Surya Tilak: किस टेक्नोलॉजी से हुआ रामलला का सूर्य तिलक? जानें कैसे ISRO के वैज्ञानिकों ने किया ये कमाल

Surya Tilak Technology In Ayodhya: सूर्य तिलक के नाम से शेयर की गई यह तस्वीरें जितनी सुर्खियों में हैं उससे अधिक सूर्य तिलक के लिए इस्तेमाल की गई टेक्नोलॉजी की बात हो रही है.
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Ayodhya: लेंस और शीशे जैसे सामान्य‌ संसाधन, इस सिंपल टेक्नोलॉजी से हुआ रामलला का सूर्य तिलक, ISRO के वैज्ञानिकों ने ऐसे किया कमाल

Surya Tilak Technology In Ayodhya: उत्तर प्रदेश के अयोध्या में बने भव्य राम मंदिर में पहली बार धूमधाम से रामनवमी मनाई गई. पहली बार की रामनवमी इसलिए भी खास रही, क्योंकि रामलला का सूर्य तिलक किया गया. बुधवार, 17 अप्रैल को सूर्य तिलक से जुड़ी तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रही हैं. इन तस्वीरों में प्रभु राम की बालरूप प्रतिमा पर सीधे सूरज की किरणें ललाट पर तिलक कर रही थी. सूर्य तिलक के नाम से शेयर की गई यह तस्वीरें जितनी सुर्खियों में हैं उससे अधिक दिलचस्प सूर्य तिलक के लिए इस्तेमाल की गई टेक्नोलॉजी की बात हो रही है.

IIA ने टेक्नोलॉजी को किया इंस्टॉल

भारत बेहद सीमित संसाधनों और कम से कम खर्च में अंतरिक्ष के अनंत रहस्यों को खोजने में बड़ी छलांग लगा रहा है. इसमे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन(इसरो) के सहयोगी वैज्ञानिक संस्थान ने देश की मदद कर रहे हैं. इसरो और सहयोगी वैज्ञानिक संस्थान ने सूर्य तिलक की टेक्नोलॉजी को इंस्टॉल किया है. इसका नाम है इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स(IIA). बता दें कि यह वही संस्थान है, जहां के वैज्ञानिकों ने इसरो के साथ मिलकर सूर्य को जानने के लिए Aditya-L1 अंतरिक्ष में भेजा है.

मंदिर ‌ट्रस्ट के अनुरोध पर इंस्टॉल हुई टेक्नोलॉजी

बता दें कि अयोध्या में जब राम मंदिर बन रहा था, उसी दौरान मंदिर निर्माण ट्रस्ट ने IIA के वैज्ञानिकों से क्वेश्चन टेक्नोलॉजी इंस्टॉल करने का अनुरोध किया था. इसके लिए वैज्ञानिकों ने ऑप्टिकल मैकेनिकल सिस्टम बनाया और रामनवमी के शुभ अवसर पर रामलला के ललाट पर सूर्य तिलक के लिए लगातार सूर्य की स्थिति का अध्ययन किया गया.

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सामान्य‌ संसाधनों से हुआ सूर्य तिलक

सूर्य तिलक के लिए वैज्ञानिकों ने बहुत सामान्य सामान्य‌ संसाधनों का उपयोग किया. इस पूरे प्रक्रिया में चार लेंस और चार शीशे की जरूरत पड़ी थी. सूरज की किरणों को सीधे तौर पर लेंस पर गिराया गया और वहां से चार शीशों के जरिए रामलला के ललाट तक रोशनी को पहुंचाया गया. बता दें कि अभी यह अस्थाई तौर पर लगा है. मंदिर की संरचना पूरी होने के बाद इसे स्थाई तौर पर लगा दिया जाएगा. सामान्य वैज्ञानिक भाषा में इस प्रक्रिया को पोलराइजेशन ऑफ लाइट कहते हैं. यानी रोशनी को केंद्रित करके इसे एक जगह पहुंचाना.

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