MP News: मंदसौर का अनोखा द्विमुखी चिंताहरन मंदिर; यहां मूर्ति के दोनों तरफ हैं भगवान गणेश की प्रतिमा, पूजा से पूरी होती है मनोकामना
MP News: मंदसौर, मध्यप्रदेश का ऐतिहासिक शहर है. वैसे तो मंदसौर भगवान पशुपतिनाथ के मंदिर की वजह से जाना जाता है. शिवना किनारे स्थित ये मंदिर जिसमें दुनिया का एकमात्र शिवलिंग है जिसके 8 मुख हैं. इस मंदिर के अलावा इस शहर में एक और मंदिर है जो बहुत फेमस है. द्विमुखी चिंताहरण गणेश मंदिर इस शहर की पहचान है. ये मंदिर अपने आप में कई सारी खूबियां लिए हुए है.
भगवान गणेश के इस मंदिर में ऐसी मूर्ति है जो इसे अनोखा और अद्वितीय बनाती है. इस मूर्ति में एक ओर भगवान गणेश की 5 सूंड वाली छवि है और दूसरी ओर एक सूंड वाली छवि है. ये विश्व की एकमात्र प्रतिमा है जिसके दोनों ओर मुख हैं.
विस्तार से जानते हैं इस मंदिर के बारे में.
मंदिर में भगवान गणेश की मूर्ति स्थानक अवस्था में है
भगवान गणेश के इस मंदिर में मूर्ति स्थानक अवस्था में है यानी खड़ी हुई अवस्था में है. इस मूर्ति की ऊंचाई 8 फीट है. मूर्ति एक ही पत्थर से बनी है जिसके आगे की ओर 5 सूंड है और पीछे की ओर एक सूंड है.
पांच सूंड वाले गणेश और एक सूंड वाले गणेश
भगवान गणेश की ऐसी बहुत कम मूर्तियां होती हैं जिनकी 5 सूंड होती है. ऐसा कहा जा सकता है कि 5 सूंड वाले गणेश जी का मंदिर दुर्लभ होता है. इन्हें ‘रिद्धि-सिद्धि’ का दाता कहा जाता है. रिद्धि का अर्थ बुद्धि है और सिद्धि का अर्थ किसी कार्य में सिद्ध हो जाने से है यानी कमांड हासिल कर लेना. 5 सूंड वाले भगवान गणेश की पूजा करने से रिद्धि और सिद्धि हासिल होती है.
ऐसी मान्यता है कि गणेश की 5 सूंड का मतलब पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष और नैवेध) से है. कई विद्वान गणेश जी की 5 सूंड को 5 तत्वों से जोड़ते हैं. ये पांच तत्व आकाश, हवा, आग, धरती और पानी है. पंचसुंडी मुख की ओर वाले गणेश युवा अवस्था में हैं. सूंड की बात करें तो बाईं ओर है जिसका अर्थ शास्त्रों में सुख-शांति और समृद्धि बताया गया है.
इस मूर्ति के दूसरी ओर एक सूंड वाले गणेश हैं. मूर्ति में गणेश जी एक सेठ की तरह दिखाई देते हैं. एक सूंड वाले भगवान गणेश को श्रेष्ठि के रूप में जाना जाता है. इनकी सूंड दाईं ओर है जिसका अर्थ विधिवत पूजा करने से मनोकामना पूरी होती है. ऐसा कहा जाता है कि गणेश की पीठ की ओर दरिद्रता रहती है लेकिन मंदसौर के इस मंदिर में दोनों भगवान की पीठ दिखाई नहीं देती है.
द्विमुखी चिंताहरण गणेश की मूर्ति 9वीं शताब्दी की है
साल 1922 की बात है. ऐसा कहा जाता है कि मूलचंद सर्राफ ने इस प्रतिमा की स्थापना की थी. मान्यता है कि मूलचंद को सपने में भगवान गणेश ने दर्शन दिए. सपने में भगवान गणेश ने सैय्यद नाहर की दरगाह के पास तालाब से मूर्ति निकालने के लिए कहा गया. जब मूर्ति को बैलगाड़ी से नरसिंहपुरा ले जाया जा रहा था तो चौक इलाके में बैलगाड़ी आकर रुक गई आगे नहीं बढ़ी. इसके बाद निर्णय लिया गया की भगवान गणेश की प्रतिमा को चौक इलाके में स्थापित किया जाएगा. इस चौक को गणपति चौक के नाम से जाना जाता है.
इस मंदिर में पूजा अर्चना से पूरी होती है मनोकामना, दूर होती है चिंता
द्विमुखी चिंताहरन मंदिर में पूजा-अर्चना करने से मनोकामना पूरी होती है. इससे चिंता दूर होती है. जहां 5 सूंड वाले गणेश भगवान सुख-समृद्धि देते है. वहीं एक सूंड वाले गणेश की पूजा करने से मनोकामना पूरी होती है. जैसा नाम वैसा फल देते हैं भगवान गणेश का द्विमुखी चिंताहरन स्वरुप.