चीन और पाकिस्तान ने बांग्लादेश में भड़काई हिंसा! आरक्षण की लड़ाई शेख हसीना तक आई

कई मीडिया रिपोर्ट्स में ये बात कही जा रही है क‍ि प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी की छात्र शाखा, छात्र शिबिर, हिंसा भड़का रही है और बांग्लादेश में छात्र विरोध को राजनीतिक आंदोलन में बदल रही है. इन छात्रों के बारे में कहा जा रहा है क‍ि इन्‍हें पाकिस्तान की ISI का समर्थन प्राप्त है.

Bangladesh Violence: दशकों से शेख हसीना की सत्तारूढ़ अवामी लीग को बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की तुलना में अधिक भारत समर्थक माना जाता है.  कहा जा रहा है कि इसलिए चीन और पाकिस्तान ने यह सुनिश्चित किया कि शेख हसीना के खिलाफ बांग्लादेश में विरोध प्रदर्शन बढ़े ताकि भारत समर्थक पार्टी को बाहर किया जा सके. अब जब बीएनपी की बारी है, तो चीन और पाकिस्तान दोनों ही खुश होंगे.

बांग्लादेश में 2 महीने तक चले आरक्षण विरोधी छात्र आंदोलन के बाद प्रधानमंत्री शेख हसीना ने  5 अगस्त को अपने पद से इस्तीफा दे दिया. हिंसक माहौल के कारण शेख हसीना को देश छोड़कर भागना भी पड़ा. खबरों के मुताबिक, उनकी बहन रेहाना भी उनके साथ हैं. वह बंगाल के रास्ते दिल्ली पहुंची हैं. कुछ रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि शेख हसीना दिल्ली से लंदन के लिए रवाना हो सकती हैं और वहां से वह फिनलैंड या किसी अन्य देश जा सकती हैं. हालांकि, अभी तक कुछ भी पुष्टि नहीं हुई है. इस्तीफे के साथ ही बांग्लादेश में हसीना का 15 साल का शासन खत्म हो गया है. फिलहाल शेख हसीना को भारत ने शरण दिया है. हसीना के लिए खुद NSA अजीत डोभाल ने सुरक्षा के इंतजामात किए हैं.

बांग्लादेश की माली हालत पस्त

कोविड-19 महामारी के बाद से देश की अर्थव्यवस्था संघर्ष कर रही है. बांग्लादेश वर्तमान में बढ़ती आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा है. बेरोजगारी चरम पर है. दाल आलू के दाम भी पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की तरह आसमान छू रहे हैं. इस स्थिति में देश अब चीन के ‘ऋण चक्र’ का हिस्सा बन गया है. कई देशों ने बांग्लादेश में चीन की उपस्थिति पर चिंता व्यक्त की है. यहां तक कि अमेरिका को भी लगता है कि बांग्लादेश,नेपाल, श्रीलंका, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के लिए व्यापारिक साझेदार के रूप में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी सबसे ऊपर है.

चीन का बढ़ता प्रभाव

बांग्लादेश में चीन का बढ़ता प्रभाव चिंता का विषय रहा है. बांग्लादेश की वित्तीय चुनौतियों में उसका भारी कर्ज का बोझ शामिल है. हसीना की हाल की चीन यात्रा उम्मीद के मुताबिक नहीं रही और वे बीच में ही नाराज़ होकर चली गईं.तीन दिनों की बातचीत और वार्ता के दौरान, हसीना केवल चीन को 137 मिलियन डॉलर की वित्तीय सहायता पर सहमत करा सकीं. वे अपनी चार दिवसीय बीजिंग यात्रा के समापन से एक दिन पहले 10 जुलाई को स्वदेश लौटीं. उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया था कि वह भारत के साथ तीस्ता समझौते पर ही आगे बढ़ेंगी, जिससे चीन को बहुत चिढ़ हुई. यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि हसीना की सत्तारूढ़ अवामी लीग को बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की तुलना में भारत का अधिक समर्थक माना जाता है.

हसीना के नेतृत्व में बांग्लादेश भारत की उपमहाद्वीप में शांति की इच्छा के साथ तालमेल बिठा रहा था. इसके लिए, दोनों देश कई मुद्दों पर मिलकर काम कर रहे थे ताकि चीन के प्रभाव को कम किया जा सके. ऐसा लगता है कि चीन ने इसे समझ लिया और अपने ‘मित्र’ पाकिस्तान की मदद से यह सुनिश्चित किया कि हिंसा ढाका की सड़कों पर हो. ताजा हालातों को देखते हुए अब लग रहा है कि चीन और पाकिस्तान अपने मंसूबों में कामयाब हुआ है.

इसके पीछे ISI का हाथ तो नहीं ?

कई मीडिया रिपोर्ट्स में ये बात कही जा रही है क‍ि प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी की छात्र शाखा, छात्र शिबिर, हिंसा भड़का रही है और बांग्लादेश में छात्र विरोध को राजनीतिक आंदोलन में बदल रही है. इन छात्रों के बारे में कहा जा रहा है क‍ि इन्‍हें पाकिस्तान की ISI का समर्थन प्राप्त है. रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है क‍ि पाकिस्तान की सेना और ISI प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार गिराकर विपक्षी BNP को सत्ता में वापस लाना है.

इस बात का सबूत पाकिस्तान के इस करतूत से भी मिलता है. दरअसल, हाल ही में पाकिस्तान सरकार की ओर से एक अजीब कदम उठाया गया. पाकिस्तानी दूतावास ने बांग्लादेश में छात्रों से कहा था कि वे जरूरत पड़ने पर वहां शरण ले सकते हैं. रिपोर्ट के अनुसार आईएसआई का मानना है कि बांग्लादेश की अवामी लीग सरकार जिसने इसी साल हुए चुनावों में जीत हासिल कर फिर से सरकार बनाई थी उसे भारत का समर्थन मिला है और पड़ोस के इस हिस्से में हलचल पैदा करने के लिए इसका हटाया जाना जरूरी है.

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