इजरायल-ईरान जंग में भारत की अग्निपरीक्षा! दो दोस्तों के बीच कैसे बनेगा बैलेंस?
इजरायल- ईरान में तनाव
Israel-Iran Conflict: मध्य पूर्व में एक बार फिर तनाव का माहौल है. इजरायल और ईरान के बीच तलवारें खिंच चुकी हैं और इस बार मामला युद्ध जैसे हालात तक पहुंच गया है. इजरायली फाइटर जेट्स ने ईरान के कई ठिकानों पर हमले किए, जिनमें परमाणु केंद्र और सैन्य अड्डे शामिल हैं. ये हमले इतने बड़े थे कि इन्हें ईरान पर अब तक का सबसे तगड़ा प्रहार माना जा रहा है. वहीं ईरान ने सैंकड़ों की संख्या में मिसाइल से पलटवार किया है. लेकिन इस सबके बीच भारत की स्थिति किसी तार पर चलने जैसी हो गई है. क्यों? क्योंकि इजरायल और ईरान, दोनों ही भारत के करीबी दोस्त हैं. अब सवाल ये है कि भारत इस नाजुक हालात में क्या रणनीति अपनाएगी?
आसमान से बरसी आग
शुक्रवार की सुबह इजरायल ने ईरान पर हवाई हमलों की बौछार कर दी. राजधानी तेहरान से करीब 225 किलोमीटर दूर ईरान के परमाणु ठिकाने को निशाना बनाया गया. इसके अलावा सैन्य अड्डों पर भी बमबारी हुई. इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इन हमलों को रणनीतिक और जरूरी बताया. उनका कहना है कि ये कदम ईरान के बढ़ते परमाणु खतरे को रोकने के लिए उठाया गया. लेकिन ईरान ने इसे ‘युद्ध की घोषणा’ करार दिया और जवाबी कार्रवाई शुरू कर दी . दोनों देशों के बीच पहले से ही तनाव था, लेकिन इस हमले ने आग में घी डालने का काम किया.
दोनों तरफ अपने भारत की दोस्ती
अब बात भारत की. इजरायल और ईरान, दोनों के साथ भारत के रिश्ते बेहद मजबूत हैं. इजरायल के साथ भारत की दोस्ती तो खास है. 1992 में राजनयिक संबंध शुरू होने के बाद दोनों देशों ने रक्षा, तकनीक और आतंकवाद विरोधी मोर्चे पर कंधे से कंधा मिलाकर काम किया. 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इजरायल जाने वाले पहले भारतीय पीएम बने. उस दौरे में नेतन्याहू ने जिस गर्मजोशी से मोदी का स्वागत किया, वो आज भी चर्चा में है. दोनों नेता हर जगह साथ-साथ दिखे, और नेतन्याहू ने तो मोदी को ‘मेरा दोस्त’ कहकर दुनिया को संदेश दे दिया. इजरायल ने भारत के कई मौकों पर साथ दिया, जैसे पाकिस्तान के खिलाफ ऑपरेशन सुदर्शन और पहलगाम आतंकी हमले की निंदा में.
वहीं, ईरान के साथ भी भारत का रिश्ता कम गहरा नहीं. ऊर्जा, व्यापार और बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में दोनों देश तेजी से आगे बढ़ रहे हैं. चाबहार बंदरगाह इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जिसे भारत ने 10 साल के लिए संचालन का अधिकार लिया है. ये बंदरगाह भारत के लिए रणनीतिक रूप से बेहद अहम है, क्योंकि ये अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच का रास्ता खोलता है. भारतीय कंपनियां ईरान से सस्ता कच्चा तेल खरीदती हैं, जो भारत की अर्थव्यवस्था के लिए जरूरी है. ईरान ने भी पहलगाम हमले की निंदा की और आतंकवाद के खिलाफ भारत के साथ खड़ा दिखा.
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तेल की कीमतें
इजरायल और ईरान के बीच बढ़ता तनाव भारत के लिए कई मुश्किलें खड़ी कर रहा है. सबसे बड़ा खतरा है कच्चे तेल की कीमतों का. अगर ये तनाव और बढ़ा, तो तेल की कीमतें आसमान छू सकती हैं, जिसका सीधा असर भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा. इसके अलावा, भारत नहीं चाहता कि मध्य पूर्व में अशांति फैले, क्योंकि ये क्षेत्र भारत के लिए व्यापार और ऊर्जा का बड़ा स्रोत है.
भारत ने इस मुद्दे पर सधा हुआ बयान दिया. विदेश मंत्रालय ने कहा, “हम इस तनाव से चिंतित हैं और हालात पर नजर रख रहे हैं. हम दोनों देशों से शांति बनाए रखने की अपील करते हैं.” पीएम मोदी ने नेतन्याहू से फोन पर बात की, जिसमें उन्होंने तनाव कम करने की जरूरत पर जोर दिया. भारत ने साफ कर दिया कि वह दोनों देशों के साथ मिलकर शांति के लिए हर संभव कोशिश करेगा.
जानकारों का कहना है कि भारत ‘संतुलन’ की नीति पर चलेगा. यानी न तो इजरायल का खुलकर पक्ष लिया जाएगा और न ही ईरान का. भारत दोनों देशों के साथ अपनी दोस्ती को बचाने की कोशिश करेगा, ताकि उसके रणनीतिक और आर्थिक हितों को नुकसान न पहुंचे. भारत पहले भी ऐसे हालात में कूटनीति की मिसाल पेश कर चुका है. मसलन, रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के दौरान भारत ने दोनों पक्षों से बातचीत का रास्ता अपनाने की अपील की थी.
इसके अलावा, भारत मध्यस्थ की भूमिका भी निभा सकता है. भारत का दोनों देशों के साथ अच्छा रिश्ता होने के कारण वह तनाव कम करने में मदद कर सकता है. लेकिन ये रास्ता आसान नहीं होगा, क्योंकि इजरायल और ईरान के बीच दुश्मनी पुरानी है. फिर भी, भारत की कोशिश यही होगी कि मध्य पूर्व में शांति बनी रहे, ताकि तेल की कीमतें काबू में रहें और क्षेत्रीय स्थिरता बनी रहे.