मणिपुर में सरकार बनाने की कोशिशों पर ब्रेक, 6 महीने के लिए बढ़ाया गया राष्ट्रपति शासन, जानिए क्यों
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू
Manipur President Rule: मणिपुर में शांति की उम्मीदों को फिलहाल झटका लगा है. केंद्र सरकार ने यहां राष्ट्रपति शासन की अवधि को 6 महीने के लिए बढ़ा दिया है, जिसका मतलब है कि राज्य को अब अगले साल 13 फरवरी 2026 तक सीधे राष्ट्रपति के अधीन रहना होगा. यह फैसला ऐसे समय में आया है, जब राज्य में नई सरकार बनाने की कोशिशें तेज हो रही थीं.
क्यों बढ़ा राष्ट्रपति शासन?
दरअसल, मणिपुर पिछले साल मई से जातीय हिंसा की आग में झुलस रहा है. मैतेई और कुकी समुदायों के बीच शुरू हुई यह हिंसा अब तक थमने का नाम नहीं ले रही है. हजारों लोग बेघर हुए हैं, सैकड़ों ने जान गंवाई है और बड़े पैमाने पर संपत्ति का नुकसान हुआ है. हालात इतने बिगड़े कि इसी साल 13 फरवरी को राज्य की तत्कालीन एन. बीरेन सिंह सरकार को इस्तीफा देना पड़ा और राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया.
केंद्र सरकार का कहना है कि राज्य में अभी भी सामान्य स्थिति बहाल नहीं हो पाई है, और इसीलिए राष्ट्रपति शासन को जारी रखना जरूरी है. यह प्रस्ताव लोकसभा में पास हो चुका है और जल्द ही राज्यसभा में भी इसे गृह मंत्री पेश करेंगे.
सरकार बनाने की कोशिशों को लगा झटका
इस विस्तार से उन विधायकों को निराशा हुई है जो राज्य में जल्द से जल्द एक नई सरकार बनाने की उम्मीद कर रहे थे. खासकर, सत्ताधारी गठबंधन (NDA) के मैतेई और नागा समुदाय से जुड़े विधायक लगातार राज्यपाल से मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश कर रहे थे. हाल ही में 10 एनडीए विधायकों ने राज्यपाल से मुलाकात कर 44 विधायकों के समर्थन का दावा किया था. उन्हें उम्मीद थी कि राष्ट्रपति शासन खत्म होने से पहले वे अपनी सरकार बना पाएंगे. लेकिन अब उन्हें और 6 महीने का इंतजार करना होगा.
शांति की राह अब भी दूर!
कांग्रेस सहित विपक्षी दल लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर मणिपुर की स्थिति को सामान्य न कर पाने और राज्य का दौरा न करने को लेकर हमलावर रहे हैं. विपक्ष का कहना है कि सरकार इस मुद्दे पर गंभीर नहीं है.
फिलहाल, मणिपुर में शांति बहाली की राह अभी भी बहुत लंबी दिख रही है. सरकार का लक्ष्य है कि इस साल के अंत तक हिंसा से विस्थापित हुए लोगों का बड़ा हिस्सा अपने घरों को लौट जाए. हालांकि, मैतेई और कुकी-समुदायों के बीच सीधे बातचीत शुरू कराने के ठोस प्रयास अभी तक नहीं दिख रहे हैं, जो स्थायी शांति के लिए सबसे अहम कदम है.
यह देखना होगा कि राष्ट्रपति शासन के इस विस्तार से क्या राज्य में हिंसा पर लगाम लगेगी और आम लोगों की जिंदगी कब तक पटरी पर लौट पाएगी.