भारतीय सिनेमा में हिंसा और एक्शन का बढ़ता प्रभाव दर्शकों के रुझान को दर्शाता है, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि फिल्में भावनात्मक गहराई और संवेदनशीलता खो चुकी हैं.