सभी गिराने में जुटे रहे, पर नीतीश कुमार नहीं गिरे, बिहार की राजनीति में ‘चचा’ का कोई तोड़ नहीं!
नीतीश कुमार
Bihar NDA Victory: बिहार के मतदाताओं ने अपना फैसला सुना दिया. नीतीश कुमार एक बार फिर बिहार के ‘किंग’ बनकर उभरे हैं. एनडीए ने 190 से ज्यादा सीटों पर बढ़त बनाया है, जबकि महागठबंधन 50 के आसपास ही सिमट गया है. अंतिम आंकड़े भी कुछ इसी प्रकार रहने की उम्मीद है. एक तरफ जहां विपक्षी दलों ने नीतीश कुमार को ‘पलटू राम’ कहकर कई बार घेरने की हर कोशिश की, वहीं जनता ने अपना फैसला साफ सुना दिया. विधानसभा चुनाव 2025 के रुझान और परिणाम बता रहे हैं कि राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (NDA) की सरकार बनने जा रही है.
‘सुशासन बाबू’ को फिर से सिंहासन पर बिठाया
अब तक नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जनता दल यूनाइटेड ने 76 सीटों पर बढ़त बनाई, बीजेपी 86 पर, चिराग पासवान की एलजेपी 22 पर और जीतन राम मांझी की हम (सेकुलर) 4 पर. दूसरी ओर, तेजस्वी यादव की अगुवाई वाला महागठबंधन मात्र 50 सीटों के आसपास सिमटता दिखाई दे रहा है. यह जीत सिर्फ आंकड़ों की नहीं, बल्कि बिहार की जनता के विश्वास की जीत है. 67.13 प्रतिशत रिकॉर्ड मतदान के बीच महिलाओं का 69-74 प्रतिशत टर्नआउट ने ‘सुशासन बाबू’ को फिर से सिंहासन पर बिठा दिया. नीतीश कुमार अब दसवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले सकते हैं. लेकिन सवाल यह है कि आखिर क्यों ‘चचा’ नीतीश को कोई तोड़ नहीं? क्यों 20 सालों में कोई दाग नहीं लगा उनके सफर पर? आइए, विस्तार से समझते हैं बिहार के इस चाणक्य की राजनीति क्यों है खास.
2025 का ‘नितीश-मोदी मैजिक’
2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान की विद्रोही रणनीति ने नीतीश की जेडीयू को महज 43 सीटें दिलाई थीं. एनडीए ने कुल 125 सीटें हासिल कीं, लेकिन बहुमत के आंकड़े से महज 3 ज्यादा. विपक्ष ने इसे कमजोरी माना, लेकिन 2025 में चिराग एनडीए में लौटे और सीटों पर 22 की बढ़त बना ली. एक्जिट पोल्स ने एनडीए को 160 पार का अनुमान लगाया था, लेकिन रुझान 190+ दिखा रहे हैं. चुनाव आयोग के आधिकारिक ट्रेंड्स के मुताबिक, एनडीए ने सीमांचल, मगध और कोसी जैसे क्षेत्रों में साफ झाड़ू लगाई. तेजस्वी यादव रघोपुर से तो आगे हैं, लेकिन आरजेडी कम सीटों पर सिमट गई. प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी भी फेल साबित हुई है. किशोर ने दावा किया था, “नीतीश को 25 से ज्यादा सीटें नहीं मिलेंगी, वरना राजनीति छोड़ दूंगा.” अब सवाल उठ रहा है कि क्या किशोर अपना वादा निभाएंगे?
उन्होंने बीजेपी के साथ ‘नितीश-मोदी’ फॉर्मूला दोहराया. पीएम मोदी के अंतिम हफ्तों के आक्रामक प्रचार ने ‘जंगल राज’ का डर जगाया, जबकि नीतीश ने महिलाओं को 10,000 रुपये की घोषणा पहले ही पूरी कर दी. परिणामस्वरूप, महिलाओं का वोटर टर्नआउट पुरुषों से 4.3 लाख ज्यादा रहा.
चचा की राजनीति क्यों इतनी खास?
नीतीश कुमार को ‘चाणक्य’ क्यों कहते हैं? क्योंकि वे जाति की दीवारें तोड़कर विकास की राजनीति पर चलते हैं. 2005 में जब वे पहली बार पूर्ण बहुमत से मुख्यमंत्री बने, बिहार ‘फेल स्टेट’ था. अपराध दर सबसे ऊंची, सड़कें टूटी, बिजली नाम की चीज ही नहीं. आज बिहार बदला हुआ है.
सुरक्षा: 2005 से पहले अपहरण रोज की बात, नीतीश के 20 साल में अपराध 50% कम, 1 लाख अपराधी जेल में हैं.
