ईरान के आसमान में इजरायल की एयर सुप्रीमेसी, न प्रॉक्सी काम आए, न रूस-चीन…खामेनेई को कई ‘झटके’ दे गई जंग

Israel Iran war: युद्ध शुरू होते ही मोसाद ने ईरान में आईआरजीसी कमांडर्स और न्यूक्लियर वैज्ञानिकों को टारगेट करना शुरू कर दिया.
Israel Iran War

डोनाल्ड ट्रंप, अयातुल्ला खामेनेई और बेंजामिन नेतन्याहू

Israel Iran War: इजरायल और ईरान के बीच 12 दिनों से जारी जंग अब खत्म हो गई है. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने सीजफायर का ऐलान करते हुए कहा कि दोनों देशों ने ‘पूर्ण और संपूर्ण युद्धविराम’ की घोषणा की है. दोनों देशों के बीच ये सीजफायर लागू हो गया है. 12 दिन तक चला इजरायल के साथ ईरान का युद्ध सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामेनेई के लिए किसी झटके से कम नहीं रहा है. इस युद्ध में ईरान की कई कमियां सामने आई हैं, जो उसे भविष्य में किसी भी युद्ध जैसी स्थिति से निपटने से पहले सोचने के लिए मजबूर करेगी.

इजरायल की एयर सुप्रीमेसी

इस युद्ध में इजरायल ने ऑपरेशन राइजिंग लायन के तहत कुछ ही दिनों में ईरान के आसमान पर अपना प्रभुत्व जमा लिया. इजरायल के फाइटर जेट्स अपनी मर्जी के मुताबिक 50-100 की संख्या में आते और ईरानी इलाकों पर बम बरसाकर आराम से चले जाते. उनको रोकने में ईरान का एयर डिफेंस बुरी तरह नाकाम रहा. इजरायल ने युद्ध के पहले 24 घंटों में ही ईरान के एयर डिफेंस को तहस-नहस कर दिया. इजरायल ने 120 एयर डिफेंस सिस्टम को तबाह कर दिया. ईरान के S-300, बावर-373 जैसे एयर डिफेंस इजरायल के हमलों के आगे बेबस नजर आए. ईरान के आसमान पर इजरायल के इसी कब्जे ने अमेरिका को चिंताओं से काफी तक मुक्त कर दिया और बी-2 बॉम्बर्स ने ईरान के परमाणु ठिकानों को बिना किसी रोक-टोक निशाना बना दिया.

रूस-चीन का नहीं मिला साथ

इजरायल ने हमले के दौरान ईरान के परमाणु, सैन्य और मिसाइल ठिकानों को निशाना बनाया. टॉप सैन्य कमांडर्स को मार गिराया. कई परमाणु वैज्ञानिकों को मार दिया. वहीं अमेरिका ने भी फोर्डो, नतांज और इस्फहान के परमाणु ठिकानों को निशाना बनाया. लेकिन, जिस रूस-चीन के समर्थन की आस ईरान लगाए बैठा था, वैसा हुआ नहीं. ईरान के समर्थन में रूस-चीन ने बयान तो दिए लेकिन खुलकर युद्ध में उतरने से परहेज किया. तेहरान धुआं-धुआं होता रहा लेकिन न चीन ही आगे आया और न रूस ने ही ईरान की तरफ खड़े होने की जरूरत समझी. दरअसल, रूस खुद यूक्रेन के साथ तीन साल से जंग लड़ रहा है और ऐसे में वह एक और मोर्चे पर युद्ध नहीं शुरू करना चाहता था. चीन ने भले ही पिछले दरवाजे से ईरान की मदद की, लेकिन सामने से जरूरत पर खड़ा नहीं हुआ.

प्रॉक्सी रणनीति नहीं आई काम

ईरान को उम्मीद थी कि हिजबुल्लाह, हूती और हमास इजरायल को घेरने में कामयाब होंगे. लेकिन, ईरान पर हमले से पहले ही इजरायल ने इन तीनों की कमर तोड़ दी थी. ईरान की प्रॉक्सी रणनीति अबकी इजरायल के खिलाफ काम नहीं आई और जब इजरायल ने हवाई हमले शुरू किए तो ईरान के पास उनके हमलों का जवाब नहीं था. इससे भी बड़ी बात ये थी कि ईरान के साथ अन्य मुस्लिम देश खड़े नजर नहीं आए. यहां तक कि पाकिस्तान ने भी ईरान को ‘धोखा’ दिया.

मिसाइलों का बेतरतीब हमला नहीं डाल पाया व्यापक असर

इजरायल का लगभग हर हमला बेहद सटीक रहा. चाहें सैन्य ठिकानों को तबाह करने की बात हो या फिर ड्रोन या एयरस्ट्राइक में टॉप कमांडर्स को ढेर करने की बात… इजरायल का हर हमला असरदार साबित हुआ. लेकिन, मध्य पूर्व में सबसे बड़ा मिसाइल जखीरा रखने के बाद भी ईरान अपने हमलों से इजरायल में वह तबाही नहीं मचा सका, जिसकी वह उम्मीद लगाए बैठा था.

ईरान के पास करीब 2000 बैलिस्टिक मिसाइलें थीं, जिनमें से युद्ध में करीब 500 से अधिक मिसाइलें इजरायल पर दागीं. लेकिन इन मिसाइलों का व्यापक असर देखने को नहीं मिला. करीब 90 फीसदी हमलों को इजरायल ने नाकाम कर लिया. हालांकि सुपरसोनिक मिसाइलों को रोकने में इजरायली एयर डिफेंस नाकाम रहा और इस मिसाइल ने बीर शेवा में काफी नुकसान पहुंचाया, जहां मेडिकल सेंटर पर हमले में 70 से ज्यादा लोग घायल हुए. हाइफा तेल रिफायनरी को भी ईरान नुकसान पहुंचाने में कामयाब रहा.

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इसके अलावा उनकी अधिकांश मिसाइलें डायवर्ट होकर रिहायशी इलाकों में ही गिरीं. शुरू में 100+ मिसाइलें दागने वाले ईरान की तरफ से युद्ध बढ़ने के साथ ही मिसाइलों की संख्या 10-15 तक पहुंच गई. वहीं इजरायल अपने फाइटर जेट्स से सीधे और सटीक हमलों से ईरान के सैन्य ठिकानों और मिसाइल लॉन्चरों को तबाह करता रहा. शायद यही वजह रही कि ईरान की तरफ से मिसाइल हमलों में कमी आते गई.

मोसाद ने ईरान के नाक के नीचे तैयार की हमले की ‘स्क्रिप्ट’

युद्ध शुरू होते ही मोसाद ने ईरान में आईआरजीसी कमांडर्स और न्यूक्लियर वैज्ञानिकों को टारगेट करना शुरू कर दिया. मोसाद ने IDF को इनके बारे में सटीक खुफिया जानकारी दी, जिसकी बदौलत इजरायल न ईरान के 21 सैन्य कमांडर्स और 10 से ज्यादा परमाणु वैज्ञानिकों को मार दिया. इस दौरान चौंकाने वाला खुलासा यह भी हुआ कि मोसाद ने ईरान में ड्रोन बेस बना रखा था और स्थानीय रूप से कई कोवर्ट ऑपरेशन को अंजाम देकर ईरान को बड़ा नुकसान पहुंचाया. लेकिन, ईरान को इसकी पहले भनक तक न लगी.

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