‘महा मूर्ख सम्मेलन’ से लेकर ‘गधा यात्रा’ तक…पुरानी दिल्ली में पहले ऐसे मनाई जाती थी होली, दिलचस्प है कहानी
प्रतीकात्मक तस्वीर
Holi 2025: दिल्ली, और खासकर पुरानी दिल्ली, अपनी होली के लिए जानी जाती है. लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि पुरानी दिल्ली में होली के दिन एक गधा यात्रा भी निकाली जाती थी? जी हां, एक समय था जब चांदनी चौक के भागीरथ पले में होली का जश्न कुछ अलग तरीके से मनाया जाता था. ये न सिर्फ मनोरंजन के लिहाज से, बल्कि हास्य और व्यंग्य का अद्भुत संगम भी था. आइये इस रोचक परंपरा के बारे में विस्तार से जानते हैं.
गधा यात्रा और महामूर्ख सम्मेलन
चांदनी चौक के भागीरथ पैलेस में हर साल होली के मौके पर एक गधा यात्रा का आयोजन किया जाता था. इस यात्रा में गधे पर एक व्यक्ति को बैठाया जाता था, जिसे पूरे चांदनी चौक और आसपास के इलाकों में घुमाया जाता था. इस यात्रा के दौरान होली के गीत, चुटकुले और हंसी-मज़ाक का सिलसिला चलता था, जो सर्दी की धूप में गर्मी का एहसास देता था. फतेहपुरी चौक, फल सब्जी मंडी और कटरा जैसे मोहल्लों से होकर गुजरने वाली इस यात्रा में स्थानीय लोग भी काफी उत्साहित रहते थे. लोग जुलूस के स्वागत के लिए मिठाइयां और कोल्ड ड्रिंक लेकर खड़े होते थे, और इस तरह पूरा माहौल होली के रंगों में रंगा रहता था.
महामूर्ख सम्मेलन
गधा यात्रा के साथ ही एक और मजेदार आयोजन होता था – महामूर्ख सम्मेलन. इस सम्मेलन में देशभर से हास्य और व्यंग्य लेखक, साहित्यकार और कलाकारों को बुलाया जाता था. सम्मेलन के दौरान, एक व्यक्ति को ‘महामूर्ख’ की उपाधि दी जाती थी, और उसे गधे की मूर्ति पुरस्कार के रूप में दी जाती थी. यह सम्मेलन हास्य कवियों और साहित्यकारों के लिए एक मंच बन गया था, जहां वे अपनी रचनाओं के जरिए समाज में हलचल मचाते थे. इस सम्मेलन की खास बात ये थी कि इसमें हिस्सा लेने वाले लोग सिर्फ हास्य और व्यंग्य की दुनिया से ही नहीं, बल्कि कला, साहित्य और फिल्म उद्योग से भी होते थे. बॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री उमा देवी खत्री (जो टुनटुन के नाम से प्रसिद्ध थीं) और कवयित्री अमृता प्रीतम भी इस होली के कार्यक्रम में शिरकत करती थीं.
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परंपरा की कैसे हुई थी शुरुआत?
यह अद्भुत परंपरा पंडित गोपाल प्रसाद व्यास (लोकप्रिय हास्य कवि) द्वारा शुरू की गई थी. वह लगभग 40 वर्षों तक इस कार्यक्रम को आयोजित करते रहे. उनके बाद, स्थानीय पार्षद राम प्रकाश गुप्ता और सामाजिक कार्यकर्ता इंद्र कुमार जैन ने इस कार्यक्रम को जारी रखा. लेकिन दुर्भाग्यवश, पिछले 7-8 सालों से यह परंपरा बंद हो गई है, और अब पुरानी दिल्ली की होली में वह मजा और रंग नहीं दिखाई देता जैसा पहले हुआ करता था.
समाप्त होती परंपरा, यादें बरकरार
पुरानी दिल्ली में होली पर निकाली जाने वाली गधा यात्रा और महामूर्ख सम्मेलन न सिर्फ एक मजेदार आयोजन था, बल्कि यह पुरानी दिल्ली की संस्कृति का अहम हिस्सा बन चुका था. हालांकि यह परंपरा अब समाप्त हो चुकी है, लेकिन आज भी लोग इसे याद करते हैं और उसकी यादें उनके दिलों में जीवित हैं.