कुंभ मेले के दौरान क्यों डूब जाता है शेयर बाजार? 4 दिनों में निवेशकों के 25 लाख करोड़ स्वाहा

सोमवार को जहां 40 लाख लोग महाकुंभ के पहले दिन गंगा में डुबकी लगा रहे थे, वहीं दूसरी तरफ शेयर बाजार के 20 करोड़ से ज्यादा निवेशकों ने ट्रेडिंग सेशन खत्म होने से पहले 13 लाख करोड़ रुपए से अधिक गंवा दिए.
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प्रतीकात्मक तस्वीर

Stock Market: साल 2013 में आई फिल्म आशिकी 2 का गाना ‘सुन रहा है ना तू, रो रहा हूं मैं…” आज की आर्थिक स्थिति पर बिल्कुल सटीक बैठता है. जहां बढ़ते डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर होता जा रहा है, वहीं शेयर बाजार भी इस गिरावट से अछूता नहीं रहा. जैसे उस गाने में दर्द और निराशा का अहसास होता है, ठीक उसी तरह से रुपया भी सिसकियां भरता हुआ नजर आ रहा है, और उसकी यह हालत कोई सुनने को तैयार नहीं है.

सोमवार को जहां 40 लाख लोग महाकुंभ के पहले दिन गंगा में डुबकी लगा रहे थे, वहीं दूसरी तरफ शेयर बाजार के 20 करोड़ से ज्यादा निवेशकों ने ट्रेडिंग सेशन खत्म होने से पहले 13 लाख करोड़ रुपए से अधिक गंवा दिए. पिछले 4 दिनों से निवेशकों के नुकसान का सिलसिला लगातार जारी है, और सेंसेक्स व निफ्टी में आई भारी गिरावट के कारण निवेशकों के कुल 25 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा डूब चुके हैं. यह स्थिति निश्चित रूप से निवेशकों के लिए चिंता का कारण बन चुकी है. इस बीच एक दिलचस्प और अनोखा प्रश्न उठता है कि आखिर कुंभ मेले के दौरान शेयर बाजार क्यों डूब जाता है?

शेयर बाजार और कुंभ मेला

कुंभ मेला और शेयर बाजार का आपस में कोई सीधा संबंध नहीं लगता, लेकिन आंकड़े कुछ और ही कहानी कहते हैं. यदि हम पिछले 20 वर्षों का आंकड़ा देखें तो कुंभ मेले के दौरान सेंसेक्स में हर बार गिरावट आई है. सैमको सिक्योरिटीज के मार्केट पर्सपेक्टिव्स और रिसर्च प्रमुख अपूर्व शेठ ने एक रिपोर्ट शेयर किया है, जिसमें उन्होंने इसके कुछ दिलचस्प पहलू उजागर किए हैं.

कुंभ मेले के दौरान सेंसेक्स में गिरावट के आंकड़े

जब भी कुंभ मेला आयोजित हुआ है, सेंसेक्स की स्थिति निराशाजनक रही है. 2000 से 2020 के बीच के आंकड़ों के अनुसार, कुंभ मेला अवधि के दौरान सेंसेक्स में औसतन 3.4 प्रतिशत की गिरावट आई. खास बात यह है कि इन 20 वर्षों में ऐसा कोई भी वर्ष नहीं था, जब सेंसेक्स ने कुंभ मेला के दौरान सकारात्मक रिटर्न दिया हो. उदाहरण के लिए, 2015 में जब कुंभ मेला हुआ, तो सेंसेक्स में 8.3 प्रतिशत की भारी गिरावट आई थी, जबकि 2021 में यह गिरावट 4.2 प्रतिशत तक पहुंची. 2010 में भी सेंसेक्स में 1.2 प्रतिशत की गिरावट देखी गई, जो पिछले आंकड़ों से कहीं कम थी, लेकिन फिर भी निगेटिव थी.

कुंभ मेला और शेयर बाजार की रीयलिटी चेक

अब सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों होता है कि कुंभ मेला और शेयर बाजार का आपस में कोई न कोई गहरा संबंध बन जाता है. विशेषज्ञों का मानना है कि इस दौरान कुछ खास कारक होते हैं, जो बाजार की दिशा को प्रभावित करते हैं. पहला कारण यह हो सकता है कि कुंभ मेला एक बहुत बड़े धार्मिक आयोजन के रूप में होता है, जो आम जनता को प्रभावित करता है और उनके निवेश निर्णयों में अनिश्चितता का कारण बनता है. निवेशक इस दौरान अपनी पूंजी को लेकर अधिक सतर्क रहते हैं और अस्थिरता के कारण जोखिम से बचने के लिए अपनी निवेश रणनीतियों में बदलाव करते हैं.

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कुंभ के बाद सेंसेक्स में होता है उछाल

अगर हम कुंभ मेला के बाद के छह महीनों की बात करें तो स्थिति एकदम अलग होती है. आंकड़ों के मुताबिक, कुंभ मेले के बाद शेयर बाजार में एक जबरदस्त रैली देखने को मिलती है. पिछले 20 वर्षों में से 5 बार ऐसा हुआ है जब कुंभ मेला के बाद सेंसेक्स ने सकारात्मक रिटर्न दिया. सबसे बड़ी वृद्धि 2021 में देखी गई थी, जब सेंसेक्स में लगभग 29 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई. 2010 में भी सेंसेक्स ने 16.8 प्रतिशत की बढ़त हासिल की थी.

इसका कारण यह हो सकता है कि कुंभ मेला समाप्त होने के बाद, बाजार में अनिश्चितता कम हो जाती है और निवेशकों का आत्मविश्वास फिर से लौटता है. इसके अलावा, कुंभ मेला एक तरह से भारतीय समाज का उत्सव होता है, जो देश की आर्थिक स्थिति को भी प्रभावित करता है. जैसे-जैसे मेला खत्म होता है, लोगों का ध्यान फिर से व्यापार और निवेश की ओर लौटता है, जिससे बाजार में तेजी आती है.

कुंभ मेला और शेयर बाजार का जुड़ाव एक दिलचस्प विषय है, जिसे पूरी तरह से समझने के लिए हमें सांस्कृतिक, मानसिक और आर्थिक पहलुओं पर विचार करना होगा. हालांकि कुंभ मेला के दौरान सेंसेक्स में गिरावट का एक पैटर्न नजर आता है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि बाजार हमेशा निगेटिव रहता है. इस दौरान का अस्थिरता बाजार में एक बदलाव का संकेत देती है, जो बाद में निवेशकों के आत्मविश्वास के साथ एक सकारात्मक दिशा में बदल सकती है.

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