‘प्रगति यात्रा’ से बिहार की राजनीति बदलने निकले CM नीतीश! समझिए क्या है JDU का पूरा सियासी फंडा
Bihar Politics: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए एक साल से भी कम समय बचा है, लेकिन राज्य में राजनीतिक गतिविधियां पहले से ही तेज हो चुकी हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) और विपक्षी दलों के बीच सियासी गहमागहमी बढ़ती जा रही है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी सियासी स्थिति को मजबूत करने के लिए ‘प्रगति यात्रा’ (Pragati Yatra) की शुरुआत की है. इस यात्रा के माध्यम से वह राज्य के विकास कार्यों का श्रेय खुद को देने की कोशिश कर रहे हैं. इसके साथ ही, यह यात्रा उनकी पार्टी जेडीयू की सियासी रणनीति का भी अहम हिस्सा है.
नीतीश कुमार की यात्रा का उद्देश्य
नीतीश कुमार की यह यात्रा 23 दिसंबर 2024 से शुरू हुई है, जो 28 दिसंबर तक चलेगी. यात्रा की शुरुआत बेतिया, पश्चिमी चंपारण जिले से हुई और इसके बाद मुख्यमंत्री अन्य जिलों का दौरा करेंगे. यात्रा के दौरान, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राज्य के विभिन्न हिस्सों में जाकर वहां की जनता से संवाद करेंगे और अपनी सरकार के द्वारा किए गए विकास कार्यों का ब्योरा देंगे.
पहले नीतीश कुमार ने इस यात्रा को ‘महिला संवाद यात्रा’ के रूप में आयोजित करने का ऐलान किया था. इसका उद्देश्य महिलाओं के बीच जाकर उन्हें सरकार द्वारा उनके कल्याण के लिए किए गए कार्यों के बारे में बताना था. लेकिन किसी कारणवश, यह यात्रा स्थगित हो गई और अब इसे ‘प्रगति यात्रा’ के रूप में आयोजित किया जा रहा है. इस यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राज्य के विकास कार्यों की समीक्षा करेंगे, खासकर उन योजनाओं का प्रचार करेंगे जो महिलाओं के कल्याण के लिए चलाई गई हैं.
जेडीयू का राजनीतिक संदेश
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में जेडीयू ने इस यात्रा के समर्थन में राज्य भर में पोस्टर भी लगाए हैं. इन पोस्टरों पर लिखा गया है, “बात बिहार की हो, नाम सिर्फ नीतीश कुमार का हो.” यह स्पष्ट रूप से एक राजनीतिक संदेश है, जिसमें यह बताया जा रहा है कि बिहार का विकास और सियासत केवल नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही संभव है. इन पोस्टरों के माध्यम से जेडीयू यह संदेश देना चाहती है कि नीतीश कुमार ही बिहार के विकास के प्रमुख चेहरा हैं और उनके नेतृत्व में ही राज्य की राजनीति और विकास का रास्ता सुनिश्चित किया जा सकता है.
इस तरह के पोस्टर से यह भी दिखाया जा रहा है कि नीतीश कुमार के बिना न तो बिहार में विकास हो सकता है और न ही किसी अन्य राजनीतिक दल के पास बिहार में सरकार बनाने की क्षमता है. जेडीयू इस यात्रा के जरिए यह भी बताना चाहती है कि राज्य में पिछले दो दशकों में जितना विकास हुआ है, उसका श्रेय नीतीश कुमार को जाता है. इसलिए, आगामी विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही चुनावी मैदान में उतरेगी.
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नीतीश कुमार का सियासी मिजाज
नीतीश कुमार की राजनीतिक यात्रा का उद्देश्य केवल राज्य में अपनी स्थिति को मजबूत करना नहीं है, बल्कि इसके जरिए वह बिहार की सियासत के ताने-बाने को भी समझना चाहते हैं. नीतीश कुमार को राजनीति का एक माहिर खिलाड़ी माना जाता है. उनकी राजनीति में हमेशा गठबंधनों का महत्व रहा है और वह समय-समय पर अपनी स्थिति के अनुसार गठबंधन बदलने में सक्षम रहे हैं.
हाल ही में बिहार में बीजेपी और जेडीयू के गठबंधन को लेकर कई बयानबाजी की घटनाएं सामने आई हैं. बीजेपी ने यह स्पष्ट किया है कि आगामी विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ही एनडीए के चेहरा होंगे. बिहार में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने कहा था कि नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही एनडीए गठबंधन विधानसभा चुनाव लड़ेगा. इसके अलावा, जेडीयू के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी ने भी इस बात की पुष्टि की कि आगामी चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा.
इसमें कोई शक नहीं कि नीतीश कुमार की स्थिति अभी मजबूत है, लेकिन बीजेपी का दबाव यह भी बन सकता है कि वह अपने मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर कोई बड़ा कदम उठाए. बीजेपी के पास एक अन्य रणनीति भी हो सकती है, जिसमें वह महाराष्ट्र की तरह अपना मुख्यमंत्री बनाए और नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटा दे. हालांकि, बिहार की राजनीति में बीजेपी के लिए यह काम आसान नहीं होगा, क्योंकि बिहार में नीतीश कुमार का प्रभाव बहुत गहरा है और राज्य में जेडीयू के बिना बीजेपी का सत्ता में आना मुश्किल है.
विपक्षी दलों ने क्या कहा?
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की यात्रा को लेकर विपक्षी दलों की प्रतिक्रिया भी सामने आई है. नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने इस यात्रा को लेकर कहा कि यह नीतीश सरकार की “अलविदा यात्रा” है, और यह राज्य में उनके शासन के खत्म होने का प्रतीक है. तेजस्वी यादव के इस बयान से यह स्पष्ट होता है कि बिहार की राजनीति में सत्ता और विपक्ष के बीच जुबानी जंग तेज हो गई है.
विपक्षी दलों का आरोप है कि नीतीश कुमार ने अपनी सरकार के दौरान कई बड़े वादे किए थे, जिन्हें उन्होंने पूरा नहीं किया. इस यात्रा के दौरान नीतीश कुमार जो विकास कार्यों की समीक्षा करने का दावा कर रहे हैं, विपक्ष इसे चुनावी राजनीति का हिस्सा मानता है.
बिहार में सियासी दांव-पेंच
बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर स्थिति बहुत ही दिलचस्प होगी. जहां एक ओर जेडीयू अपनी प्रगति यात्रा के जरिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को राज्य के विकास का चेहरा बनाकर चुनावी मैदान में उतारना चाहती है, वहीं बीजेपी और महागठबंधन दोनों ही पार्टियां अपने-अपने रणनीतिक दांव खेलने में लगी हैं. बीजेपी को महाराष्ट्र के चुनावों से एक नई उम्मीद मिली है और वह बिहार में भी अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है.
हालांकि, नीतीश कुमार की कुर्सी पर कोई खतरा फिलहाल नजर नहीं आता, क्योंकि उनकी पार्टी जेडीयू के पास केंद्रीय राजनीति में भी महत्वपूर्ण जगह है. केंद्र में मोदी सरकार की मदद से नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने अपनी सियासी स्थिति को मजबूत किया है. फिर भी, बिहार की सियासत में कोई भी बदलाव असंभव नहीं है और नीतीश कुमार के लिए यह समय चुनौतीपूर्ण हो सकता है.