भतीजे ने बनाई दूरी, TMC में भी विरोध और कांग्रेस से भी नहीं मिल पा रहा सहयोग…क्या ‘कोलकाता कांड’ के बाद अकेली पड़ गईं हैं ‘दीदी’?
Kolkata Doctor Case: कोलकाता के आर.जी.कर मेडिकल कॉलेज में एक जूनियर डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की भयावह घटना ने पूरे देश के डॉक्टरों को नाराज कर दिया है. मामला सीबीआई के हाथ में है. वहीं पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी अपने राज्य में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने में विफल रहने के लिए लगातार विपक्षी पार्टियों के निशाने पर हैं. वे ममता पर महिला मुख्यमंत्री होने के बावजूद अपने राज्य में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की कई अन्य घटनाओं पर नरम रुख अपनाने का भी आरोप लगा रहे हैं. जिस तरह का माहौल ममता बनर्जी के खिलाफ बन रहा है, कम से कम उससे तो यही लग रहा है कि ‘दीदी’ धीरे-धीरे हर मोर्चे पर घिर रही हैं.
पार्टी में उनके खिलाफ गुस्सा लगातार बढ़ रहा है. घर में भी सब ठीक-ठाक नहीं लग रहा है. कांग्रेस से भी सहयोग नहीं मिल पा रहा है. भतीजे अभिषेक बनर्जी से बढ़ती दूरी उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर रही हैं. जरा याद करिये साल था 1993. नादिया जिले में एक बलात्कार पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए वो राइटर्स बिल्डिंग में घुस गईं थीं. तत्कालीन ज्योति बसु की वामपंथी सरकार ने उन्हें घसीटते हुए बिल्डिंग से बाहर किया था. अब तीन दशक के बाद एक बार फिर से वही स्थिति है. मामला बलात्कार और हत्या का ही है. पश्चिम बंगाल की जनता ही अब ममता को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाने को आतुर दिख रही है. अपने ही राज्य और अपने ही पार्टी समर्थकों के बीच ममता अकेली दिख रही हैं.
घरेलू मोर्चे पर भी कमजोर पड़ीं ‘दीदी’
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को ही इस मामले में हुई हीला-हवाली पर ममता सरकार को फटकार लगाई है और गहरी नाराजगी जताई है. अब ममता को घरेलू मोर्चे पर भी संकट का सामना करना पड़ रहा है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पार्टी में नंबर दो की हैसियत रखने वाले ममता बनर्जी के भतीजे, पार्टी महासचिव और लोकसभा सांसद अभिषेक बनर्जी इन दिनों पार्टी के कार्यक्रमों खासकर कोलकाता कांड पर हो रहे ममता बनर्जी के विरोध-प्रदर्शनों और मार्च से खुद को दूर रखे हुए हैं. कहा जा रहा है कि अभिषेक कोलकाता कांड से निपटने के तौर-तरीकों से नाखुश हैं.
कहा जा रहा है कि अभिषेक बनर्जी ने पिछले कुछ दिनों से पार्टी के मीडिया प्रबंधन से भी खुद को अलग कर लिया है. इस बीच टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी ने सोमवार को मीडिया के साथ पार्टी की कनेक्टिविटी मजबूत करने और मीडिया निगरानी के लिए एक नई चार सदस्यीय समिति का गठन किया है. बड़ी बात यह है कि लोकसभा चुनावों के दौरान अभिषेक बनर्जी ही पार्टी के चुनाव प्रचार अभियान की कमान संभाल रहे थे. उन चुनावों में पार्टी ने उम्दा प्रदर्शन करते हुए राज्य की कुल 42 में से 29 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी.
