राज्यसभा सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस, जानिए क्या है उपराष्ट्रपति को हटाने की प्रक्रिया?

वर्तमान में राज्यसभा में विपक्ष के पास बहुमत नहीं है. भाजपा और उनके सहयोगियों के पास अधिकांश सीटें हैं, जो अविश्वास प्रस्ताव के पारित होने में रोड़ा डाल सकती हैं. ऐसे में विपक्ष का यह कदम एक राजनीतिक बयान हो सकता है, लेकिन इसके सफल होने की संभावना कम नजर आ रही है.
jagdeep dhankhar

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Rajya Sabha No-Confidence Motion: इंडिया गठबंधन के सांसदों ने राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वार प्रस्ताव का नोटिस लाया है. विपक्ष का आरोप है कि धनखड़ हमेशा सत्ता पक्ष का पक्ष लेते हैं. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर कुल 60 सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं. टीएमएसी, आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी के सांसदों ने अविश्वास प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए हैं.

क्या है अविश्वास प्रस्ताव ?

अविश्वास प्रस्ताव एक संसदीय प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य किसी सरकारी अधिकारी या पदाधिकारी के खिलाफ असंतोष व्यक्त करना होता है. भारत में राज्यसभा के सभापति खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाना संभव है. यदि यह प्रस्ताव संसद में बहुमत से पास हो जाए, तो सभापति को पद से हटा दिया जाता है. हालांकि, इस प्रस्ताव को पारित कराना एक चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया है, क्योंकि इसके लिए राज्यसभा में बहुमत की आवश्यकता होती है.

विपक्ष का आरोप

विपक्षी दलों का कहना है कि जगदीप धनखड़ ने राज्यसभा की कार्यवाही में पक्षपाती रवैया अपनाया है. विशेषकर जॉर्ज सोरोस से जुड़ी चर्चाओं के दौरान, धनखड़ ने विपक्षी सांसदों के विरोध के बावजूद सरकार के पक्ष में फैसले लिए. विपक्ष का आरोप है कि धनखड़ ने विपक्षी नेताओं को बोलने का पूरा अवसर नहीं दिया और कई बार उनके अधिकारों का उल्लंघन किया.

क्या है जॉर्ज सोरोस विवाद?

राज्यसभा में जॉर्ज सोरोस से जुड़े विवाद ने भी हंगामे को जन्म दिया. वेशक और राजनीतिक टिप्पणीकार सोरोस को लेकर भारत में काफी विवाद हुआ था. उनके बयान को लेकर राज्यसभा में तीखी बहस हुई, जिसमें धनखड़ के फैसले को लेकर विपक्ष ने असंतोष जताया.

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अविश्वास प्रस्ताव की प्रक्रिया

भारतीय संविधान के तहत, उपराष्ट्रपति (जो राज्यसभा के सभापति भी होते हैं) को हटाने के लिए एक विशेष प्रक्रिया अपनाई जाती है. राज्यसभा में अविश्वास प्रस्ताव पेश करने के लिए कम से कम 14 दिन पहले नोटिस देना जरूरी होता है. इसके बाद राज्यसभा के बहुमत से इसे मंजूरी प्राप्त करनी होती है, और यदि यह प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो फिर इसे लोकसभा में भी मंजूरी लेनी होती है.

क्या है संभावना?

वर्तमान में राज्यसभा में विपक्ष के पास बहुमत नहीं है. भाजपा और उनके सहयोगियों के पास अधिकांश सीटें हैं, जो अविश्वास प्रस्ताव के पारित होने में रोड़ा डाल सकती हैं. ऐसे में विपक्ष का यह कदम एक राजनीतिक बयान हो सकता है, लेकिन इसके सफल होने की संभावना कम नजर आ रही है.

यह अविश्वास प्रस्ताव विपक्षी दलों द्वारा एक रणनीतिक कदम के रूप में देखा जा रहा है. उनका लक्ष्य केवल सभापति के खिलाफ शिकायतों को उठाना नहीं, बल्कि एकजुट होकर यह दिखाना है कि वे सरकार के खिलाफ खड़े हैं.

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