2015 में RCP और PK ने मिलकर नीतीश-लालू के महागठबंधन को जिताया था. तब RCP JDU के बड़े नेता थे और PK रणनीति बनाते थे. अब दोनों फिर साथ हैं, लेकिन इस बार नीतीश के खिलाफ.
पीके की साफ-सुथरी छवि और विकास की बातें शहरी और युवा वोटरों को पसंद आ रही हैं. उनकी रैलियों में भीड़ इसका सबूत है. अगर पीके मुस्लिम और अति पिछड़ा वोटों को अपनी ओर खींच लेते हैं, तो RJD और JDU को बड़ा नुकसान हो सकता है. खासकर सीमांचल में, जहां मुस्लिम आबादी ज्यादा है, वे AIMIM के वोट भी काट सकते हैं.
एक राजनीतिक रणनीतिकार के रूप में प्रशांत किशोर ने 2014 में भाजपा की जीत, 2019 में वाईसीपी की जीत (आंध्र प्रदेश), 2021 में टीएमसी की जीत (पश्चिम बंगाल) और 2021 में डीएमके की जीत (तमिलनाडु) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.