाया जाने लगा. तब पीएम मोदी ने इसकी घोषणा की थी.

धार्मिक उत्पीड़न के खिलाफ थे गुरु गोबिंद सिंह जी

गुरु गोबिंद सिंह जी का योगदान केवल धार्मिक क्षेत्र तक सीमित नहीं था. उन्होंने समाज में व्याप्त अन्याय, असमानता और धार्मिक उत्पीड़न के खिलाफ भी जोरदार संघर्ष किया. उनका यह संदेश था कि हर व्यक्ति को अपनी पहचान, अपने धर्म और अपनी संस्कृति का सम्मान करना चाहिए. उनका यही संदेश आज भी हमारे समाज के लिए प्रेरणास्रोत है.

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