बारिश की बौछार से मालामाल होते हैं निवेशक, जानिए मानसून और शेयर बाजार का क्या है कनेक्शन

भारत एक खेती-प्रधान देश है. यहां की 40% से ज्यादा आबादी खेती से जुड़ी है, और ग्रामीण इलाकों से देश की 46% मांग आती है. जब मानसून अच्छा होता है, तो चावल, गन्ना, कपास और मक्का जैसी फसलें खूब लहलहाती हैं.
Monsoon 2025

फोटो- AI

Monsoon 2025: भारत में मानसून सिर्फ बारिश नहीं लाता, बल्कि ये किसानों की उम्मीद, ग्रामीणों की कमाई और शेयर बाजार की चमक को भी तरोताजा कर देता है. मई 2025 में मानसून ने तय समय से 8 दिन पहले केरल में दस्तक दे दी, जो पिछले 16 सालों में सबसे जल्दी है. ये बारिश केरल से होते हुए महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर तक तेजी से फैल रही है. लेकिन सवाल ये है कि आखिर इस बारिश का शेयर बाजार से क्या तालमेल है? आइये जानते हैं कि कैसे मानसून की बौछारें शेयर बाजार में कमाई की राह खोल देती हैं.

खेती प्रधान देश है भारत

भारत एक खेती-प्रधान देश है. यहां की 40% से ज्यादा आबादी खेती से जुड़ी है, और ग्रामीण इलाकों से देश की 46% मांग आती है. जब मानसून अच्छा होता है, तो चावल, गन्ना, कपास और मक्का जैसी फसलें खूब लहलहाती हैं. इससे किसानों की जेब में पैसा आता है, और वे सामान, गाड़ियां और घरेलू चीजें खरीदने लगते हैं. इसका असर FMCG (जैसे साबुन, तेल, बिस्किट), फर्टिलाइजर (खाद) और ऑटो (गाड़ियां) जैसे सेक्टर्स पर पड़ता है, जो शेयर बाजार में चमक लाते हैं.

2024 में बारिश औसत से 8% ज्यादा (934.8 मिमी) रही, जिससे फसलें शानदार हुईं. 2025 में भी मौसम विभाग ने औसत से 5% ज्यादा बारिश की भविष्यवाणी की है. यानी, इस साल भी किसानों की बल्ले-बल्ले और शेयर बाजार में रौनक की उम्मीद है.

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आंकड़ों का ट्विस्ट!

अब जरा आंकड़ों की बात करें. लोग सोचते हैं कि अच्छी बारिश यानी शेयर बाजार में बंपर मुनाफा. लेकिन हकीकत थोड़ी जटिल है.

2020: बारिश औसत से ज्यादा थी, और निफ्टी ने 17% से ज्यादा रिटर्न दिया.

2014 और 2021: बारिश कम थी, फिर भी निफ्टी ने क्रमशः 10.2% और 13.1% का रिटर्न दिया.

2013 और 2019: बारिश शानदार थी, लेकिन बाजार ने निराश किया और निफ्टी में 4.2% और 3.8% की गिरावट आई.

2009: बारिश सिर्फ 78% थी, लेकिन सेंसेक्स 81% उछला, क्योंकि वैश्विक आर्थिक संकट से उबरने की खुशी बाजार में थी.

2011: बारिश 102% थी, फिर भी सेंसेक्स 25% लुढ़क गया, क्योंकि वैश्विक और घरेलू चिंताओं ने मूड खराब कर दिया.

तो बात साफ है कि मानसून जरूरी है, लेकिन बाजार की चाल सिर्फ बारिश पर नहीं, बल्कि सरकारी नीतियों, ग्लोबल इकोनॉमी और निवेशकों के मूड पर भी निर्भर करती है.

ग्लोबल मार्केट का भी होता है असर

अच्छा मानसून FMCG, खाद और ऑटो जैसे सेक्टर्स के लिए अच्छी खबर है, लेकिन निवेश करने से पहले पूरी तस्वीर देखें. अगर आप शेयर बाजार में पैसा लगाने की सोच रहे हैं, तो सिर्फ बारिश के भरोसे न रहें. ग्लोबल मार्केट, सरकारी फैसले और कंपनियों के तिमाही नतीजों पर भी नजर रखें. मानसून की बौछारें खेतों को हरा करती हैं, लेकिन बाजार को हरा करने के लिए आपको होशियारी से कदम उठाने होंगे.

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