तेजस्वी, तेज से लेकर सम्राट तक…पहले चरण में ही तय होगी लालू के वारिस और BJP के सिपहसालारों की राजनीतिक हैसियत, जानिए हॉट सीटों का हाल

Bihar Election 2025: भोजपुरी सिनेमा के 'सुपरस्टार' खेसारी लाल यादव सारण जिले की छपरा विधानसभा सीट से RJD के उम्मीदवार के रूप में अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत कर रहे हैं. इस सीट पर RJD ने पहली बार किसी सेलिब्रिटी पर दांव लगाया है.
Bihar Election Phase 1 Key Seats

पहले चरण के दिग्गज

Bihar Election Phase 1 Key Seats: बिहार विधानसभा चुनाव का असली रोमांच तो पहले चरण की वोटिंग में ही दिखने वाला है. महज दो दिन बाद 6 नवंबर को जिन 121 सीटों पर वोट पड़ेंगे, उनमें बिहार की सियासत के सबसे बड़े सिपहसालारों का राजनीतिक भविष्य दांव पर है. एक तरफ NDA के दो धाकड़ उपमुख्यमंत्री (Deputy CM) हैं, तो दूसरी तरफ RJD प्रमुख लालू प्रसाद यादव के दोनों बेटे तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव. इतना ही नहीं, खेसारी-मैथिली जैसे उम्मीदवार भी इसी चरण में किस्मत आजमा रहे हैं.

यह पहला चरण सिर्फ 121 विधायकों का चुनाव नहीं, बल्कि इन चारों नेताओं की ताकत, जनाधार और सियासी समझ का निर्णायक इम्तिहान है. आइए जानते हैं पहले चरण के हॉट सीटों पर क्या हैं समीकरण और कौन किस पर पड़ रहा भारी.

सम्राट चौधरी के लिए विरासत की जंग

NDA गठबंधन की तरफ से चुनावी मैदान में उतरे डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा के लिए यह चुनाव साख का सवाल है.

बिहार की राजनीति के कद्दावर नेता माने जाने वाले उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी इस बार तारापुर विधानसभा सीट से किस्मत आजमा रहे हैं. यह सीट उनके लिए सिर्फ चुनाव नहीं, बल्कि पारिवारिक विरासत को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी है. सम्राट चौधरी के पिता शकुनी चौधरी लगभग 23 साल तक इस विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. उनकी मां भी यहां से विधायक रही हैं.

दिलचस्प बात यह है कि पिछले 30 सालों से यह सीट बीजेपी के पास नहीं आई है, हमेशा JDU का गढ़ रही है. इस बार JDU ने यह सीट बीजेपी को दी है.

आसान नहीं है सम्राट चौधरी की राह

सम्राट चौधरी के सामने RJD के अरुण कुमार साहू और नई नवेली राजनीतिक पार्टी जन सुराज के संतोष सिंह कड़ी टक्कर दे रहे हैं. साहू की एंट्री से बीजेपी के परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगने की आशंका है. अगर सम्राट चौधरी यह मुश्किल सीट जीत जाते हैं, तो उनका कद पार्टी में कई गुना बढ़ जाएगा. हार की सूरत में उनके राजनीतिक रुतबे पर नकारात्मक असर पड़ सकता है.

विजय सिन्हा की चौथी जीत की राह मुश्किल

फायर ब्रांड नेता और उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा लखीसराय की भूमिहार बहुल सीट से चौथी बार जीत की उम्मीद में हैं. वह लगातार यह सीट जीतते रहे हैं, लेकिन इस बार सियासी राह काफी कंटकाकीर्ण मानी जा रही है. लगातार विधायक रहने के कारण सत्ता विरोधी लहर (Anti-Incumbency) का सामना करना पड़ रहा है.

महागठबंधन ने कांग्रेस प्रत्याशी अमरेश कुमार अनीश को मैदान में उतारा है. सबसे बड़ी चुनौती यह है कि पिछली बार निर्दलीय लड़कर वोट काटने वाले पूर्व विधायक फुलैना सिंह और सुजीत कुमार दोनों इस बार कांग्रेस प्रत्याशी का खुला समर्थन कर रहे हैं. लखीसराय की लड़ाई इस बार एकजुट विपक्ष बनाम विजय सिन्हा की हो गई है. अगर वह यह कठिन लड़ाई जीत लेते हैं, तो पार्टी के भीतर उनकी धाक और मजबूत होगी.

