IPL ऑक्शन में कैसे और कौन तय करता है खिलाड़ियों का बेस प्राइज? जानिए क्या हैं इसके नियम
जानिए खिलाड़ियों का कौन तय करता है बेस प्राइज
IPL 2026 Mini Auction: हर साल की तरह इस साल भी इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) का ऑक्शन हो रहा है. आईपीएल के 19वें सीजन का मिनी-ऑक्शन यूएई के अबू धाबी में हुआ. यहां फ्रेंचाइजी 237.55 करोड़ रुपए के कुल पर्स से 77 खाली स्लॉट भरने के लिए जोरदार बोली लगाई. ऑक्शन में देखा गया है कि कुछ खिलाड़ी 2 करोड़ रुपए की बेस प्राइस के साथ नीलामी में आए, वहीं कुछ 30 लाख के न्यूनतम स्लैब पर उपलब्ध हैं. ऐसे में आइए जानते हैं कि आईपीएल में किसी भी खिलाड़ी का बेस प्राइस कैसे तय किया जाता है.
कौन तय करता है खिलाड़ी की बेस प्राइज ?
आईपीएल (IPL) ऑक्शन में किसी भी खिलाड़ी का बेस प्राइस बीसीसीआई या किसी फ्रेंचाइजी द्वारा निर्धारित नहीं किया जाता है. इसके बजाय खिलाड़ी जब नीलामी में शामिल होने के लिए अपना पंजीकरण कराते हैं, तो उन्हें आईपीएल के द्वारा पहले से तय की गई स्लैब में से अपने लिए एक उपयुक्त बेस प्राइस चुनना होता है.
IPL द्वारा तय किए गए बेस प्राइज स्लैब
बता दें कि खिलाड़ी अपनी बेस प्राइज खुद ही तय करते हैं, लेकिन उन्हें आईपीएल गवर्निंग काउंसिल द्वारा तय किए गए निश्चित प्राइज ब्रैकेट के अंदर ही ऐसा करना होता है. आईपीएल 2026 के लिए अनकैप्ड खिलाड़ियों के लिए आमतौर पर 20 लाख रुपए या फिर 30 लाख रुपए जैसे काम स्लैब बनाए गए हैं. वहीं कैप्ड अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों के लिए 2 करोड़ तक के ऊंचे स्लैब चुनने का ऑप्शन होता है.
जानिए कई खिलाड़ी कम बेस प्राइज क्यों चुनते हैं ?
अक्सर देखा गया है कि कई खिलाड़ी कम बेस प्राइस चुनते हैं. उनका यह चुनाव करना रणनीतिक कदम होता है. क्योंकि जब कोई खिलाड़ी 30 लाख रुपए या फिर 50 लाख रुपए पर नीलामी में आता है, तो ज्यादा फ्रेंचाइजी बोली लगाने को तैयार होती हैं, जिस वजह से मुकाबला बढ़ जाता है और अंत तक में कीमत बेस प्राइज से काफी ज्यादा हो जाती है. वहीं कई खिलाड़ी ऐसे भी होते हैं, जिन्हें अपनी मांग पर पूरा भरोसा होता है. वे जानबूझकर अपनी बेस प्राइज को कम रखते हैं, ताकि ऑक्शन में ज्यादा से ज्यादा दिलचस्पी पैदा हो सके.
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ऊंची बेस प्राइज चुनने का जोखिम
इस प्रक्रिया में एक बड़ा जोखिम शामिल होता है. यदि कोई खिलाड़ी अपनी बेस प्राइस 1.5 करोड़ या 2 करोड़ जैसी ऊंची रखता है, तो फ्रेंचाइजी अपने सीमित बजट (पर्स) या टीम के सही संतुलन को बनाए रखने की चिंताओं के कारण बोली लगाने से हिचकिचा सकती हैं. ऐसी स्थिति में कई बार योग्य और प्रतिभाशाली खिलाड़ी भी नीलामी में बिना बिके रह जाते हैं.