ठाकरे ने बताया कि कैसे MVA ने लोकसभा चुनाव में कुछ ऐसी सीटें अपने सहयोगियों को दे दीं, जिन्हें उनकी पार्टी (शिवसेना) पहले कई बार जीत चुकी थी. यह बात उन्हें आज भी अखरती है. विधानसभा चुनाव के दौरान तो सीट बंटवारे पर आखिरी दम तक खींचतान चलती रही.
यह 'जय गुजरात' का नारा ऐसे समय में आया है जब महाराष्ट्र में भाषा को लेकर पहले से ही सियासी उबाल है. हाल के दिनों में हिंदी भाषा को थोपने के मुद्दे पर महायुति और महाविकास अघाड़ी (MVA) के बीच जोरदार बहस चल रही है. विपक्ष लगातार आरोप लगा रहा है कि बीजेपी और शिंदे सरकार मराठी भाषा को महत्व नहीं दे रही है.
जब चुनाव के नतीजे आए, तो सब हैरान रह गए. शिवसेना ने 73 सीटें जीतीं और भाजपा को 65 सीटें मिलीं. दोनों दलों की सीटों को मिलाकर आंकड़ा बहुमत के पार चला गया. यह महाराष्ट्र के इतिहास में पहली बार था जब कांग्रेस को हटाकर कोई गैर-कांग्रेसी सरकार बनी. बालासाहेब ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद खुद नहीं संभाला, बल्कि शिवसेना के मनोहर जोशी को मुख्यमंत्री बनाया.
शहर के प्रमुख स्थानों पर लगे इन बैनरों में कब्र तक की दूरी साफ-साफ बताई गई है. मिसाल के तौर पर, क्रांतिचौक से 27 किमी, जिला न्यायालय से 26 किमी, बाबा पेट्रोल पंप से 25 किमी, होली क्रॉस स्कूल से 24 किमी, और शरनापुर से 14 किमी. मनसे का मकसद है कि लोग यह जानें कि मराठा इतिहास का एक क्रूर शासक यहीं दफन है.
शिंदे ने जो मुख्यमंत्री तीर्थ यात्रा योजना और आनंदाचा सिद्धा योजना शुरू की थी. उसे रोक दिया गया है. इन योजनाओं का उद्देश्य बुजुर्गों को तीर्थ यात्रा पर मुफ्त यात्रा का लाभ देना और त्योहारों के दौरान सस्ते दरों पर राशन मुहैया कराना था. इन फैसलों से शिंदे को यह संकेत मिल सकता है कि बीजेपी अब उन्हें पूरी तरह से सहयोग नहीं दे रही है.
महाराष्ट्र की सियासत में आने वाले बीएमसी (Brihanmumbai Municipal Corporation) चुनाव भी एक अहम मोड़ साबित हो सकते हैं. ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या उद्धव ठाकरे और भाजपा के बीच करीबी रिश्ते देखने को मिलेंगे? क्या शिवसेना फिर से भाजपा से जुड़ने के बारे में सोचेगी?
बीजेपी ने अपने कोटे से 20 विधायकों को मंत्रिमंडल में शामिल करने का निर्णय लिया है. इनमें से कुछ प्रमुख नामों में नितेश राणे, पंकजा मुंडे, और गिरीश महाजन शामिल हैं. इनके अलावा अन्य विधायकों में शिवेंद्र राजे, देवेन्द्र भुयार, मेघना बोर्डिकर और जयकुमार रावल जैसे नेता भी मंत्रिमंडल का हिस्सा बन सकते हैं.
राहुल गांधी ने 2022 में भारत जोड़ो यात्रा के दौरान सावरकर को लेकर कुछ बयान दिए थे, लेकिन उस वक्त उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने सार्वजनिक रूप से विरोध किया था. तब एक समझौता हुआ था कि राहुल इस विषय पर चुप्पी रखेंगे, क्योंकि यह मुद्दा महाराष्ट्र की राजनीति में संवेदनशील था और कांग्रेस के लिए गठबंधन को बचाने की आवश्यकता थी.
अजित पवार के खिलाफ उठाए गए बेनामी संपत्ति के आरोपों को खारिज करना, केवल एक कानूनी निर्णय नहीं है, बल्कि राजनीति में चल रहे जटिल खेल का हिस्सा भी हो सकता है.
Maharashtra Politics: महाराष्ट्र में राजनीति अब एक नई दिशा में बढ़ती दिखाई दे रही है, जहां मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के पद पर विवाद तो खत्म हो गया, लेकिन अब मंत्रिमंडल में पदों के बंटवारे को लेकर घमासान मचने की संभावना है. देवेंद्र फडणवीस ने सीएम पद पर कब्जा किया है, और यह कोई अचरज की […]