जब गिरने वाली थी Manmohan Singh की सरकार, संकटमोचक बन सामने आए अमर और मुलायम, ऐसे बचाई थी PM की कुर्सी
Manmohan Singh: भारत की राजनीति में कई ऐसे मोड़ आए हैं, जब दिग्गज नेताओं की कूटनीतिक चतुराई ने सरकारों को बचाया या किसी संकट से उबारा. 2008 में ऐसा ही एक पल आया, जब दिग्गज नेता मनमोहन सिंह की सरकार संकट में घिरी हुई थी, और उस समय समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव और उनके करीबी सहयोगी अमर सिंह ने एक रणनीतिक चाल चलते हुए यूपीए सरकार को संकट से उबारा. यह घटना भारतीय राजनीति के एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में आज भी याद की जाती है.
यूपीए सरकार का संकट
साल 2008 में भारत की तत्कालीन यूपीए-1 सरकार एक बड़े राजनीतिक संकट में घिरी हुई थी. डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में चल रही यह सरकार, भारत और अमेरिका के बीच हुए न्यूक्लियर डील के खिलाफ वामपंथी दलों के विरोध का सामना कर रही थी. वामपंथी दलों ने इस समझौते के खिलाफ विरोध दर्ज करते हुए कांग्रेस से अपना समर्थन वापस ले लिया था. इसके चलते यूपीए सरकार को संसद में बहुमत खोने का खतरा था. यदि वाम दलों का समर्थन वापस लिया जाता, तो कांग्रेस के पास बहुमत नहीं बचता और यह सरकार गिर सकती थी.
यह स्थिति कांग्रेस के लिए एक गंभीर संकट बनी, क्योंकि सरकार की स्थिरता सीधे तौर पर वामपंथी दलों के समर्थन पर निर्भर थी. कांग्रेस के पास अपनी सरकार को बचाने के लिए आवश्यक संख्या की कमी थी. इस समय संकटमोचक के रूप में उत्तर प्रदेश के समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव और उनके करीबी सहयोगी अमर सिंह सामने आए.
मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह की कूटनीतिक
समाजवादी पार्टी का इस संकट के समय कांग्रेस के साथ आना भारतीय राजनीति में एक चौंकाने वाली घटना थी. मुलायम सिंह यादव ने यह फैसला किया कि उनकी पार्टी मनमोहन सिंह की सरकार को बचाने में सहयोग करेगी. हालांकि, यह निर्णय उनके लिए कई मायनों में कठिन था, क्योंकि वामपंथी दलों और कांग्रेस के बीच इस मुद्दे पर काफी तकरार हो चुकी थी. लेकिन मुलायम सिंह यादव ने अपने राजनीतिक रणनीति के तहत यह कदम उठाया, जिससे न सिर्फ उनकी पार्टी को फायदा हुआ, बल्कि यूपीए सरकार को संकट से बाहर निकलने का मौका मिला.
इस पूरी कवायद में मुलायम सिंह यादव के सबसे करीबी सहयोगी और समाजवादी पार्टी के महासचिव अमर सिंह की भूमिका बेहद अहम थी. अमर सिंह ने अपनी राजनीतिक चतुराई से कई निर्दलीय सांसदों और छोटे दलों को कांग्रेस के पक्ष में लामबंद किया. उनकी भूमिका उस समय एक रणनीतिकार की थी, जो केवल अपने पार्टी के सांसदों को मनाने तक सीमित नहीं थे, बल्कि उन्होंने कांग्रेस के पक्ष में अन्य सांसदों को भी जुटाया. अमर सिंह की यह कूटनीति इतनी सफल रही कि उन्होंने न सिर्फ समाजवादी पार्टी के सांसदों को कांग्रेस का समर्थन दिलवाया, बल्कि कई अन्य सांसदों को भी इस समर्थन में शामिल किया, जिनकी मदद से कांग्रेस को संसद में बहुमत प्राप्त हुआ.
अमर सिंह ने एक सशक्त और विस्तृत नेटवर्क तैयार किया, जिसमें उन्होंने कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के गठबंधन को राजनीतिक समर्थन दिलवाया. यह एक कड़ी राजनीतिक चतुराई और सहयोग का परिणाम था, जिसे उन्होंने पार्टी लाइन से ऊपर उठकर किया. यही कारण था कि मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह की जोड़ी ने यूपीए सरकार को गिरने से बचाया.
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मनमोहन सरकार का बचाव
समाजवादी पार्टी के समर्थन से कांग्रेस को संसद में अपना बहुमत बनाए रखने में मदद मिली. इस प्रकार, अमर सिंह और मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक कूटनीति ने यूपीए सरकार को बचा लिया. इस घटना के बाद से मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह की राजनीति में एक नया मोड़ आया, और उनके बीच कांग्रेस के साथ सहयोग का यह समय भारतीय राजनीति में एक अनूठा उदाहरण बन गया.
डॉ. मनमोहन सिंह का योगदान
डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में भारत ने कई ऐतिहासिक कदम उठाए थे. उनका कार्यकाल भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण परिवर्तनों का गवाह बना. 2004 से 2014 तक प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी और वैश्विक मंच पर भारत की स्थिति को सशक्त किया. उनकी सरकार ने अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील की, जो एक बड़ा राजनीतिक और कूटनीतिक कदम था. हालांकि इस डील को लेकर वामपंथी दलों ने विरोध किया,
मनमोहन सिंह का निधन भारतीय राजनीति के एक युग का अंत है. उनका योगदान हमेशा याद किया जाएगा, विशेष रूप से उनकी आर्थिक नीतियों और देश के विकास के लिए किए गए उनके प्रयासों के कारण.