स्वामी वैराग्यानंद गिरी महाराज ने अपने पत्र में लिखा है कि धर्म, अध्यात्म और सेवा के नाम पर कुछ लोग न केवल अपने व्यक्तिगत स्वार्थ साध रहे हैं. बल्कि धर्म की आड़ में अपराध और तंत्र-मंत्र जैसी अमानवीय गतिविधियों को भी बढ़ावा दे रहे हैं.