दलितों के नए नेता के रूप में उभरे चंद्रशेखर आजाद, नगीना में BJP को दी पटखनी, जानें अब तक का राजनीतिक सफर

Lok Sabha Elections 2024: उत्तर प्रदेश के साथ-साथ पड़ोसी राज्यों में दलित युवा नेता के तौर पर अपनी पहचान बना चुके चंद्रशेखर आजाद इंडिया ब्लॉक में शामिल नहीं हुए थे. उन्होंने अपनी पार्टी आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के सिंबल पर चुनावी मैदान में उतरे थे.
Chandrashekhar Azad Ravan

चन्द्रशेखर आजाद रावण

Lok Sabha Elections 2024: लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे अब सामने आ चुके हैं. उत्तर प्रदेश के चुनावी परिणामों ने सबको चौंका दिया है. पिछले आम चुनाव में 5 सीटें जीतने वाली समाजवादी पार्टी इस बार 37 सीटों पर जीतने में सफल रही है. वहीं यूपी में बसपा अपने पतन की ओर बढ़ती हुई नजर आई, लेकिन अब मायावती के सामने एक नया चुनौती भी दिख रहा है. दरअसल, वो हैं युवा दलित नेता चंद्रशेखर आजाद, जिन्होंने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के नगीना अनुसूचित जाति-आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र से 1.51 लाख से अधिक वोटों के अंतर से जीत हासिल की है.

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के साथ-साथ पड़ोसी राज्यों में दलित युवा नेता के तौर पर अपनी पहचान बना चुके चंद्रशेखर आजाद इंडिया ब्लॉक में शामिल नहीं हुए थे. उन्होंने अपनी पार्टी आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के सिंबल पर चुनावी मैदान में उतरे थे. उन्होंने 51.19 प्रतिशत वोट हासिल करके भाजपा के ओम कुमार को हराया. भाजपा का वोट शेयर गिरकर 36 प्रतिशत रह गया.

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नगीना में 40 फीसदी मुस्लिम आबादी

नगीना लोकसभा सीट पर बहुजन समाज पार्टी के सुरेंद्र पाल सिंह केवल 1.33 प्रतिशत वोट ही जुटा पाए. जो कि समाजवादी पार्टी के मनोज कुमार से भी बहुत पीछे है, जिनका वोट शेयर 10.22 प्रतिशत था. 2019 में इस सीट पर बसपा के गिरीश चंद्र ने भाजपा के यशवंत सिंह को 1.66 लाख वोटों के अंतर से हराया था. इस लोकसभा क्षेत्र में दलितों (ज्यादातर जाटव, जो बीएसपी का मुख्य समर्थक माने जाते रहे हैं ) की आबादी करीब 20 फीसदी है, जबकि मुस्लिम करीब 40 प्रतिशत हैं. बाकी में ठाकुर, जाट, चौहान राजपूत, त्यागी और बनिया समुदाय शामिल हैं

पूरे उत्तर प्रदेश में मुसलमान वोटर सपा-कांग्रेस गठबंधन के साथ दिख रहे हैं, तथा बसपा का आधार सिकुड़ गया है, लेकिन जाटवों के बीच वह अभी भी मजबूत है, लेकिन नगीना में आजाद को दोनों समुदायों के वोट मिलते दिखे.

अब लोकसभा में बीएसपी का कोई सदस्य नहीं

आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) के एक नेता ने कहा, “लोकसभा में अब बीएसपी का कोई सदस्य नहीं है. आज़ाद ही सदन में दलितों और मुसलमानों के मुद्दे उठाएंगे. इससे उन्हें दलितों के नेता के रूप में उभरने में मदद मिलेगी और निश्चित रूप से वे मायावती के विकल्प के रूप में उभरेंगे. इससे बीएसपी और कमज़ोर होगी.” नगीना से आज़ाद की जीत दो और वजहों से महत्वपूर्ण है. इस लोकसभा सीट पर उनकी जिद की वजह से ही इस बार एएसपी और एसपी के बीच गठबंधन की बातचीत विफल हो गई. इसके बाद आजाद समाज पार्टी ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया और फिर आज़ाद ने नगीना में घर-घर जाकर प्रचार किया.

इस जीत का एक और महत्व ये भी है कि 1989 में मायावती ने बिजनौर निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की थी, जो 2008 के परिसीमन के बाद अब नगीना में आता है.

2015 में भीम आर्मी का गठन

मूल रूप से सहारनपुर जिले के छुटमलपुर इलाके के रहने वाले और कानून स्नातक 36 वर्षीय आज़ाद ने दलितों और अन्य हाशिए पर पड़े वर्गों के विकास के लिए लड़ने के लिए 2015 में भीम आर्मी का गठन किया. वह पहली बार भीम आर्मी के प्रमुख के रूप में सुर्खियों में आए और 2017 में सहारनपुर जिले के शब्बीरपुर गांव में ठाकुर समुदाय के साथ झड़प के सिलसिले में गिरफ्तार किए गए और दलितों की आवाज़ उठाने के लिए राजनीतिक हलकों में चर्चा में आए.

इसके तुरंत बाद ही चंद्रशेखर को गिरफ्तार कर लिया गया और उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार ने उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) लगा दिया, जिसके बाद उन्होंने लंबे समय तक जेल में समय बिताया. सितंबर 2018 में कानून हटाए जाने के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया.

दलित और अल्पसंख्यकों के बीच बनाई पकड़

जेल में रहने के साथ-साथ नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के विरोध में उनकी भागीदारी ने दलितों और अल्पसंख्यकों के बीच उनकी स्थिति को और मजबूत किया. सहारनपुर जिले में दोनों की अच्छी खासी आबादी है. दिल्ली के शाहीन बाग सहित सीएए विरोधी प्रदर्शनों के अलावा, भीम आर्मी ने दिल्ली में रविदास मंदिर के विध्वंस के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों में भी भाग लिया था.

योगी के खिलाफ लड़े विधानसभा चुनाव

राजस्थान, दिल्ली और मध्य प्रदेश में अपनी गतिविधियों का विस्तार करने के बाद आज़ाद ने राजनीति में कदम रखा. उन्होंने पहले बीएसपी से संपर्क किया, लेकिन मायावती द्वारा उनके साथ हाथ मिलाने की किसी भी संभावना से इनकार करने के बाद आज़ाद ने 2022 के विधानसभा चुनावों से पहले एसपी प्रमुख अखिलेश यादव से मुलाकात की. हालांकि, उनके बीच गठबंधन पर बातचीत विफल रही और आजाद ने घोषणा की कि वह भाजपा उम्मीदवार और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ गोरखपुर सदर से चुनाव लड़ेंगे. उन्होंने अखिलेश पर उनका “अपमान” करने और अनुसूचित जातियों को दरकिनार करने का भी आरोप लगाया.

हालांकि, 2022 के चुनावों में आजाद गोरखपुर से बुरी तरह हार गए और चौथे स्थान पर रहे. इसके बाद आज़ाद को आरएलडी नेतृत्व के करीब बढ़ते हुए देखा गया, और उन्होंने 2022 में खतौली विधानसभा उपचुनाव में अपने उम्मीदवार के लिए प्रचार किया, जिससे आरएलडी नेता को भाजपा के खिलाफ जीत हासिल करने में मदद मिली.

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