नवाब टोंक के समय से यह मस्जिद अस्तित्व में है, और यहां पर नमाज अदा करने की परंपरा काफी पुरानी है. इस समय में भी कुछ लोग यह दावा कर रहे हैं कि मस्जिद और उसका परिसर उसी समय से वक्फ संपत्ति है, जब नवाब टोंक ने इसे दान किया था.