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प्रतीकात्मक तस्वीर

न झंडा न शोर और न ही ढोल की थाप…पहले नेता घर-घर जाते थे अब घर से हो रहा प्रचार, सोशल मीडिया ने कैसे बदला ट्रेंड?

जानकारों की मानें तो यह चलन 2003-4 में शुरू हुआ. यह चुनाव के सामान जैसे झंडे, बैनर, बैज और ऐसी अन्य वस्तुओं की मांग में गिरावट की शुरुआत थी.

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