इस फैसले ने 2006 के पीड़ितों के परिवारों के ज़ख्मों को फिर से हरा कर दिया है. 189 लोग, जो उस दिन घर लौटने की उम्मीद में ट्रेन में सवार हुए थे, वे कभी वापस नहीं आए. सैकड़ों लोग आज भी उन चोटों के साथ जी रहे हैं, जो सिर्फ़ शारीरिक ही नहीं, बल्कि मानसिक भी हैं.