इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पुलिस के उस पुराने तरीके पर सवाल उठाया, जिसमें अभियुक्तों की जाति को दस्तावेजों में दर्ज किया जाता है. जस्टिस विनोद दिवाकर ने कहा, "ये पुरानी प्रथा संवैधानिक नैतिकता के खिलाफ है. जाति का उल्लेख करना कानूनी भूल है, जो भारत के लोकतंत्र को कमजोर करता है."