चीन-पाकिस्तान के रिश्तों में तनाव, CPEC के सबसे बड़े प्रोजेक्ट से ड्रैगन ने खींचा हाथ, जानें क्या है वजह

China-Pakistan: चीन ने अपनी महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड पहल के तहत पाकिस्तान में चल रहे 60 अरब डॉलर के CPEC प्रोजेक्ट के एक प्रमुख रेल प्रोजेक्ट से अचानक फंडिंग रोक दी है.
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चीन और पाकिस्तान की दोस्मेंता में आई दरार

China-Pakistan: चीन और पाकिस्तान की ‘लोहे जैसी दोस्ती’ में हाल के दिनों में दरार की खबरें सामने आ रही हैं. चीन ने अपनी महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड पहल के तहत पाकिस्तान में चल रहे 60 अरब डॉलर के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (China-Pakistan Economic Corridor, CPEC) प्रोजेक्ट के एक प्रमुख रेल प्रोजेक्ट से अचानक फंडिंग रोक दी है. यह रेल प्रोजेक्ट पाकिस्तान के रेको दिक माइनिंग प्रोजेक्ट से भी जुड़ा था, जिसे पाकिस्तान अपनी अर्थव्यवस्था को सुधारने की उम्मीद के रूप में देख रहा था. आखिर क्या वजह है कि ‘सदाबहार दोस्त’ कहे जाने वाले चीन ने अपने कदम पीछे खींच लिए?

CPEC और रेल प्रोजेक्ट का महत्व

चीन-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) दोनों देशों के बीच रणनीतिक और आर्थिक साझेदारी का प्रतीक माना जाता है. इस परियोजना का उद्देश्य पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से चीन के शिनजियांग प्रांत तक सड़क, रेल और ऊर्जा ढांचे के माध्यम से संपर्क स्थापित करना है. 2015 में शुरू हुए इस प्रोजेक्ट में चीन ने 60 अरब डॉलर के निवेश का वादा किया था, जिसमें 1800 किमी लंबे रेल ट्रैक को अपग्रेड करने की योजना भी शामिल थी. यह रेल प्रोजेक्ट रेको दिक माइनिंग प्रोजेक्ट से जुड़ा हुआ है, जो हर साल 2 लाख टन तांबा और सोना उत्पादन करने की क्षमता रखता है. इस प्रोजेक्ट को पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए गेम-चेंजर माना जा रहा था.

चीन ने क्यों खींचा हाथ?

चीन ने इस रेल प्रोजेक्ट के लिए फंडिंग रोक दी है, जिससे पाकिस्तान को बड़ा झटका लगा है. इसके पीछे कई कारण सामने आ रहे हैं:

आर्थिक दबाव और कर्ज का जाल: पाकिस्तान पहले से ही CPEC से जुड़े 27.4 बिलियन डॉलर के कर्ज के बोझ तले दबा हुआ है. चीन को डर है कि पाकिस्तान की बिगड़ती आर्थिक स्थिति के कारण यह कर्ज और जोखिम भरा हो सकता है.

सुरक्षा चिंताएं: CPEC परियोजनाओं, खासकर ग्वादर पोर्ट और बलूचिस्तान में, आतंकवादी हमलों और स्थानीय विरोध का सामना करना पड़ रहा है. बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी जैसे समूहों ने चीनी श्रमिकों और परियोजनाओं को निशाना बनाया है, जिससे चीन की चिंता बढ़ी है.

भू-राजनीतिक रणनीति: हाल के ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत की सैन्य कार्रवाइयों ने पाकिस्तान की हवाई रक्षा प्रणाली की कमजोरियों को उजागर किया. इस दौरान पाकिस्तान द्वारा इस्तेमाल की गई चीनी PL-15 मिसाइलें और HQ-9C रक्षा प्रणाली प्रभावी साबित नहीं हुईं, जिससे चीन की सैन्य विश्वसनीयता पर सवाल उठे. इससे चीन ने अपनी रणनीति पर पुनर्विचार शुरू किया.

भारत के साथ संबंधों का संतुलन: चीन का भारत के साथ 11.92 लाख करोड़ रुपये का व्यापार है, और वह भारत के साथ तनाव बढ़ाकर अपनी अर्थव्यवस्था को जोखिम में नहीं डालना चाहता. ऑपरेशन सिंदूर के बाद चीन ने पाकिस्तान का खुलकर समर्थन नहीं किया, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव की खबरें उभरीं.

दोनों देशों के रिश्तों में खटास

ऑपरेशन सिंदूर, जिसमें भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की, ने चीन-पाकिस्तान संबंधों पर गहरा प्रभाव डाला. इस दौरान चीन ने पाकिस्तान को सैन्य सहायता दी, लेकिन उसकी मिसाइलें और रक्षा प्रणालियां नाकाम रहीं.

चीन ने इस ऑपरेशन के दौरान पाकिस्तान का खुलकर समर्थन नहीं किया, जिससे पाकिस्तान में निराशा बढ़ी.

पाकिस्तान ने इस मुद्दे पर अमेरिका से बातचीत की, जिससे चीन को लगा कि उसकी अनदेखी की गई.

इन घटनाओं ने दोनों देशों के बीच विश्वास की कमी को उजागर किया.

ग्वादर पोर्ट और बलूचिस्तान की चुनौतियां

ग्वादर पोर्ट CPEC का दिल माना जाता है, लेकिन यह क्षेत्र कई समस्याओं से घिरा है:

बलूच विद्रोह: बलूचिस्तान में स्थानीय लोग CPEC को अपनी जमीन और संसाधनों पर कब्जे के रूप में देखते हैं, जिसके कारण चीनी श्रमिकों पर हमले बढ़े हैं.

पर्यावरणीय समस्याएं: ग्वादर में तेजी से हो रहे निर्माण कार्यों ने बाढ़ जैसी समस्याओं को जन्म दिया है, जिससे स्थानीय लोगों में असंतोष बढ़ा है.

सुरक्षा लागत: पाकिस्तान में हजारों चीनी सुरक्षाकर्मी तैनात हैं, जो पाकिस्तान की संप्रभुता के लिए चिंता का विषय बन रहा है.

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पाकिस्तान की बढ़ती निर्भरता

पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था चीन पर अत्यधिक निर्भर हो गई है. केमिकल, स्टील, कपड़ा और कृषि उपकरणों जैसे क्षेत्रों में पाकिस्तान चीन से आयात पर निर्भर है.

CPEC के तहत लिए गए कर्ज ने पाकिस्तान को आर्थिक संकट में डाला है. 2023 तक 27.4 बिलियन डॉलर के प्रोजेक्ट पूरे हो चुके हैं, और ऊर्जा क्षेत्र के लिए 16 बिलियन डॉलर का अतिरिक्त कर्ज लिया गया है.

एक्सपर्ट्स का कहना है कि चीन ने सस्ते कर्ज के बजाय अपनी शर्तों पर सौदे किए, जिससे पाकिस्तान के लिए स्थिति और जटिल हो गई है.

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