वाराणसी के 115 साल पुराने कॉलेज पर वक्फ ने क्यों किया दावा?

नवाब टोंक के समय से यह मस्जिद अस्तित्व में है, और यहां पर नमाज अदा करने की परंपरा काफी पुरानी है. इस समय में भी कुछ लोग यह दावा कर रहे हैं कि मस्जिद और उसका परिसर उसी समय से वक्फ संपत्ति है, जब नवाब टोंक ने इसे दान किया था.
Udai Pratap College Controversy

Udai Pratap College Controversy: वाराणसी के प्रतिष्ठित उदय प्रताप कॉलेज के परिसर को लेकर वक्फ बोर्ड ने बड़ा दावा किया है. इसके बाद से बवाल जारी है. पिछले दिनों वक्फ बोर्ड ने इस कॉलेज परिसर में स्थित मस्जिद और उसके आसपास की जमीन को अपनी संपत्ति घोषित कर दिया है. वक्फ बोर्ड का दावा है कि यह जमीन टोंक के नवाब ने दान में दी थी और अब यह वक्फ संपत्ति है. हालांकि, अब कॉलेज के छात्रों ने वक्फ के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. छात्रों ने कॉलेज परिसर में मस्जिद के पास हनुमान चालीसा का पाठ भी किया है.

छात्रों ने वक्फ बोर्ड का पुतला फूका

कॉलेज के छात्र इस मामले को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, और उनका विरोध थमने का नाम नहीं ले रहा. छात्रों ने कॉलेज परिसर में स्थित मस्जिद के नजदीक मार्च निकाला और वक्फ बोर्ड का पुतला फूका. इस दौरान छात्रों ने नारेबाजी करते हुए अपना विरोध जताया.

छात्रों ने घोषणा की है कि अगर अगले जुमे को सैकड़ों लोग मस्जिद में नमाज अदा करने के लिए आते हैं, तो वे इसका विरोध करेंगे. उनका कहना है कि जब तक इस मामले का पूरी तरह से समाधान नहीं हो जाता, तब तक मस्जिद में सिर्फ 5 से 6 लोग ही नमाज अदा करें.

विरोध में छात्रों ने यह भी ऐलान किया है कि वे श्री हनुमान चालीसा का सामूहिक पाठ करते रहेंगे. उनका कहना है कि यह पूरा परिसर कॉलेज के संस्थापक राजर्षि उदय प्रताप सिंह जुदेव और कॉलेज के छात्रों का है. इसलिए इस परिसर पर किसी धार्मिक स्थल का वक्फ संपत्ति के रूप में दावा बिल्कुल अस्वीकार्य है.

अलर्ट मोड पर प्रशासन

विरोध के बढ़ते असर को देखते हुए पुलिस प्रशासन भी अलर्ट मोड पर है. पिछले कुछ दिनों से कॉलेज परिसर में अतिरिक्त पुलिस बल तैनात किया जा रहा है, ताकि शांति बनाए रखी जा सके. प्रशासन का लक्ष्य यह है कि कॉलेज में पढ़ाई का माहौल जारी रहे और मस्जिद में नमाज अदा करते वक्त कोई अव्यवस्था न हो.

कब से जारी है विवाद?

बता दें कि यह मामला सबसे पहले साल 2018 में उठा था. उस समय सामने आया जब वक्फ बोर्ड ने कॉलेज प्रशासन को एक नोटिस भेजा, जिसमें यह दावा किया गया कि कॉलेज परिसर में स्थित मस्जिद और आसपास की भूमि वक्फ संपत्ति के रूप में नवाब टोंक ने दान में दी थी.

हालांकि, कॉलेज प्रशासन ने इस दावे को पूरी तरह से खारिज कर दिया. कॉलेज के प्राचार्य डीके सिंह का कहना है कि कॉलेज की संपत्ति न्यास के अधीन है, और इसे न तो बेचा जा सकता है, न ही इसे वक्फ संपत्ति के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है. उन्होंने यह भी कहा कि यह मस्जिद अवैध रूप से बनाई गई थी, और यह कॉलेज की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं रखती. इसके बाद, वक्फ बोर्ड ने मस्जिद में निर्माण कार्य करने की कोशिश की, लेकिन कॉलेज प्रशासन की शिकायत पर पुलिस ने 2022 में इसे रुकवा दिया.

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विवाद का ‘बिजली कनेक्शन’

इस पूरे विवाद में एक और महत्वपूर्ण बिंदु है – बिजली कनेक्शन. कॉलेज प्रशासन का आरोप है कि मस्जिद में अवैध रूप से कॉलेज का बिजली कनेक्शन इस्तेमाल किया जा रहा था, जिसे बाद में काट दिया गया. इसके साथ ही, वक्फ बोर्ड के आरोपों को लेकर मस्जिद में नियमित रूप से नमाज अदा करने वाले मनउर रहमान ने कहा कि मस्जिद और उसके आसपास की जमीन नवाब टोंक के जमाने से वक्फ संपत्ति है और इसके संबंध में कोई विवाद नहीं होना चाहिए.

मनउर रहमान का कहना है कि मस्जिद में बिजली का कनेक्शन कॉलेज और मस्जिद प्रशासन के आपसी समझौते से जोड़ा गया था, और पहले के बिजली कनेक्शन के दस्तावेज भी उनके पास मौजूद हैं. इसके बावजूद, उन्होंने आरोप लगाया कि बिना किसी कारण के विवाद खड़ा किया जा रहा है.

यह विवाद केवल वक्फ बोर्ड और कॉलेज प्रशासन के बीच नहीं है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण हो गया है. इस मस्जिद का संबंध नवाब टोंक से जुड़ा हुआ बताया जा रहा है, जो ऐतिहासिक दृष्टि से एक अहम पहलू है. नवाब टोंक के समय से यह मस्जिद अस्तित्व में है, और यहां पर नमाज अदा करने की परंपरा काफी पुरानी है. इस समय में भी कुछ लोग यह दावा कर रहे हैं कि मस्जिद और उसका परिसर उसी समय से वक्फ संपत्ति है, जब नवाब टोंक ने इसे दान किया था.

कब हुई थी उदय प्रताप कॉलेज की स्थापना

उदय प्रताप कॉलेज की स्थापना 1921 में हुई थी और यह कॉलेज वाराणसी में एक प्रमुख शैक्षिक संस्थान के रूप में स्थापित हुआ. इसकी शुरुआत राजर्षि उदय प्रताप सिंह जुदेव ने की थी, जिन्होंने पहले 1909 में हीवेट क्षत्रीय हाई स्कूल की स्थापना की थी, जिसे बाद में 1921 में इंटरमीडिएट कॉलेज का रूप दिया गया. 1949 में यहां स्नातक कक्षाओं की शुरुआत हुई और तब से यह कॉलेज डिग्री कॉलेज के रूप में कार्य कर रहा है.

हाल ही में, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस कॉलेज के 115वें स्थापना दिवस समारोह को संबोधित किया था. इस कॉलेज की ऐतिहासिक और शैक्षिक अहमियत को देखते हुए यह विवाद केवल एक संपत्ति से जुड़ा हुआ मुद्दा नहीं बल्कि एक गहरी सांस्कृतिक और सामाजिक लड़ाई बन चुका है. अब यह देखना होगा कि इस मामले में आगे क्या कदम उठाए जाते हैं, और क्या यह कानूनी लड़ाई कॉलेज प्रशासन और वक्फ बोर्ड के बीच और गहराएगी, या इसका समाधान किसी समझौते के जरिए निकल जाएगा.

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