राहुल की ‘वोटर अधिकार यात्रा’, तेजस्वी का नाम…जानिए कैसे पटना में सियासी रोटी सेंक गए अखिलेश?

Bihar Politics: सत्ताधारी बीजेपी इस शक्ति प्रदर्शन से बेफिक्र नहीं है. बिहार के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी ने तेजस्वी पर निशाना साधते हुए कहा, "तेजस्वी खुद को सीएम बता रहे हैं, लेकिन राहुल गांधी की चुप्पी बता रही है कि महागठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं है. तेजस्वी पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं और अगर उन्हें सीएम उम्मीदवार बनाया गया तो गठबंधन टूट सकता है."
Voter Adhikar Yatra

वोटर अधिकार यात्रा के आखिरी चरण में पहुंचे अखिलेश यादव

Voter Adhikar Yatra: बिहार में विधानसभा चुनाव (Bihar Election) का बिगुल भले ही अभी न बजा हो, लेकिन सियासत का मैदान गरमा चुका है. पटना के गांधी मैदान में ‘वोटर अधिकार यात्रा’ का धमाकेदार समापन हुआ, जहां विपक्ष ने अपनी ताकत दिखाकर सत्ताधारी बीजेपी को खुली चुनौती दी. कांग्रेस के राहुल गांधी, आरजेडी के तेजस्वी यादव और सपा के अखिलेश यादव की तिकड़ी ने इस मंच से सियासी माहौल को अपने पक्ष में मोड़ने की पूरी कोशिश की. लेकिन इस शक्ति प्रदर्शन के पीछे छुपा है एक दिलचस्प सियासी खेल, जिसमें हर नेता अपनी-अपनी चाल चल रहा है. आइये, इस सियासी ड्रामे को आसान भाषा में विस्तार से समझते हैं…

‘वोटर अधिकार यात्रा’ का जलवा

17 अगस्त को सासाराम से शुरू हुई ‘वोटर अधिकार यात्रा’ ने 23 जिलों और 1300 किलोमीटर का सफर तय किया. राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की जोड़ी ने बिहार की जनता से सीधा संवाद किया, उनके मुद्दों को उठाया और बीजेपी को घेरने की रणनीति बनाई. इस यात्रा का समापन पटना में हुआ, जहां सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अचानक एंट्री मारकर सबको चौंका दिया. अखिलेश ने तेजस्वी को बिहार का अगला मुख्यमंत्री बताकर एक तीर से दो निशाने साधे. पहला, बिहार में तेजस्वी की दावेदारी को मजबूत करना और दूसरा, यूपी में अपनी सियासी जमीन को पक्का करना.

तेजस्वी को अखिलेश का समर्थन

तेजस्वी यादव ने मंच से बीजेपी पर जमकर निशाना साधा. उन्होंने कहा, “जो 400 पार का नारा लगा रहे थे, उन्हें यूपी में अखिलेश जी ने आधे पर रोक दिया.” तेजस्वी ने अखिलेश के अनुभव को बिहार के लिए वरदान बताया और कहा कि बिहार की जनता बीजेपी को करारा जवाब देगी. अखिलेश ने भी तेजस्वी की तारीफों के पुल बांधे. उन्होंने कहा, “तेजस्वी से बेहतर बिहार का कोई सीएम हो ही नहीं सकता. उन्होंने नौकरियां दीं, विकास किया और अब बिहार का भविष्य उनके हाथों में है.”

लेकिन इस सियासी नाटक में एक ट्विस्ट है. कांग्रेस और राहुल गांधी ने तेजस्वी को सीएम चेहरा बनाने पर चुप्पी साध रखी है. कई बार सवाल पूछे जाने के बावजूद राहुल ने इस मुद्दे पर कुछ नहीं बोला. तेजस्वी ने तो राहुल को पीएम उम्मीदवार तक बता दिया, लेकिन कांग्रेस टस से मस नहीं हुई. ऐसे में अखिलेश ने तेजस्वी के लिए खुलकर बल्लेबाजी करके न सिर्फ बिहार बल्कि यूपी की सियासत में भी अपनी चाल चल दी.

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अखिलेश का यूपी कनेक्शन

अखिलेश यादव की बिहार यात्रा सिर्फ तेजस्वी के समर्थन तक सीमित नहीं थी. इसके पीछे यूपी का सियासी गणित भी छुपा है. 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस ने मिलकर यूपी में बीजेपी को कड़ी टक्कर दी थी. अब 2027 के यूपी विधानसभा चुनाव में सपा अपनी वापसी की पूरी तैयारी कर रही है. लेकिन कांग्रेस यूपी में अपनी पुरानी जमीन वापस लेने की कोशिश में है, जिससे दोनों दलों में हल्की-फुल्की तनातनी देखने को मिल रही है. अखिलेश ने तेजस्वी को समर्थन देकर कांग्रेस पर दबाव बनाया कि यूपी में भी सपा की दावेदारी को नजरअंदाज न किया जाए. बिहार में तेजस्वी को सीएम चेहरा बताकर अखिलेश ने यह संदेश दिया कि यूपी में भी सपा के बिना खेल नहीं बनेगा.

बीजेपी का पलटवार

सत्ताधारी बीजेपी इस शक्ति प्रदर्शन से बेफिक्र नहीं है. बिहार के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी ने तेजस्वी पर निशाना साधते हुए कहा, “तेजस्वी खुद को सीएम बता रहे हैं, लेकिन राहुल गांधी की चुप्पी बता रही है कि महागठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं है. तेजस्वी पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं और अगर उन्हें सीएम उम्मीदवार बनाया गया तो गठबंधन टूट सकता है.” बीजेपी का दावा है कि बिहार की जनता उनके साथ है और विपक्ष का यह शक्ति प्रदर्शन महज दिखावा है.

गांधी मैदान का इतिहास

पटना का गांधी मैदान हमेशा से सियासी शक्ति प्रदर्शन का गवाह रहा है. 1974 में जयप्रकाश नारायण की रैली हो या 1989 में विश्वनाथ प्रताप सिंह का सियासी शंखनाद, इस मैदान ने कई बार बिहार की सियासत को नई दिशा दी है. इस बार भी ‘वोटर अधिकार यात्रा’ के समापन ने बिहार में एक नया सियासी माहौल बनाया है. लेकिन सवाल यह है कि क्या यह माहौल वोटों में बदलेगा?

क्या है इस शक्ति प्रदर्शन का मतलब?

राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा ने इंडिया ब्लॉक की एकता को दिखाया. राहुल, तेजस्वी और अखिलेश का एक मंच पर आना बीजेपी के लिए खतरे की घंटी है. वहीं, अखिलेश के समर्थन ने तेजस्वी को सीएम रेस में मजबूत किया है, लेकिन कांग्रेस की चुप्पी सवाल खड़े करती है.

इतना ही नहीं, अखिलेश ने बिहार के मंच से यूपी की सियासत को साधने की कोशिश की, जो 2027 के लिए उनकी रणनीति का हिस्सा है. बीजेपी को यह संदेश गया है कि विपक्ष एकजुट होकर मैदान में है और बिहार में कांटे की टक्कर होगी.

बिहार में विधानसभा चुनाव की तारीखें अभी घोषित नहीं हुई हैं, लेकिन यह शक्ति प्रदर्शन बता रहा है कि सियासी जंग जोरों पर होगी. तेजस्वी की दावेदारी, अखिलेश का समर्थन और राहुल की चुप्पी इस जंग को और रोमांचक बनाएंगे. बिहार की जनता किसे चुनेगी, यह तो वक्त बताएगा.

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