दिल्ली में कुल 12 अनुसूचित जाति (SC) रिजर्व सीटें हैं, और इन पर दलित उम्मीदवार के बीच भिड़ंत हो रही है. दिल्ली के दलित इलाकों में ऐसा चुनावी मौसम बन चुका है, जहां बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने दलित प्रत्याशी उतारे हैं. यह इसलिए खास है क्योंकि इन सीटों पर जातीय रणनीतियों के तहत दलित वोटबैंक को साधने की जंग चल रही है.
ओखला विधानसभा क्षेत्र दक्षिणी दिल्ली का एक प्रमुख हिस्सा है, जहां करीब 53% मुस्लिम मतदाता हैं. यहां का चुनावी समीकरण इस बार बिल्कुल अलग है, क्योंकि इस बार तीन मुख्य दलों—आम आदमी पार्टी , कांग्रेस और AIMIM के पास मुस्लिम उम्मीदवार हैं.
Delhi Election: आज दिल्ली में अमित शाह ने पार्टी के संकल्प पत्र का तीसरा और आखिरी हिस्सा जारी कर दिया है. इस दौरान उन्होंने अरविंद केजरीवाल पर जम कर निशाना साधा. उन्होंने केजरीवाल को झूठा इंसान बताया.
CG News: CM विष्णु देव साय के मीडिया सलाहकार पंकज झा एक बार फिर कांग्रेस पर हमला किया है. उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट X पर पोस्ट करते हुए कांग्रेस पर दिल्ली के चुनाव में BJP का स्लोगन चुराने का आरोप लगाया है.
दिल्ली में बीजेपी ने योगी आदित्यनाथ का विशेष योगदान तय किया है! उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को दिल्ली की 14 सीटों में से प्रचार की जिम्मेदारी सौंपी गई है, और इनमें से एक सीट आम आदमी पार्टी के नेता अवध ओझा की है.
साफ पानी, यानी वो मुद्दा जो जब उठता है तो दिल्लीवालों की आंखों में आंसू और गुस्सा दोनों आ जाते हैं. अगर आप दिल्ली में रहते हैं तो आपको ये मुद्दा कभी न कभी परेशान जरूर करता होगा. सीएसडीएस के आंकड़ों के मुताबिक, 2013 में लगभग 3.8 प्रतिशत लोगों ने साफ पानी को चुनावी मुद्दा माना था.
इस बयान ने चुनावी रंग को और गहरा कर दिया है, और अब यह देखना दिलचस्प होगा कि दिल्ली की जनता इस सियासी ड्रामे को कैसे लेती है. आखिरकार, जब राजनीति और धर्म की जोड़ी बनती है, तो चुनावी खेल का मिजाज ही बदल जाता है!
अरविंद केजरीवाल ने बताया कि जब वह जेल में थे, तब उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल ने न सिर्फ घर, बल्कि पार्टी की बागडोर भी संभाली. केजरीवाल ने कहा कि अगर आम आदमी पार्टी टूटने से बची, तो इसका 90% श्रेय सुनीता को जाता है, क्योंकि उस समय उन्हें राजनीति का कोई खास अनुभव नहीं था.
दिल्ली की सड़कों पर रोज़ाना लाखों ऑटो ड्राइवर्स, सिर्फ सवारी नहीं ढोते, बल्कि राजनीतिक दिशा भी तय करते हैं. ये ड्राइवर्स न सिर्फ सवारी से चुनावी मुद्दों पर गपशप करते हैं, बल्कि उनके द्वारा जुटाया गया फीडबैक सीधे नेताओं तक पहुंचता है. अगर ये ऑटो ड्राइवर्स किसी पार्टी का समर्थन कर दें, तो उस पार्टी की जीत की रफ्तार तेज हो जाती है.
दिल्ली के पूर्वांचलियों की दिलचस्पी इस बार कुछ अलग है. पहले लोग सिर्फ वादों पर भरोसा कर लिया करते थे, लेकिन अब उनकी सोच में बदलाव आया है. उनका कहना है कि अब सिर्फ वादे नहीं, बल्कि उम्मीदवार की नीयत और काम करने की क्षमता को देखेंगे.