यमुना अथॉरिटी का गड़बड़झाला, जानें क्या है मामला और क्यों हुआ चेयरमैन पर एक्शन

यह मामला एक नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के आदेश के बाद सामने आया, जिसमें कहा गया था कि यमुना एक्सप्रेसवे के बर्ड सेंचुरी क्षेत्र में बिल्डर्स को कुछ नियमों के तहत विशेष लाभ मिलना चाहिए था. लेकिन, आरोप ये हैं कि कुछ बिल्डर्स को फायदा मिला, जबकि अन्य को नकार दिया गया.
YIEDA Controversy

प्रतीकात्मक तस्वीर

YIEDA Controversy: यमुना एक्सप्रेसवे अथॉरिटी (YEIDA) में हाल ही में कुछ ऐसा हुआ, जिसकी वजह से योगी सरकार ने इस संस्था के चेयरमैन अनिल कुमार सागर को फायर कर दिया. यमुना एक्सप्रेसवे अथॉरिटी के अंदर कुछ गड़बड़ चल रही थी, जो अब उजागर हुई है. तो, चलिए जानते हैं कि क्या था पूरा मामला और क्यों इस कदर एक्शन लिया गया.

क्या है यमुना एक्सप्रेसवे अथॉरिटी?

यमुना एक्सप्रेसवे अथॉरिटी उत्तर प्रदेश सरकार की एक संस्था है, जो ग्रेटर नोएडा से लेकर आगरा तक के क्षेत्र में विकास कार्यों का संचालन करती है. इसकी जिम्मेदारी में भूमि आवंटन, परियोजनाओं का अनुमोदन, और विकास योजनाओं का प्रबंधन शामिल है. इसके अलावा, यह किसानों, निवेशकों और अन्य पक्षों के साथ काम करती है.

चेयरमैन अनिल कुमार सागर पर क्यों हुआ एक्शन?

अनिल कुमार सागर, जो सिर्फ यमुना एक्सप्रेसवे अथॉरिटी के चेयरमैन नहीं, बल्कि प्रमुख सचिव औद्योगिक विकास और प्रमुख सचिव आईटी एंड इलेक्ट्रॉनिक्स भी थे, के ऊपर आरोप लगे हैं. कहा गया कि उन्होंने कुछ बिल्डर्स को फायदा पहुंचाया, जबकि कुछ को नहीं दिया.

यह मामला एक नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के आदेश के बाद सामने आया, जिसमें कहा गया था कि यमुना एक्सप्रेसवे के बर्ड सेंचुरी क्षेत्र में बिल्डर्स को कुछ नियमों के तहत विशेष लाभ मिलना चाहिए था. लेकिन, आरोप ये हैं कि कुछ बिल्डर्स को फायदा मिला, जबकि अन्य को नकार दिया गया. इसके परिणामस्वरूप एक बिल्डर ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें यह सवाल उठाया गया कि एक जैसे मामलों में अलग-अलग फैसले क्यों किए जा रहे हैं.

हाईकोर्ट का आदेश और कार्रवाई

इस मामले में जब मामला हाईकोर्ट पहुंचा, तो इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अनिल कुमार सागर को उनके पद से हटाने का फैसला सुनाया. कोर्ट ने यह माना कि सागर ने जो फैसले लिए वो सही नहीं थे. इसके बाद, यूपी सरकार ने उन्हें “प्रतिक्षारत” (अवकाश) कर दिया, यानी उन्हें अब किसी काम में शामिल नहीं किया जाएगा. साथ ही, यमुना एक्सप्रेसवे अथॉरिटी की आगामी बोर्ड बैठक भी स्थगित कर दी गई, जिससे कई महत्वपूर्ण मुद्दे अटक गए, जैसे कि किसानों के मामले.

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रिव्यू पीटिशन का असर?

सरकार ने इस मामले की रिव्यू याचिकाओं के लिए नए अधिकारी नियुक्त किए हैं. अब यमुना एक्सप्रेसवे अथॉरिटी और अन्य संबंधित मामलों को सुनने के लिए अभिषेक प्रकाश, राम्या आर, और पीयूष वर्मा जैसे अधिकारियों को नियुक्त किया गया है. इससे यह साफ है कि पहले जहाँ मुख्य सचिव स्तर के अधिकारियों के पास यह अधिकार था, अब इसे अन्य अधिकारियों के हाथ में दे दिया गया है.

क्या यह पहला मामला है?

यह पहला मामला नहीं है, जब किसी सीनियर अधिकारी को हटाया गया हो. इससे पहले भी कई बार अदालतों ने सीनियर अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की है, जैसे कि राजेश कुमार सिंह और मनोज सिंह को हटाया गया था. यह बताता है कि सरकारी तंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही कितनी अहम है.

बोर्ड बैठक की देरी और किसानों पर असर

अनिल कुमार सागर के हटाए जाने से यमुना एक्सप्रेसवे अथॉरिटी की बोर्ड बैठक 23 दिसंबर को होने वाली थी, जिसे अब स्थगित कर दिया गया है. इस बैठक में नोएडा एयरपोर्ट की कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए 21 सड़कों के निर्माण का प्रस्ताव रखा जाना था. इसके अलावा, किसानों के मुद्दों को सुलझाने के लिए भी एक कमेटी बनाई गई थी, जो अब देरी का शिकार हो सकती है. किसानों की समस्याओं का समाधान अब टल सकता है, क्योंकि कमेटी की मीटिंग में कोई ठोस परिणाम नहीं निकल सका है.

इस पूरे घटनाक्रम से यह साफ संदेश मिलता है कि सरकारी अधिकारियों को अपनी जिम्मेदारी और पारदर्शिता से काम करना चाहिए. जब भी कोई बड़ी योजना या प्रोजेक्ट हो, तो उस पर सही तरीके से काम होना चाहिए, ताकि न तो किसानों का नुकसान हो और न ही निवेशकों का. यदि कोई अधिकारी अपने अधिकार का दुरुपयोग करता है, तो वह ना सिर्फ अपनी नौकरी से हाथ धोता है, बल्कि जनता का विश्वास भी खोता है.

यमुना एक्सप्रेसवे अथॉरिटी का गड़बड़झाला एक बड़ा उदाहरण है कि कैसे सरकार को अपनी नीतियों को लागू करने में अधिक सावधानी बरतनी चाहिए, ताकि ऐसे विवाद न उत्पन्न हों और विकास कार्य सही दिशा में आगे बढ़े.


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