मुंबई का ये तनाव नया नहीं है, लेकिन हर बार ये देश की एकता पर सवाल उठाता है. 1960 से शुरू हुई मराठी अस्मिता की लड़ाई आज सियासी स्वार्थ की भेंट चढ़ रही है. राज और उद्धव की सियासत बिहारियों-यूपी वालों को निशाना बना रही है, लेकिन अगर ये लोग सचमुच चले गए, तो मुंबई का दिल धड़कना बंद हो सकता है.