सड़कें: 2005 से पहले गांवों में कीचड़, अब 1 लाख किमी पक्की सड़कें.
बिजली: 2005 से पहले दिन में 2 घंटे, अब हर घर रोशनी, 100% गांव जुड़े.
स्कूल: पहले लड़कियां घर पर रहती थीं, अब 1 करोड़ साइकिल, लड़कियां कॉलेज जा रही हैं.
पलायन मजबूरी है, क्योंकि राज्य में नौकरी नहीं है. लेकिन सरकार इस पर भी काम कर रही है. ये आंकड़े सरकारी रिपोर्ट्स के आधार पर है. नीतीश ने महादलितों को अलग आरक्षण दिया, अति पिछड़ों को 26% हिस्सा बनाया. यादव-मुस्लिम वोट बैंक पर निर्भर नहीं रहे.
‘सबका साथ’ मॉडल; कोई बड़ा दाग नहीं लगा
नीतीश ने 2005-2010 में बीजेपी के साथ मिलकर ‘जंगल राज’ खत्म किया. 2015 में आरजेडी से गठबंधन किया, लेकिन 2017 में वापस बीजेपी के साथ. इन ‘पलटनों’ के बावजूद, विकास पर फोकस ने उन्हें साफ इमेज दी. पूर्व डीजीपी डी.एन. गौतम ने अपनी किताब में लिखा, “नीतीश ने अपराधियों पर कड़ा प्रहार किया, जो पहले असंभव था.”
नीतीश विधानसभा चुनाव नहीं लड़ते (1977-85 में सिर्फ एक बार जीते), लेकिन विधान परिषद से एमएलसी रहकर शासन चलाते हैं. 74 साल की उम्र में भी ‘टाइगर अभी जिंदा है’ पोस्टर लगे. स्वास्थ्य पर सवाल उठे, लेकिन जनता ने जवाब दिया.
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‘बिमार’ बनाने की कोशिश नाकाम
महागठबंधन ने नीतीश को ‘बूढ़ा’ और ‘बीमार’ बताकर घेरा. तेजस्वी ने युवा ऊर्जा का दावा किया, लेकिन ‘जंगल राज’ का भय और विकास का रिकॉर्ड हावी रहा. कांग्रेस मात्र 5-6 सीटों पर सिमटती दिखाई दे रही है, वाम दल संघर्ष कर रहे. एक्स पर ट्रेंडिंग #BiharElection2025 में जेडीयू कार्यालय के बाहर जश्न की तस्वीरें वायरल हैं. जेडीयू नेता नीरज कुमार बोले, “जंगल राज के वारिस हार रहे, सुशासन जीत रहा.”
नीतीश की अस्वस्थता को जनता ने ठुकराया
चुनावी माहौल में विपक्ष ने नीतीश कुमार की सेहत को बड़ा मुद्दा बनाया. तेजस्वी यादव और प्रशांत किशोर ने लगातार कहा कि 74 साल के ‘बूढ़े’ और ‘बीमार’ नीतीश को सत्ता सौंपना बिहार के लिए खतरा है, बल्कि युवा नेतृत्व चुनें. लेकिन बिहार की जनता ने इस प्रोपगैंडे को सिरे से नकार दिया. नीतीश ने खुद 50 से ज्यादा रैलियां कीं.
4 करोड़ लाभार्थियों का वोट बैंक
एनडीए सरकार ने पिछले पांच सालों में 4 करोड़ से ज्यादा लोगों को विभिन्न योजनाओं से जोड़ा, जो चुनाव में ‘विनिंग फैक्टर’ साबित हुआ. इनमें से ज्यादातर ग्रामीण और गरीब वर्ग के थे, जिन्होंने वोटिंग के दिन एनडीए को ‘धन्यवाद’ दिया. 10 हजार रुपये वाली महिला उद्यमिता योजना, जीविका समूहों को ब्याज-मुक्त लोन और पेंशन बढ़ोतरी जैसी स्कीम्स ने सीधा असर डाला.
आधी आबादी ने लगाई मुहर
2025 चुनाव में महिलाओं ने एनडीए को ‘गेम चेंजर’ बनाया. कुल वोटिंग में महिलाओं का टर्नआउट 74% रहा, जो पुरुषों से 4.3 लाख ज्यादा था. नीतीश की योजनाओं ने करीब 1.3 करोड़ महिलाओं के खाते में 10 हजार रुपये डाले, जिससे वे स्वरोजगार की ओर बढ़ीं. जीविका, आशा और ममता कार्यकर्ताओं का मानदेय बढ़ा, शराबबंदी बरकरार रही, पंचायतों में 50% और नौकरियों में 35% आरक्षण मिला. साइकिल योजना से 1 करोड़ लड़कियां स्कूल पहुंचीं, जिसकी साक्षरता दर 60% से ऊपर हो गई. पटना की एक महिला मतदाता रेखा देवी ने कहा, “चचा ने बेटियों को सशक्त बनाया, अब हम उनका साथ देंगे.” यह वोट बैंक विपक्ष के ‘जंगल राज’ डर को भी तोड़ गया.
