नेपाल में राजशाही को लेकर बवाल पर ओली सरकार सख्त, पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह से की जाएगी नुकसान की भरपाई
नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह
Nepal Protests: नेपाल की राजधानी काठमांडू में शुक्रवार को हुई हिंसा ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया. यहां राजशाही समर्थक आंदोलनकारियों ने जमकर तांडव किया है. इस प्रदर्शन में गाड़ियों को जलाने, घरों में तोड़फोड़ करने और लूटपाट की कई घटनाएं सामने आईं. पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पों के कारण स्थिति और भी तनावपूर्ण हो गई. हिंसा के दौरान एक टीवी कैमरामैन समेत दो लोगों मौत हो गई और 110 अन्य लोग घायल हो गए.
हालांकि, अब नेपाल सरकार ने कार्रवाई करते हुए पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह पर 7,93,000 नेपाली रुपये का जुर्माना लगाया है और उनके पासपोर्ट को रद्द करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. यह जुर्माना काठमांडू की सड़कों और फुटपाथों पर कचरा फैलाने, भौतिक संरचनाओं को नुकसान पहुंचाने, और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के आरोप में लगाया गया है.
कैसे हुई प्रदर्शन की शुरुआत?
हिंसक आंदोलन का नेतृत्व करने वाले दुर्गा प्रसाद ने एक दिन पहले पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह से मुलाकात की थी. इस मुलाकात में शाह ने उन्हें राजशाही और हिंदू राज्य की बहाली के लिए आंदोलन करने का निर्देश दिया था. पिछले दिनों पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह ने खुद कहा था कि समय आ गया है कि हम देश की रक्षा करने और राष्ट्रीय एकता लाने की जिम्मेदारी लें. इसके बाद, काठमांडू और नेपाल के अन्य हिस्सों में राजशाही की बहाली के लिए रैलियां आयोजित की गईं.
राजशाही के समर्थकों की यह मांग थी कि 2008 में समाप्त की गई 240 साल पुरानी राजशाही को फिर से बहाल किया जाए. हालांकि, इस आंदोलन को नेपाल के लोकतंत्र समर्थक दलों का विरोध भी झेलना पड़ा. विपक्षी दलों ने इसे देश के लिए खतरनाक बताते हुए राजतंत्र के खिलाफ अपनी आवाज उठाई.
प्रदर्शन के कारण नुकसान
काठमांडू के नागरिक निकाय ने इस हिंसक प्रदर्शन के कारण हुए सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान के लिए पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह पर जुर्माना लगाया है. जुर्माना 7,93,000 नेपाली रुपये है, जो कि कचरा प्रबंधन अधिनियम और काठमांडू मेट्रोपॉलिटन सिटी फाइनेंस एक्ट के उल्लंघन के तहत लगाया गया. इसमें कचरे का अनुचित निपटान, सड़कों पर भौतिक संरचनाओं को नुकसान और पर्यावरण को हुए नुकसान के लिए जिम्मेदार ठहराया गया. काठमांडू मेट्रोपॉलिटन सिटी ने शाह को एक पत्र भेजकर यह जुर्माना लगाने की सूचना दी.
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राजशाही समर्थकों की मांग
राजशाही समर्थक प्रदर्शनकारियों ने एक संयुक्त जन आंदोलन समिति का गठन किया था, जिसने सरकार से 1991 के संविधान को बहाल करने की मांग की थी. इस संविधान के तहत नेपाल में राजशाही और बहुदलीय संसदीय लोकतंत्र की व्यवस्था थी. इन प्रदर्शनकारियों का कहना था कि नेपाल एक हिंदू राष्ट्र है और राजशाही को फिर से बहाल किया जाना चाहिए. प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी भी दी थी कि अगर सरकार उनकी मांगों पर ध्यान नहीं देती, तो वे एक सप्ताह के भीतर उग्र प्रदर्शन करेंगे. लेकिन एक सप्ताह की समयसीमा के बिना ही शुक्रवार को ही उनका आंदोलन उग्र हो गया.
नेपाल में लोकतंत्र बनाम राजशाही की जंग
नेपाल में यह आंदोलन लोकतंत्र और राजतंत्र के बीच शुरू हुआ है. लोकतंत्र समर्थक दलों ने इस आंदोलन का कड़ा विरोध किया है. इनमें पूर्व प्रधानमंत्री पुष्पकमल दहाल प्रचंड की कम्युनिस्ट पार्टी-माओवादी केंद्र और पूर्व प्रधानमंत्री माधव नेपाल की सीपीएन-यूनिफाइड सोशलिस्ट पार्टी शामिल हैं. इन दलों का कहना है कि नेपाल के लोग लोकतंत्र के लिए संघर्ष कर चुके हैं और उन्होंने बलिदान दिया है. वे राजशाही को फिर से बहाल होने नहीं देंगे.