UP Politics: हर चुनाव में गठबंधन पर नए प्रयोग कर रही सपा, अखिलेश यादव को रास नहीं आते सहयोगी!
UP Politics: उत्तर प्रदेश में आगामी लोकसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी गठबंधन में एक बार फिर घमासान मचा हुआ है. बीते दिनों ही इस गठबंधन से आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी ने अलग होने के स्पष्ट संकेत दे दिए थे. लेकिन अब अखिलेश यादव के साथ गठबंधन में रही एक और पार्टी ने ऐसे ही संकेत दिए हैं, जिसके बाद फिर से कहा जा रहा है कि अखिलेश यादव को उनके सहयोगी रास नहीं आते हैं.
दरअसल, राजनीतिक के जानकार अपने इस दावे के पीछे बीते सालों के दौरान हर चुनाव में अखिलेश यादव द्वारा किए गए नए-नए गठबंधन का जिक्र कर रहे हैं. इसकी शुरूआत 2014 के लोकसभा चुनाव से होती है तब अखिलेश यादव ने जयंत चौधरी की पार्टी आरएलडी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था. इस चुनाव में मोदी मैजिक के आगे सपा गठबंधन पूरी तरह फेल हुआ और केवल पांच सीटों पर जीत हुई.
कांग्रेस के साथ लड़ा था चुनाव
इसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले अखिलेश यादव ने कांग्रेस के साथ गठबंधन कर नया प्रयोग किया. हालांकि फिर एक बार उन्हें तगड़ा झटका लगा. इस बार सपा और कांग्रेस की अब तक के इतिहास में सबसे बुरी हार हुई. दोनों के गठबंधन को महज 54 सीटें मिली, जिसमें सपा को 47 और कांग्रेस को 7 सीटों पर जीत मिली थी. इतिहास में पहले बार कांग्रेस यूपी में दहाई के आंकड़े को नहीं छू पाई.
विधानसभा चुनाव में इस हार के बाद दोनों दलों के बीच खटपट बढ़ी और दोनों के रास्ते अलग हो गए. इसके बाद अखिलेश यादव ने मायावती के साथ जाने का मन बनाया और 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले सपा और बीएसपी के बीच गठबंधन हुआ. इस गठबंधन में आरएलडी को भी रखा गया. लेकिन बीजेपी के खिलाफ बने इस महागठबंधन से कोई फायदा नहीं हुआ. तीनों दलों ने मिलकर 15 सीटों पर जीत दर्ज की. हालांकि आरएलडी एक भी सीट नहीं जीत सकी.
पिछली बार चुनाव से पहले महागठबंधन
पहले की तरह चुनाव में हार के बाद खटपट बढ़ी और दोनों पार्टियों के रास्ते अलग हो गए. लेकिन बीते विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने फिर एक प्रयोग किया. इस बार सपा के साथ गठबंधन में पांच पार्टियों को जगह दी गई. चाचा शिवपाल यादव की पार्टी प्रसपा, सुभासपा, अपमा दल कमेरावादी, महान दल और आरएलडी के साथ सपा का गठबंधन हुआ. चुनाव के बाद परिणाम आए तो इस गठबंधन की हार हुई.
इस बार के चुनाव में सपा गठबंधन को 125 सीटें मिली. चुनाव के बाद प्रसपा और सुभासपा की सपा से खटपट बढ़ी और दोनों दल गठबंधन से अलग हो गए. हालांकि मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद अखिलेश यादव और चाचा शिवपाल फिर साथ आए. चाचा शिवपाल यादव की पार्टी प्रसपा का दिसंबर 2022 में सपा के साथ विलय हो गया. लेकिन विधानसभा चुनाव के बाद महान दल प्रमुख केशव देव मौर्य के साथ अखिलेश यादव की पार्टी की खटपट और गाड़ी विवाद चर्चा में रहा था.
अब फिर गठबंधन पर नया प्रयोग
हालांकि अब आगामी लोकसभा चुनाव से पहले अखिलेश यादव ने इंडिया गठंबधन के साथ चुनाव लड़ने की तैयारी कर रखी है. लेकिन इस गठबंधन की तस्वीर अभी साफ नहीं हुई है इससे पहले ही सपा गठबंधन से आरएलडी ने अलग होने का फैसला कर लिया है. जबकि राज्यसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों का ऐलान होने के बाद अपना दल कमेरावादी ने भी अखिलेश यादव को आंख दिखाना शुरू कर दिया हैं.
यानी अखिलेश यादव ने बीते चार चुनावों के दौरान यूपी में गठबंधन पर चार प्रयोग किए और चारों ही प्रयोग पूरी तरह फेल रहे हैं. इतना ही नहीं, हर बार चुनाव का रिजल्ट आने के बाद सपा के साथ गठबंधन में रही पार्टी ने अलग रास्ता बना लिया. ऐसे में अब अखिलेश यादव के द्वारा हर चुनाव में किए जा रहे गठबंधन पर नए-नए प्रयोग के कारण सवाल उठने लगे हैं.