125 यूनिट फ्री बिजली
चुनाव से ठीक पहले घोषित 125 यूनिट मुफ्त बिजली योजना ने महागठबंधन के सपनों पर पानी फेर दिया. 1 अगस्त 2025 से लागू इस स्कीम से 1.67 करोड़ परिवारों को फायदा हुआ, जिसमें ऊर्जा शुल्क, फिक्स्ड चार्ज सब माफ. नीतीश ने कहा, “यह सबका विकास है.” योजना के तहत सोलर प्लांट्स भी लगाए जाएंगे, जिससे 10,000 मेगावाट ऊर्जा बनेगी. यह तोहफा गरीबों के लिए वरदान साबित हुआ, क्योंकि पहले बिजली बिल बोझ था.” विपक्ष ने इसे ‘लॉलीपॉप’ कहा, लेकिन जनता ने इसे अपनाया, खासकर ग्रामीण इलाकों में, जहां एनडीए ने साफ झाड़ू लगाई.
पांच पांडवों का सोशल इंजीनियरिंग जातिगत समीकरण पर भारी
एनडीए के ‘पांच पांडव’ जेडीयू, बीजेपी, हम, रालोमो और एलजेपी ने जातिगत गणित को पलट दिया. नीतीश ने ईबीसी (26%), कुर्मी-कोइरी (7%), महादलितों को आरक्षण बढ़ाया, जबकि चिराग ने पासवान वोट जोड़ा. 2020 में चिराग की बगावत से नुकसान हुआ था, लेकिन इस बार गठबंधन ने सीमांचल और कोसी में कमाल किया. महागठबंधन का यादव-मुस्लिम फोकस कमजोर पड़ा. राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं, “नीतीश की चाणक्य नीति ने जाति की दीवारें तोड़ीं.” कुल मिलाकर, एनडीए का सामाजिक समीकरण विपक्ष पर भारी पड़ा.
बूथ मैनेजमेंट और सीट शेयरिंग
एनडीए ने बूथ लेवल पर शानदार प्रबंधन किया. महागठबंधन में साथी दलों ने शिकायत की कि उनके एजेंट गायब रहे, जबकि एनडीए के कार्यकर्ता हर बूथ पर तैनात थे. सीट शेयरिंग में भी एनडीए ने जल्दी फैसला लिया, बीजेपी 101, जेडीयू 101, जबकि महागठबंधन में आरजेडी-कांग्रेस पर तनाव चला. इससे एनडीए को शुरुआती बढ़त मिली और अंत में 190+ सीटों का रिजल्ट आया.
उम्मीदवार चयन
एनडीए ने उम्मीदवारों की लिस्ट सबसे पहले जारी की, जिसमें 100% स्थानीय और स्वीकार्य चेहरे थे. महागठबंधन में देरी हुई, और कई सीटों पर ‘दोस्ताना लड़ाई’ हो गई, जैसे वीआईपी-आरजेडी. जनता ने इसे कमजोरी माना, जिसका असर रुझानों में दिखा. एनडीए के चयन ने ‘साफ-सुथरी छवि’ को मजबूत किया.
एनडीए ने बागियों को गले लगाकर स्मार्ट मूव खेला. तारापुर में वीआईपी के विद्रोही उम्मीदवार को बीजेपी ने टिकट दिया, जिससे वोट स्प्लिट टला. इसी तरह, अन्य सीटों पर लोकल लीडर्स को शामिल किया. यह रणनीति महागठबंधन की एकजुटता को तोड़ने में काम आई और एनडीए को अतिरिक्त 10-15 सीटों का फायदा पहुंचाया.
चचा क्यों अपराजेय?
20 सालों में नीतीश ने साबित किया कि राजनीति में ‘पलटना’ नहीं, ‘परिवर्तन’ जीतता है. जाति से ऊपर उठकर महिलाओं, ईबीसी और महादलितों को जोड़ा. कोई बड़ा घोटाला नहीं, सिर्फ काम. 2025 की यह जीत बताती है कि बिहार की जनता ‘चचा’ पर भरोसा करती है. अब सवाल यह कि दसवीं बार शपथ के बाद क्या नई ऊंचाइयां छुएंगे बिहार? या विपक्ष फिर साजिश रचेगा? वक्त बताएगा, लेकिन फिलहाल पटना में ‘बिहार का मतलब नीतीश कुमार’ के पोस्टर लहरा रहे हैं.