लालू के दोनों बेटों की ‘शक्ति’ परीक्षा

पहले चरण में लालू परिवार के दोनों युवराज तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव की सीटों पर भी वोटिंग होनी है. यह चुनाव न सिर्फ उनके व्यक्तिगत प्रदर्शन, बल्कि परिवार के एकजुटता और जनाधार के लिए भी महत्वपूर्ण है.

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तेजस्वी यादव की हैट्रिक

महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव अपनी परंपरागत सीट राघोपुर से जीत की हैट्रिक लगाने उतरे हैं. इस सीट पर RJD का लगभग एकछत्र दबदबा रहा है,सिर्फ 2010 को छोड़कर. पिछली बार तेजस्वी ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी को भारी वोटों के अंतर से हराया था. वह लगातार दो बार से विधायक हैं. तेजस्वी के सामने बीजेपी के सतीश कुमार यादव ताल ठोक रहे हैं. खास बात यह है कि इस सीट पर यादव समुदाय की आबादी करीब 35% है, जो निर्णायक मानी जाती है. बीजेपी ने भी उसी समाज से उम्मीदवार उतारा है.

तेजस्वी को केवल बीजेपी से ही नहीं, बल्कि अपने बड़े भाई तेज प्रताप यादव की पार्टी जनशक्ति जनता दल के प्रेम कुमार से भी मुकाबला करना पड़ रहा है. लालू परिवार की यह परंपरागत सीट है और तेजस्वी की जीत उनकी CM उम्मीदवारी को और मजबूत करेगी.

उलझी हुई है तेज प्रताप की सियासी राह ?

RJD प्रमुख लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव इस बार वैशाली की महुआ सीट से किस्मत आजमा रहे हैं. हालांकि, उनकी सियासी राह इस बार बेहद उलझी हुई है. तेज प्रताप इस बार RJD से बाहर होकर अपनी नई पार्टी ‘जनशक्ति जनता दल’ से चुनावी मैदान में हैं. उनके सामने RJD के वर्तमान विधायक मुकेश रौशन और NDA की तरफ से LJP (रामविलास) के संजय सिंह खड़े हैं. दोनों प्रमुख गठबंधन की मोर्चाबंदी के बीच तेज प्रताप के लिए जीतना आसान नहीं होगा.

सबसे बड़ी बात यह है कि लालू परिवार इस बार RJD के उम्मीदवार मुकेश रौशन के साथ खड़ा है. वोटों के बिखराव की आशंका के बीच, तेज प्रताप को अपनी राजनीतिक पहचान और ताकत साबित करने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है.

मैथिली ठाकुर के सामने अनुभव का पहाड़

दरभंगा जिले की अलीनगर विधानसभा सीट इस बार पूरे मिथिलांचल की हॉट सीट बन गई है. कारण हैं, बीजेपी की उम्मीदवार मैथिली ठाकुर, जो अपनी सुरीली आवाज से पूरे देश में प्रसिद्ध हैं. बीजेपी ने मैथिली ठाकुर की युवा छवि और उनकी लोकप्रियता पर दांव लगाया है. पार्टी मिथिला की ‘बेटी’ के नाम पर भावनात्मक वोट साधने की कोशिश कर रही है. यह सीट ब्राह्मण मतदाताओं की बहुलता वाली मानी जाती है. मैथिली ठाकुर भी ब्राह्मण समुदाय से आती हैं. लेकिन आजतक कोई भी ब्राह्मण उम्मीदवार यहां से जीत दर्ज नहीं कर पाया है.

मैथिली ठाकुर के सामने महागठबंधन की ओर से RJD के अनुभवी विनोद मिश्रा ताल ठोक रहे हैं. विनोद मिश्रा 2020 में भी उपविजेता रहे थे. यह मुकाबला सीधे तौर पर अनुभव बनाम लोकप्रियता का बन गया है. बाहरी उम्मीदवार होने के आरोपों को मैथिली ठाकुर ‘साजिश’ बता रही हैं. 2020 में यह सीट RJD के हाथ से निकल गई थी, जिसे RJD वापस जीतना चाहती है. मैथिली ठाकुर अगर यह सीट जीतती है, तो यह साबित होगा कि बिहार की जनता ने जातीय गणित से ऊपर उठकर युवा ‘स्टार पावर’ पर भरोसा किया है.

