Siddhi Vinayak Mandir: बप्पा का अनोखा मंदिर, जहां भगवान विष्णु ने की थी सिद्धिविनायक की तपस्या, लिया था सिद्धियों का वरदान
सिद्धिविनायक मंदिर,अहमदनगर, महाराष्ट्र
Siddhi Vinayak Mandir: देशभर में गणेश उत्सव धूमधाम से मनाया जाना है. गणेश उत्सव के अवसर पर हम आपको गणपति के सबसे ज्यादा पूजे जाने वाले अष्टविनायक स्वरूपों की कहानियां बता रहे हैं. आज हम बात करेंगे अष्टविनायक के दूसरे स्वरूप सिद्धिविनायक मंदिर की.
यहां की थी भगवान विष्णु ने गणेश जी की तपस्या
सिद्धिविनायक मंदिर महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के सिद्ध टेक गांव में स्थित हैं. भगवान गणेश के ‘अष्टविनायक’ पीठों में से एक ‘सिद्धिविनायक’ को परम शक्तिमान माना जाता है. मान्यताओं के अनुसार, जिस जगह पर आज मंदिर है वहां पहले सिद्धटेक पर्वत हुआ करता था. सिद्धटेक पर्वत वही पर्वत हैं जहां भगवान विष्णु ने गणेश जी की तपस्या करके सिद्धि प्राप्त की थी. जिसके बाद इसे सिद्धिविनायक कहा गया.
भगवान विष्णु ने गणेश जी से ये सिद्धियां कैसे प्राप्त की इसकी कथा भी बहुत ही रोचक हैं. मुद्गल पुराण की एक कथा के अनुसार, यह माना जाता है कि जब इस सृष्टि का निर्माण हो रहा था, तब सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा देव भगवान विष्णु की नाभि पर विराजित एक कमल से प्रकट हुए. ब्रह्मा जी ने प्रकट होकर ब्रह्मांड का निर्माण शुरू किया. जब भगवान विष्णु अपनी योगनिद्रा में सो रहे थे, तब विष्णु जी के कान के मैल से मधु और कैटभ नामक दो राक्षस निकले.
प्रसन्न होकर गणेश जी ने दिया था सिद्धियों का वरदान
राक्षसों ने ब्रह्मा की सृष्टि की प्रक्रिया को बाधित कर दिया और हर जगह विनाश मचाने लगे. जिससे विष्णु भगवान की याेगनिद्र टूट गई. राक्षसों का उपद्रव देख भगवान विष्णू ने मधु से युद्ध किया, लेकिन वह उन्हें हरा नहीं पाए. हारे हुए विष्णु भगवान शिव के पास मदद के लिए पहुंचे जिसमें भगवान शिव ने बताया कि वे युद्ध इसलिए नहीं जीत पाए क्योंकि युद्ध से पहले उन्होंने गणेश जी का आवाहन नहीं किया था. भागवान गणेश को आरंभ में आई बाधा के निवारण का देवता माना जाता है.
शिव जी की बात मानकर भगवान विष्णु सिद्धटेक पर्वत पर “ओम श्री गणेशाय नमः” मंत्र से गणेश जी की तपस्या करने लगे. भगवान विष्णु की तपस्या से प्रसन्न होकर, गणेश जी उन्हें आशीर्वाद और विभिन्न सिद्धियाँ (“शक्तियाँ”) प्रदान करते हैं. इसके बाद भगवान विष्णु अपनी लड़ाई में वापस लौटते हैं और दोनों राक्षसों का वध कर देते हैं. इसलिए जिस स्थान पर विष्णु ने सिद्धियाँ प्राप्त कीं, उसे तब से सिद्धटेक के नाम से जाना जाने लगा. इसके अतिरिक्त इसी स्थान पर ऋषि व्यास ने भी तपस्या की थी.
भगवान विष्णु ने कराया था मूल मंदिर का निर्माण
ऐसी मान्यमाएं है कि मूल मंदिर का निर्माण भगवान विष्णु ने करवाया था, लेकिन समय के साथ इसे नष्ट कर दिया गया. बाद में एक चरवाहे को प्राचीन मंदिर का दर्शन हुआ और उसे सिद्धि-विनायक की मूर्ति मिली. चरवाहे ने देवता की पूजा की और जल्द ही अन्य लोगों को मंदिर के बारे में पता चला.
वर्तमान मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी के अंत में इंदौर की दार्शनिक रानी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था. इन्होंने काशी विश्वनाथ मंंदिर समेत कई अन्य हिंदू मंदिरों का निर्माण और जीर्णोद्धार कराया था. काले पत्थर से निर्मित मंदिर उत्तर मुखी दिशा में बना है. मंदिर में काले पत्थर से बना सभा मंडप (सभा कक्ष) और एक अन्य सभा मंडप है, जो बाद में बनाया गया है. मुख्य मंदिर की दहलीज पर एक छोटी राक्षसी सिर की मूर्ति है. मंदिर में एक नगरखाना भी है.
क्या है सिद्धिविनायक मंदिर की विशेषता?
इस मंदिर में विराजमान गणेश जी की प्रतिमा में उनकी सूंड दाईं ओर मुड़ी हुई है. आमतौर पर गणेश की सूंड को बाईं ओर मुड़ा हुआ दिखाया जाता है. ऐसा माना जाता है कि दाईं सूंड वाले गणेश बहुत शक्तिशाली होते हैं, लेकिन उन्हें प्रसन्न करना मुश्किल होता है.
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यह एकमात्र अष्टविनायक मंदिर है जहाँ देवता की सूंड दाईं ओर है. परंपरागत रूप से, जिस प्रतिमा की सूंड दाईं ओर होती है, उसे “सिद्धि-विनायक” नाम दिया जाता है, जो सिद्धि, सफलता और अलौकिक शक्तियाँ प्रदान करने वाला होता है. इस प्रकार मंदिर को एक जागृत क्षेत्र माना जाता है जहाँ देवता को अत्यधिक शक्तिशाली कहा जाता है.