1931 के बाद फिर जाति जनगणना, जानिए तब कितने थे OBC, ब्राह्मण और राजपूत

भारत में आखिरी बार जाति जनगणना 1931 में हुई थी, जब देश ब्रिटिश शासन के अधीन था. उस समय आज का पाकिस्तान और बांग्लादेश भी भारत का हिस्सा थे. उस समय पूरे ब्रिटिश भारत की आबादी करीब 27 करोड़ थी. उस जनगणना में हर जाति की आबादी को विस्तार से दर्ज किया गया था.
Caste Census

प्रतीकात्मक तस्वीर

Caste Census: देश में एक बार फिर जाति जनगणना होने जा रही है. केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने फैसला किया है कि अब जनगणना में हर व्यक्ति को अपनी जाति की जानकारी भी देनी होगी. इससे यह साफ हो जाएगा कि भारत में और इसके अलग-अलग राज्यों में किस जाति के कितने लोग रहते हैं. यह डेटा सरकार को सामाजिक और आर्थिक नीतियां बनाने में मदद कर सकता है, ताकि समाज के हर वर्ग को उसका हक और फायदा मिल सके. आखिरी बार जाति जनगणना 1931 में हुई थी. आइए जानते हैं तब देश में OBC, ब्राह्मण और राजपूत समाज के लोगों की संख्या क्या थी.

जाति जनगणना क्यों जरूरी है?

जनगणना यानी देश की आबादी की गिनती. इसमें लोगों की संख्या, उनकी उम्र, शिक्षा, रोजगार और दूसरी जानकारियां इकट्ठा की जाती हैं. लेकिन जाति जनगणना में यह भी दर्ज किया जाता है कि कौन सी जाति के कितने लोग हैं. यह जानकारी इसलिए जरूरी है क्योंकि भारत में सामाजिक और आर्थिक नीतियां, जैसे आरक्षण, सरकारी योजनाएं और विकास कार्यक्रम, अक्सर जाति के आधार पर बनाए जाते हैं. सही आंकड़े होने से सरकार को यह समझने में मदद मिलती है कि किस समुदाय को कितनी मदद की जरूरत है.

आखिरी जाति जनगणना कब हुई थी?

भारत में आखिरी बार जाति जनगणना 1931 में हुई थी, जब देश ब्रिटिश शासन के अधीन था. उस समय आज का पाकिस्तान और बांग्लादेश भी भारत का हिस्सा थे. उस समय पूरे ब्रिटिश भारत की आबादी करीब 27 करोड़ थी. उस जनगणना में हर जाति की आबादी को विस्तार से दर्ज किया गया था. इसके बाद, आजादी के बाद की जनगणनाओं में सिर्फ अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के आंकड़े इकट्ठा किए गए. यानी, पिछले 94 सालों में देश में कोई पूरी जाति जनगणना नहीं हुई. इसलिए अब होने वाली जनगणना को ऐतिहासिक माना जा रहा है.

1931 की जनगणना में क्या पता चला?

1931 की जाति जनगणना के आंकड़े आज भी भारत के सामाजिक ढांचे को समझने का एकमात्र बड़ा आधार हैं. उस समय की कुछ खास बातें आसान भाषा में समझिए.

ओबीसी (पिछड़ा वर्ग): उस समय की जनगणना में पता चला था कि ओबीसी जातियों की आबादी कुल आबादी का 52% थी. यानी आधे से ज्यादा लोग ओबीसी समुदाय से थे. इस आंकड़े के आधार पर ही बाद में मंडल आयोग ने ओबीसी आरक्षण की सिफारिश की थी.

मुस्लिम: 1931 की जनगणना में मुसलमानों की आबादी 3.58 करोड़ थी, जो कुल आबादी का 10-12% था.

ब्राह्मण: ब्राह्मण उस समय सबसे बड़ा एकल जाति समूह थे. उनकी आबादी 1.5 करोड़ से ज्यादा थी. यह कुल आबादी का करीब 5.5% था.

