इसके विपरीत, मुस्लिम संगठनों और कुछ धर्मनिरपेक्ष दलों का यह कहना है कि इस कानून को समाप्त करने से धार्मिक सौहार्द बिगड़ेगा. जमीयत उलमा-ए-हिंद ने इसे भारत की धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण बताया है.