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TMC में भी विरोध
कोलकाता रेप केस को जिस तरह ममता सरकार ने हैंडल किया है. इसके बाद टीएमसी में ही विरोध के स्वर सुनाई देने लगी है. ऐसा पहली बार हुआ है कि उनके खास लोग ही उनके खिलाफ बोलने लगे हैं. ममता सरकार के रवैये के चलते पार्टी में उनके खिलाफ आवाजें उठने लगी हैं. टीएमसी के राज्यसभा सदस्य सुखेंदु शेखर राय और पूर्व सांसद शांतनु सेन ने अपनी तल्ख टिप्पणियों से पार्टी और सरकार को मुश्किल में डाल दिया है. सुखेंदु शेखर राय ने इस मुद्दे पर पार्टी लाइन के खिलाफ जा कर कोलकाता पुलिस और आरजी कर मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल के कामकाज पर सवाल उठाते हुए सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है. राय ने इस मुद्दे पर शुक्रवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को भेजे एक पत्र में हर ज़िले में तीन-तीन फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित करने और ऐसे मामलों का निपटारा छह महीने में करने की अपील की है.
बीजेपी ने बदला विरोध का तरीका
इस बार बीजेपी ने भी विरोध का तरीका बदल लिया है. पहले बंगाल में कुछ भी होता था तो देशभर के बीजेपी नेता बयानबाजी शुरू कर देते थे. लेकिन इस बार बीजेपी ने जो रणनीति अपनाई है, वो सबसे अलग है. याद करिये संदेशखाली और विधानसभा चुनावों के बाद हुई हिंसा का विरोध, भारतीय जनता पार्टी ने बंगाल के लोकल नेतृत्व पर केंद्रीय नेतृत्व को थोपने का काम किया. इस बार तो केंद्र ने चुप्पी साध रखी है. बंगाल के बाहर के जो भी बीजेपी नेता हैं वो भी चुप हैं. इस बार बीजेपी शीर्ष नेतृत्व ने ट्रेनी डॉक्टर के बलात्कार और हत्या के विरोध का जिम्मा बंगाल बीजेपी नेताओं को दे दी है. जाहिर है कि बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व यह समझ चुका है कि बंगाल में बाहर का नेतृत्व स्वीकार नहीं किया जाएगा. इसलिए इस बार प्रदेश बीजेपी के नेताओं को खुला हैंड दे दिया गया है. दिल्ली के नेताओं ने पीड़ित परिवार से मिलने आदि के लिए कोलकाता जाने की कोशिश नहीं की है. आने वाले विधानसभा चुनाव चुनाव की तैयारी बीजेपी ने अभी से शुरू कर दिया है.
ममता से महिलाओं को उम्मीद
पिछले कुछ सालों से पश्चिम बंगाल को छोड़कर देश के किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश की मुखिया कोई महिला नहीं रही है. पश्चिम बंगाल के लोगों, खासकर महिलाओं को ममता बनर्जी के सीएम बनने से बहुत उम्मीदें थीं, क्योंकि वह यह सुनिश्चित करने के लिए भी जानी जाती हैं कि उनके मतदाता, खासकर महिलाएं, अपनी नाराजगी सीधे उनसे कहें. लेकिन अब राजनीति को समझने वाले लोगों की मानें तो पश्चिम बंगाल में महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों की संख्या से पता चलता है कि एक महिला होने के नाते मुख्यमंत्री ममता महिलाओं की उम्मीदों पर खरा उतरने में विफल रही हैं.
पश्चिम बंगाल में बलात्कार के मामलों का लगातार राजनीतिकरण हुआ है. राज्य में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के कई मामले सामने आए हैं. कहीं न कहीं सीएम ममता बनर्जी इन मामलों में उचित कार्रवाई करने में विफल रही और आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति में लगी रही.राजनीतिक पंडितों के मुताबिक, अब तक उनकी सरकार महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने में विफल रही है और बलात्कार, हत्या और महिलाओं के खिलाफ अपराध के कई मामलों में आरोपियों को दंडित करने के बजाय, वह राजनीतिक बयानबाजी और दोषारोपण के खेल में लगी रही हैं.