जाटव: जाटव समुदाय दूसरे नंबर पर था, जिसकी आबादी 1.23 करोड़ थी. यह समुदाय आज अनुसूचित जाति (SC) में आता है.

राजपूत: राजपूत तीसरे सबसे बड़े समुदाय थे, जिनकी संख्या 81 लाख थी. यह कुल आबादी का लगभग 3% था.

कुनबी: महाराष्ट्र की कुनबी जाति की आबादी 64 लाख थी. यह समुदाय आज ओबीसी वर्ग में है. इसमें मराठा भी शामिल थे,

यादव (अहीर और ग्वाला): यादव समुदाय की बात करें तो अहीर की आबादी 56 लाख थी, और ग्वाला की आबादी 40 लाख थी. अगर दोनों को जोड़ दें, तो यादव समुदाय की कुल आबादी 96 लाख थी. इस हिसाब से वे ब्राह्मण और जाटव के बाद तीसरे सबसे बड़े समुदाय थे.

अन्य समुदाय: तेली समुदाय की आबादी 42 लाख थी, जबकि कायस्थ, कुर्मी और कुम्हार जैसे समुदाय भी लाखों में थे.

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राज्यों के हिसाब से आबादी

1931 में अलग-अलग क्षेत्रों में जातियों की आबादी में काफी अंतर था. उस समय राज्यों के नाम और सीमाएं आज से अलग थीं. कुछ प्रमुख क्षेत्रों की स्थिति इस तरह थी.

महाराष्ट्र (बॉम्बे प्रेसिडेंसी): यहां कुनबी और मराठा समुदाय की आबादी सबसे ज्यादा थी, जो 64 लाख थी.
उत्तर प्रदेश (संयुक्त प्रांत): उस समय यूपी में जाटव समुदाय की आबादी 63 लाख थी. उस समय उत्तराखंड भी यूपी का हिस्सा था.

बिहार और ओडिशा: यहां यादव (ग्वाला) समुदाय की आबादी 34 लाख थी, जो सबसे ज्यादा थी.
मद्रास (आज का तमिलनाडु ): ब्राह्मणों की आबादी 14 लाख थी, जो इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा थी.
राजस्थान (राजपूताना एजेंसी): यहां ब्राह्मणों की आबादी 8 लाख से ज्यादा थी.
असम: कायस्थ समुदाय की आबादी सबसे ज्यादा थी.
मैसूर : वोक्कालिगा समुदाय सबसे बड़ा था.

नई जनगणना से क्या बदलेगा?

अब, इतने सालों बाद फिर से जाति जनगणना होने से देश का सामाजिक नक्शा साफ हो जाएगा. सरकार को पता चलेगा कि आज के भारत में किस जाति की कितनी आबादी है. इससे कई बड़े बदलाव हो सकते हैं. सही आंकड़ों के आधार पर सरकार आरक्षण, शिक्षा, रोजगार और कल्याण योजनाओं को और प्रभावी बना सकती है. वहीं, पिछड़े और कमजोर वर्गों को उनकी आबादी के हिसाब से ज्यादा मौके मिल सकते हैं. जाति आधारित आंकड़े सामने आने से राजनीतिक दलों के समीकरण बदल सकते हैं. कई दल लंबे समय से जाति जनगणना की मांग कर रहे हैं, क्योंकि इससे उन्हें अपनी रणनीति बनाने में मदद मिलेगी.

यह जनगणना सिर्फ आंकड़े इकट्ठा करने की बात नहीं है. यह भारत के हर नागरिक को यह मौका देगी कि उनकी पहचान और उनके समुदाय की ताकत को आधिकारिक रूप से दर्ज किया जाए. इससे समाज में समानता और न्याय की दिशा में एक बड़ा कदम उठ सकता है. 1931 की जनगणना ने हमें उस समय के भारत की तस्वीर दिखाई थी. अब, 2025 में होने वाली नई जाति जनगणना आज के भारत की हकीकत सामने लाएगी.

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