MP News: शहडोल में जन्मी 900 ग्राम की बच्ची, 7 महीने में ही हुई डिलीवरी, डॉक्टर्स ने मौत के मुंह से बचाया

MP News: लगभग 30 दिनों के बाद बच्ची की तबीयत एक बार फिर बिगड़ी, लेकिन SNCU की सतर्क टीम ने समय रहते फिर इलाज शुरू कर बच्ची की जान बचाई. इलाज के 45 दिनों बाद बच्ची का वजन बढ़कर 1.380 किलोग्राम हो गया और जब सभी जरूरी स्वास्थ्य जांचें सामान्य आईं
Shahdol: A 900 gram baby girl was born in just 7 months

शहडोल: 900 ग्राम की बच्ची ने 7 महीने में ही लिया जन्म

MP News (शहडोल से कैलाश लालवानी की रिपोर्ट): जब विज्ञान, सेवा और ममता एक साथ मिल जाए तो चमत्कार जन्म लेते हैं. शहडोल जिला अस्पताल के SNCU (स्पेशल न्यूबॉर्न केयर यूनिट) में ऐसा ही एक प्रेरणादायक किस्सा सामने आया है, जहां डॉक्टर्स और नर्सिंग स्टाफ की लगन और मां की निस्वार्थ ममता ने एक बेहद कमजोर बच्ची को नया जीवन दे दिया.

जन्म के समय वजन 900 ग्राम था

यह कहानी उमरिया जिले के पाली ब्लॉक के ग्राम बर्तरा की है, जहां सुस्मिता सिंह ने मात्र सात माह के भीतर यानी नियत समय से ढाई महीने पहले, 2 जून को घर पर ही एक बच्ची को जन्म दिया. जन्म के समय बच्ची का वजन महज 900 ग्राम था, जो सामान्य वजन से काफी कम माना जाता है. बच्ची की हालत बेहद नाजुक थी. उसके फेफड़े विकसित नहीं हो पाए थे और उसे सांस लेने में गंभीर परेशानी हो रही थी.

परिवार ने बिना देरी किए बच्ची को शहडोल जिला अस्पताल के SNCU में भर्ती कराया, जहां विशेषज्ञ डॉक्टर्स की टीम ने तत्काल उपचार शुरू किया. बच्ची को CPAP मशीन पर रखा गया ताकि उसे सांस लेने में मदद मिल सके. डॉक्टर्स ने साथ ही जरूरी दवाएं जैसे कैफीन साइट्रेट और आयनट्रोप देना शुरू किया, जिससे शरीर के जरूरी अंगों का कार्य सुचारू रूप से हो सके.

इलाज के साथ ममता की गर्माहट

बच्ची की हालत को देखते हुए मेडिकल टीम ने मां को “कंगारू मदर केयर” (KMC) के लिए प्रशिक्षित किया. इसके तहत मां को हर दो घंटे में बच्ची को त्वचा से त्वचा का स्पर्श देना था, जिससे उसे मां की गर्माहट और सुरक्षा मिल सके. इसके साथ ही मां को स्तनपान तकनीक, हैंड वॉशिंग और मानसिक संबल की निरंतर ट्रेनिंग दी जाती रही. इस दौरान ट्यूब और सीरिंज की मदद से 2-2 एमएल दूध देना शुरू किया गया और धीरे-धीरे इसकी मात्रा को बढ़ाया गया.

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फिर बिगड़ी तबीयत, लेकिन नहीं मानी हार

लगभग 30 दिनों के बाद बच्ची की तबीयत एक बार फिर बिगड़ी, लेकिन SNCU की सतर्क टीम ने समय रहते फिर इलाज शुरू कर बच्ची की जान बचाई. इलाज के 45 दिनों बाद बच्ची का वजन बढ़कर 1.380 किलोग्राम हो गया और जब सभी जरूरी स्वास्थ्य जांचें सामान्य आईं, तो परिजनों के अनुरोध पर उसे डिस्चार्ज कर दिया गया.

स्टाफ की भारी कमी, फिर भी अडिग जज्बा

SNCU प्रभारी और शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. सुनील हथगेल ने बताया कि यह केस पूरी टीम के लिए एक बड़ी चुनौती थी. पिछले दो महीनों से अस्पताल में चार बाल रोग विशेषज्ञों के स्थानांतरण के कारण स्टाफ की भारी कमी है, लेकिन इसके बावजूद सभी डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ ने पूरी निष्ठा से काम करते हुए बच्ची की जान बचाई.

डॉ. हथगेल ने कहा, “हमारी टीम ने हर एक दिन, हर एक घंटे को गिनते हुए इस बच्ची के लिए संघर्ष किया. यह सिर्फ चिकित्सा नहीं थी, यह इंसानियत और समर्पण की परीक्षा थी, जिसे हमारे स्टाफ ने पूरी ईमानदारी से पास किया.”

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नन्हीं जान की जीत बनी मिसाल

यह कहानी सिर्फ एक बच्ची के जीवन की नहीं, बल्कि मातृत्व, विज्ञान और सेवा भाव के सम्मिलन की कहानी है. शहडोल जिला अस्पताल की SNCU यूनिट ने यह साबित कर दिया कि संसाधनों की कमी अगर हो भी, तो समर्पण और कर्मठता से कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं होता. इस तरह की घटनाएं सिर्फ चिकित्सा के क्षेत्र में नहीं, बल्कि पूरे समाज को जीवन के प्रति आशा और विश्वास का संदेश देती हैं.

इस सफलता ने न केवल अस्पताल की टीम को गर्व महसूस कराया, बल्कि यह पूरे प्रदेश के लिए एक प्रेरणास्पद मिसाल बन गई है कि यदि इच्छाशक्ति और सेवा भाव मजबूत हो, तो मौत के मुंह से भी जिंदगी को वापस लाया जा सकता है.

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