तीन बार शत्रु के रूप में जन्म लेने के बाद जय और विजय को श्राप से पूरी तरह मुक्ति मिल गई. अब वे फिर से वैकुंठ लौट गए, जहां उन्होंने भगवान विष्णु के द्वारपाल के रूप में अपनी सेवा शुरू की.
शिव आराधना में लीन विष्णु को यह बात पता नहीं चली. एक फूल गिरने के बाद विष्णु उसे खोजने लगे. लेकिन कोई फूल नहीं मिला. विष्णु को कमलनयन के नाम से भी जाना जाता है.