पहली बार मैदान में खेसारी लाल यादव

भोजपुरी सिनेमा के ‘सुपरस्टार’ खेसारी लाल यादव सारण जिले की छपरा विधानसभा सीट से RJD के उम्मीदवार के रूप में अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत कर रहे हैं. इस सीट पर RJD ने पहली बार किसी सेलिब्रिटी पर दांव लगाया है. छपरा की सियासत में पारंपरिक रूप से यादव और राजपूत जाति का दबदबा रहा है. खेसारी यादव की एंट्री ने यादव मतदाताओं के ध्रुवीकरण की उम्मीद जगाई है.

खेसारी लाल यादव चुनावी रैलियों में NDA पर तीखे हमले कर रहे हैं. उन्होंने विकास, रोजगार, अस्पताल और शिक्षा जैसे मुद्दों पर जोर देते हुए ‘मंदिर-मस्जिद’ की राजनीति पर सवाल उठाए हैं. छपरा में खेसारी के लिए मुकाबला आसान नहीं है. बीजेपी की तरफ से छोटी कुमारी मैदान में हैं, वहीं पार्टी के भीतर से ही बागी उम्मीदवार राखी गुप्ता भी मैदान में हैं.

बीजेपी ने खेसारी के सामने भोजपुरी इंडस्ट्री के एक और बड़े नाम पवन सिंह को अपना स्टार प्रचारक बनाया है. चुनावी मंच पर दोनों सितारों के बीच जुबानी जंग माहौल को गरमा रही है. अगर खेसारी लाल यादव अपनी स्टार पावर को वोटों में बदल पाते हैं और जातीय समीकरणों को साध लेते हैं, तो यह RJD के लिए बड़ी जीत होगी, अन्यथा यह साफ हो जाएगा कि स्टारडम हमेशा राजनीति में काम नहीं आता.

अनंत सिंह बनाम सूरजभान सिंह परिवार की ‘जंग’

मोकामा सीट पर चुनाव विकास के मुद्दों से कहीं ज्यादा ‘बाहुबल’ और जातीय समीकरणों पर लड़ा जाता रहा है. इस सीट को पटना के ‘टाल’ क्षेत्र का प्रवेश द्वार कहा जाता है. मोकामा में ‘छोटे सरकार’ के नाम से मशहूर अनंत कुमार सिंह जेडीयू से मैदान में हैं. वहीं उनके धुर विरोधी सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी RJD उम्मीदवार हैं. परिवारों के बीच यह लड़ाई 25 साल बाद फिर से आमने-सामने की हो गई है.

अनंत सिंह 2005 से लगातार इस सीट से विधायक रहे हैं. इस बार JDU के प्रत्याशी अनंत सिंह को एक मामले में न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है. वह जेल से ही चुनाव लड़ रहे हैं, जैसा कि उन्होंने 2015 में भी किया था. अब पूर्व केंद्रीय मंत्री ललन सिंह जैसे दिग्गज मोकामा से अनंत को जीत दिलाने में जुटे हुए हैं.

मोकामा एक भूमिहार बहुल सीट है. यहां के लगभग 30% वोटर भूमिहार हैं, और यह जाति अनंत सिंह की कट्टर समर्थक मानी जाती है. दूसरी सबसे बड़ी आबादी 20 फीसदी के करीब यादवों की है. RJD ने सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी को उतारकर जातीय समीकरण को तोड़ने की कोशिश की है.

हाल ही में जन सुराज पार्टी के समर्थक दुलारचंद यादव की हत्या के बाद यहां का चुनावी माहौल जातीय और भावनात्मक दिशा ले चुका है. RJD हत्या के मामले को यादवों के बीच भावनात्मक रंग देने की कोशिश कर रही है, जबकि अनंत सिंह खेमा इसे राजनीतिक षड्यंत्र बता रहा है. यह पहला चरण बिहार की राजनीति के लिए एक सेमीफाइनल जैसा है, जो बता देगा कि जनता का रुख NDA के अनुभवी नेताओं की तरफ है या लालू परिवार के युवराजों की तरफ.

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