उत्तर प्रदेश में उपचुनाव से पहले जातीय जनगणना का मुद्दा गरमा गया है. सपा और कांग्रेस जैसे दल इसे लेकर केंद्र सरकार को घेरने की कोशिश कर रहे हैं.
यह जानकारी एनडीए सरकार के तीसरे कार्यकाल के 100 दिन पूरे होने पर आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान सामने आई. गृहमंत्री अमित शाह ने बताया कि देश में आखिरी बार जनगणना 2011 में हुई थी, और अब इसे जल्द ही पूरा किया जाएगा.
हाल के दिनों में जब जातिगत जनगणना की मांग ने जोर पकड़ी तो संघ से भी इस पर सवाल पूछे गए. हालांकि संघ जाति-विहीन समाज की बात कहते हुए एक तरीके से इस मुद्दे पर उदासीन रहा. न तो इसका समर्थन किया और न ही विरोध. पर अब पलक्कड़ की बैठक के बाद जातीय जनगणना की तरफदारी क्यों करनी पड़ी?
Caste Census: आजादी के बाद साल 1951 में जब पहली बार जनगणना हुई तो जाति के नाम पर केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से जुड़े लोगों को वर्गीकृत किया गया.
भाजपा पर हमला करते हुए गांधी ने कहा, "मैं 2004 से राजनीति में हूं और भाजपा मेरे लिए गुरु की तरह रही है, क्योंकि इसने मुझे सिखाया है कि क्या नहीं करना चाहिए." उन्होंने कहा, "90 प्रतिशत लोगों के अधिकारों के लिए लड़ना मेरा मिशन है और अगर मुझे राजनीतिक नुकसान भी उठाना पड़े तो मैं पीछे नहीं हटूंगा."
इससे पहले, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा था कि लगभग 90% आबादी, आवश्यक कौशल और प्रतिभा होने के बावजूद, सिस्टम से कटी हुई है, यही वजह है कि जाति जनगणना की मांग की जा रही है.
Rahul Gandhi: राहुल गांधी ने कहा अगर कोई सोचे कि सोशल इकोनॉमिक सर्वे नहीं होगा, इंस्टीट्यूशनल सर्वे नहीं होगा या आरक्षण में 50 प्रतिशत की सीमा नहीं बढ़ाई जाएगी तो वह गलत सोच रहा है. ये सब होगा. हिंदुस्तान की जनता ने मन बना लिया है.
असम के सीएम ने एक्स पर एक पोस्ट भी शेयर किया और लिखा, "मैं इंतजार कर रहा हूं कि कब राहुल गांधी देश के साथ उस रहस्यमयी फॉर्मूले को साझा करेंगे, जिसके तहत जाति पूछे बिना जाति जनगणना हो सकती है."
बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने आगे कहा कि बीएसपी के प्रयासों से यहां लागू हुई ओबीसी आरक्षण की तरह ही राष्ट्रीय जातीय जनगणना जनहित का एक खास राष्ट्रीय मुद्दा, जिसके प्रति केंद्र को गंभीर होना जरूरी.
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