पहले PDA वाला दांव, अब ‘ब्राह्मणों’ को साधने की कोशिश…Mata Prasad Pandey को आगे कर कौन सी राजनीति साध रहे हैं अखिलेश?

सपा ने माता प्रसाद पांडे को नेता प्रतिपक्ष बनाकर अपनी ब्राह्मण विरोधी छवि को भी सुधारने की कोशिश की है.  हाल के दिनों में अखिलेश यादव ने PDA पिछड़े , दलित और अल्पसंख्यक का राग खूब अलापा है.
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माता प्रसाद पांडे और अखिलेश यादव | फोटो- सोशल मीडिया

UP Politics: समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव ने रविवार को दो बार विधानसभा अध्यक्ष रह चुके माता प्रसाद पांडे (Mata Prasad Pandey) को उत्तर प्रदेश विधानसभा में विपक्ष का नेता (LOP) बनाया है. पहले ही पिछड़ा दलित और अल्पसंख्यक यानी PDA के बूते समाजवादी पार्टी ने यूपी में बीजेपी को बड़ी चोट दी है. हालांकि अब उन्होंने विधानसभा चुनाव से पहले ब्राह्मण कार्ड खेल दिया है.

विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटे अखिलेश

अखिलेश यादव यूपी विधानसभा चुनाव की तैयारी में अभी से जुट गए हैं. यही वजह है कि सपा के वरिष्ठ विधायक माता प्रसाद पांडे को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बना दिया है. 82 वर्षीय माता प्रसाद पांडे मुलायम सिंह यादव के बेहद करीबी रहे हैं. सबसे खास बात ये कि माता प्रसाद यूपी में सपा के सबसे बड़े ब्राह्मण चेहरों में से एक हैं. पिछले कई दिनों से अखिलेश यादव यूपी की टॉप पोस्ट पर ठाकुर समाज से आने वाले अधिकारियों की नियुक्ति को लेकर भी ब्राह्मणों को उकसाते और इसके जरिए योगी आदित्यनाथ पर हमला बोलते दिखाई दे रहे थे. लेकिन अब उन्होंने रणनीतिक चाल चलते हुए माता प्रसाद पांडे को आगे कर दिया है.

बीजेपी के वोट बैंक पर नजर

बता दें कि माता प्रसाद पांडे के जरिए अखिलेश अब बीजेपी के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश में हैं. ब्राह्मण समाज को बीजेपी का कोर वोटर माना जाता रहा है. हालांकि ये वोटर 2007 में बीजेपी से छिटका और बहुजन समाज पार्टी के पाले में गया तो मायावती ने राज्य में सरकार बना ली थी. उत्तर प्रदेश में यूं तो 12 प्रतिशत ब्राह्मण वोटर्स हैं, लेकिन इनका प्रभाव अपनी संख्या से कहीं ज्यादा है. इसे ऐसे समझिए…दरअसल, ब्राह्मण वर्ग को पढ़ा लिखा और लोगों की राय गढ़ने वाला माना जाता है. ऐसे में भी ये वर्ग महत्वपूर्ण बन जाता है. इस वोट बैंक को हरगिज भी अपने हाथों से न छिटकने देने के लिए बीजेपी लगातार कोशिश करती रही है. बृजेश पाठक को डिप्टी सीएम की कुर्सी देना इसी कोशिश का उदाहरण है. अब अखिलेश लोकसभा में मिली बढ़त को विधानसभा चुनाव तक खोना नहीं चाहते हैं. उनका पीडीए वाला फॉर्मूला भी काम कर गया है. ऐसे में अखिलेश अब ब्राह्मण वोटरों को साधने में जुट गए हैं.

रेस में थे शिवपाल यादव

सिद्धार्थनगर जिले के इटवा से विधायक माता पांडे अखिलेश यादव की जगह लेंगे. सूत्रों के मुताबिक,  छह बार विधायक रह चुके शिवपाल यादव भी एलओपी पद के लिए सबसे बड़े दावेदार थे. 2007 में जब मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं तो शिवपाल ने इस पद पर काम किया था. हालांकि, पार्टी के रणनीतिकारों ने तीन कारणों से पांडे को ही चुना. सबसे पहले पार्टी एक अनुभवी और जानकार विधायक चाहती थी, जिसे विधानसभा के नियमों और मानदंडों की समझ हो और माता प्रसाद पांडे इस पद के लिए उपयुक्त थे. माता प्रसाद विधानसभा अध्यक्ष के रूप में भी दो कार्यकाल पूरे कर चुके हैं. मुलायम सरकार में 2004 से 2007 तक और फिर 2012 से 2017 अखिलेश सरकार में माता विधानसभा के अध्यक्ष थे. सपा इस अनुभव का फायदा उठाना चाहती है.

दूसरे, पार्टी ऐसे उम्मीदवार की तलाश में थी, जिसे विधायकों और सदन का सम्मान मिले. तीसरा, एक और कारण ये रहा जो शिवपाल के पक्ष में नहीं गया, वह यह था कि भाजपा लोकसभा चुनाव में यादव वंश के पांच सदस्यों को मैदान में उतारने के लिए सपा पर ‘वंशवाद की राजनीति’ का आरोप लगा रही थी.  शिवपाल के आने से बीजेपी को एक नया हथियार मिल जाता.

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ब्राह्मण विरोधी छवि सुधारने की कोशिश

समाजवादी पार्टी ने माता प्रसाद पांडे को नेता प्रतिपक्ष बनाकर अपनी ब्राह्मण विरोधी छवि को भी सुधारने की कोशिश की है.  हाल के दिनों में अखिलेश यादव ने PDA पिछड़े , दलित और अल्पसंख्यक का राग खूब अलापा है. राजनीतिक जानकारों की मानें तो अखिलेश के पीडीए वाले दांव से उच्च वर्ग के लोग नाराज हैं.

इस बात की भी चर्चा थी कि गैर-यादव ओबीसी को एलओपी बनाया जा सकता है, लेकिन पांडे के पक्ष में तराजू इस आधार पर पलट गया कि गैर-यादव ओबीसी को लोकसभा चुनावों के लिए टिकटों में बड़ा हिस्सा मिला है. सपा के नए मुख्य सचेतक कमाल अख्तर शायद सपा के उन चंद पदाधिकारियों में से एक हैं,  जिन्होंने अपना राजनीतिक जीवन सीधे राज्यसभा सदस्य के रूप में शुरू किया. जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र, उन्हें मुलायम सिंह यादव ने 2004 में उच्च सदन में भेजा था.

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