कभी सत्ता को आंख दिखाने वाले आज रो-रोकर सुना रहे कहानी, क्या इतने कमजोर पड़ गए आजम?

ये वही आजम खान हैं, जिनकी आवाज कभी सपा की रैलियों में गूंजती थी. मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव की सरकारों में उनके पास कई अहम मंत्रालय थे. लेकिन 2017 में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने के बाद उनकी दुनिया बदल गई.
Azam Khan

समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान

UP Politics: कभी अपनी बुलंद आवाज और बेबाक अंदाज से सियासत के मैदान में तालियां बटोरने वाले समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता आजम खान (Azam Khan) आजकल सुर्खियों में हैं, लेकिन इस बार उनकी ‘गुर्राहट’ की जगह आंसुओं ने ले ली है. सीतापुर जेल से रिहा होने के बाद आजम खान के इंटरव्यू सोशल मीडिया और न्यूज चैनलों पर छाए हुए हैं. लेकिन सवाल ये है कि जो आजम कभी विरोधियों को ललकारते थे, वो आज क्यों भावुक हो रहे हैं? क्या उनकी सियासत अब कमजोर पड़ रही है, या ये है एक नई रणनीति का रंग? आइए, आजम की इस कहानी को विस्तार से समझते हैं, जिसमें ड्रामा, इमोशन और सियासत का तड़का सब कुछ है…

जेल की रातें और आंसुओं का मंजर

40-45 साल तक उत्तर प्रदेश की सियासत में अपनी धाक जमाने वाले आजम खान आजकल अपने इंटरव्यू में जेल के कड़वे अनुभव बयां कर रहे हैं. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, “लखनऊ में मेरा एक मकान तक नहीं है. जेल से निकलने के बाद मुझे गेस्ट हाउस में जगह चाहिए थी, लेकिन किसी ने मदद नहीं की. एक गेस्ट हाउस में रुका, जहां बाउंड्री वॉल सिर्फ ढाई फीट की थी. डर था कि कोई मार न दे, इसलिए पूरी रात कुर्सी पर बैठकर काटी.” ये कहते-कहते आजम की आंखें छलक पड़ीं. उन्होंने भावुक होकर कहा, “हम चोर हैं, डकैत हैं, लेकिन अब नए जख्म के लिए जगह भी नहीं बची.”

ये वही आजम खान हैं, जिनकी आवाज कभी सपा की रैलियों में गूंजती थी. मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव की सरकारों में उनके पास कई अहम मंत्रालय थे. लेकिन 2017 में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने के बाद उनकी दुनिया बदल गई. जमीन हड़पने, धोखाधड़ी और हेट स्पीच जैसे कई मामलों में उनके खिलाफ केस दर्ज हुए. 2022 में हेट स्पीच के एक केस में दोषी ठहराए जाने के बाद उनकी विधानसभा सदस्यता भी चली गई.

क्या आजम खान की सियासत कमजोर पड़ रही है?

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आजम खान कभी मुस्लिम वोटबैंक के बड़े चेहरे थे. रामपुर उनका गढ़ था, जहां से उन्होंने 10 बार विधानसभा चुनाव जीता. लेकिन हाल के सालों में उनकी पकड़ कमजोर पड़ती दिख रही है. 2022 के रामपुर उपचुनाव में बीजेपी के आकाश सक्सेना ने 34 हजार से ज्यादा वोटों से जीत हासिल की, जो आजम के लिए बड़ा झटका था. उनके बेटे अब्दुल्ला आजम की स्वार सीट भी 2023 के उपचुनाव में अपना दल ने छीन ली.

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि आजम खान अब सहानुभूति की सियासत खेल रहे हैं. जेल में बिताए गए दिनों की कहानी सुनाकर वो लोगों का दिल जीतना चाहते हैं. वो ये दिखाना चाहते हैं कि उनके साथ अन्याय हुआ है, ताकि सपा के वोटरों में बीजेपी सरकार के खिलाफ गुस्सा भड़के. आजम ने एक इंटरव्यू में साफ कहा, “मेरी हार को कोई अपनी जीत न समझे. मैं अभी खत्म नहीं हुआ हूं.”

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2024 लोकसभा चुनाव और सपा का प्रदर्शन

रोचक बात ये है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा ने पूरे उत्तर प्रदेश में शानदार प्रदर्शन किया, खासकर मुस्लिम वोटरों का समर्थन हासिल किया. कुछ विश्लेषकों का मानना है कि आजम के जेल में रहने से सपा को सहानुभूति वोट मिले. लेकिन कुछ का ये भी कहना है कि सपा की जीत ये दिखाती है कि आजम का पुराना जलवा अब कम हो गया है. फिर भी, आजम के समर्थक मानते हैं कि उनकी रिहाई पश्चिमी यूपी की सियासत में भूचाल ला सकती है.

आजम का अगला कदम क्या?

आजम खान की रिहाई के बाद सपा कार्यकर्ताओं में जोश है. वो मानते हैं कि आजम का अनुभव और उनका जनाधार 2027 के विधानसभा चुनाव में पार्टी के लिए गेम-चेंजर साबित हो सकता है. लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं हैं. बीजेपी ने रामपुर और आसपास के इलाकों में अपनी पकड़ मजबूत कर ली है. आजम को न सिर्फ अपनी पुरानी ताकत वापस लानी होगी, बल्कि नए सियासी समीकरणों को भी समझना होगा.

आजम का इमोशनल कार्ड हिट या फ्लॉप?

आजम खान की भावुकता और उनकी कहानियां लोगों का ध्यान खींच रही हैं. लेकिन क्या ये इमोशनल कार्ड उनकी सियासत को नई उड़ान दे पाएगा या फिर ये सिर्फ एक अस्थायी सुर्खी बनकर रह जाएगी? ये तो वक्त ही बताएगा. फिलहाल, आजम खान की आंखों के आंसू और उनकी सियासी जंग उत्तर प्रदेश की सियासत में चर्चा का विषय बने हुए हैं.

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