Bhopal AIIMS में दवा खरीदी में गड़बड़ी, 285 रुपये का इंजेक्शन 2100 में खरीदे जा रहे, दिल्ली से पहुंची टीम ने डायरेक्टर से की पूछताछ

Bhopal AIIMS: भोपाल एम्स में दवा खरीदी में गड़बड़ी सामने आई है. आरोप है कि अस्पताल प्रबंधन ने 285 रुपये का इंजेक्शन 2100 रुपये में खरीदा. यह मुद्दा भोपाल सांसद आलोक शर्मा ने एम्स स्टैंडिंग कमेटी में उठाया था.
Bhopal AIIMS (file photo)

भोपाल एम्स (फाइल फोटो)

Bhopal AIIMS: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में दवा खरीदी को लेकर गड़बड़ी का मामला सामने आया है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की जांच टीम ने गुरुवार यानी 19 जून को एम्स का दौरा किया. यहां जांच टीम ने दवा खरीदी से जुड़े दस्तावेजों की जांच की और डायरेक्टर डॉक्टर अजय सिंह समेत प्रबंधन के अन्य अधिकारियों से करीब 4 घंटे तक पूछताछ की.

285 रुपये के इंजेक्शन 2100 में खरीदे गए

भोपाल एम्स में दवा खरीदी में गड़बड़ी कैंसर के इंजेक्शन जेमसिटाबिन की खरीदी को लेकर हुआ. बताया जा रहा है कि जिस इंजेक्शन की खरीदी 2100 रुपये में की जा रही है, उसकी वास्तविक कीमत 285 रुपये है. वहीं जेमसिटाबिन रायपुर एम्स में 425 रुपये और दिल्ली एम्स में 285 रुपये में खरीदे जा रहे हैं.

सांसद आलोक शर्मा ने उठाया मुद्दा

भोपाल एम्स पर आरोप लग रहे हैं कि कोरोना काल के बाद से भारत सरकार के दवा खरीद नियमों (GFR 2017) का पालन नहीं किया है. अमृत फार्मेसी के जरिए सीधे दवाएं खरीदी गईं. अमृत फार्मेसी से केवल आपात स्थिति में दवाएं खरीदने की अनुमति थी, ना कि पूरी सप्लाई के लिए. भोपाल एम्स में दवा खरीदी अमृत फार्मेसी के जरिए की जा रही है, वहीं बाकी एम्स में दवा की खरीदी टेंडर के जरिए की जाती है.

ये भी पढ़ें: MP-छत्तीसगढ़ से योग की रंग-बिरंगी तस्वीर, केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इंदौर के राजवाड़ा में किया योग

भोपाल सांसद आलोक शर्मा ने एम्स की स्टैंडिंग कमेटी में दवा खरीदी का मुद्दा उठाया था. उन्होंने कहा कि अन्य सरकारी अस्पतालों की तरह एम्स में भी टेंडर के जरिए दवा सप्लाई होनी चाहिए, लेकिन कोरोना काल में एम्स द्वारा आपात स्थिति के लिए दी गई सीधी खरीद की मंजूरी का दुरुपयोग हुआ. कोरोना काल खत्म होने के बाद भी AIIMS द्वारा सीधी दवा खरीदी जा रही. उन्होंने आगे कहा कि ये पहले 10 से 15 लाख रुपये की आपातकालीन सप्लाई, कोविड काल में 2-3 करोड़ तक पहुंची गई, लेकिन पिछले तीन सालों में यह 25-60 करोड़ तक हो गई, जो एक बड़े भ्रष्टाचार का संकेत है.

ज़रूर पढ़ें