जब बांग्लादेश के उपद्रवियों ने अपने ‘राष्ट्रपिता’ को भी नहीं छोड़ा…पिता मुजीबुर्रहमान की हत्या के बाद हसीना को मिली थी भारत में शरण

पिता की हत्या से ठीक 15 दिन पहले ही अपनी बहन के साथ हसीना जर्मनी चली गई थीं. हसीना के पति न्यूक्लियर साइंटिस्ट थे और जर्मनी में ही रहते थे.
मुजीबुर्रहमान और शेख हसीना

मुजीबुर्रहमान और शेख हसीना

Bangladesh Violence: शेख हसीना के देश छोड़कर भागने की खबरों के बाद हजारों बांग्लादेशी प्रदर्शनकारियों ने ढाका में पीएम आवास पर कब्जा कर लिया है. प्रदर्शनकारियों ने ढाका की सड़कों पर झंडे लहराए. कुछ लोगों ने शेख हसीना के पिता और बांग्लादेश के पूर्व राष्ट्रपति शेख मुजीबुर्रहमान की प्रतिमा को भी तोड़ दिया. शेख मुजीबुर्रहमान की मूर्ति पर हथोड़ा चलाया जाना हर किसी को हैरत में डाल रहा है.  ये वही मुजीब हैं, जिन्हें बांग्लादेश का जनक कहा जाता है. उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ ‘सशस्त्र संग्राम’ की अगुवाई करते हुए बांग्लादेश को आजादी दिलाई. जो प्रदर्शनकारी आज बांग्लादेश में प्रदर्शन कर रहे हैं उन्हीं के पूर्वजों ने शेख मुजीबुर्रहमान को ‘बंगबंधु’ की पदवी से सम्मानित किया है.

हसीना का राजनीतिक जीवन

बता दें कि ऐसा नहीं है कि शेख हसीना पहली बार हिंसा का सामना कर रही हों. उनका राजनीतिक जीवन, उनके देश की तरह हिंसा से ही शुरू हुआ. 15 अगस्त 1975 को तख्तापलट के दौरान सेना के अधिकारियों ने ही उनके पिता शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या कर दी थी. उस समय शेख बांग्लादेश के राष्ट्रपति थे. मुजीबुर्रहमान के लगभग पूरे परिवार की हत्या कर दी गई थी. हालांकि, शेख हसीना और उनकी बहन बच गईं. शेख मुजीब की हत्या के बाद भी उनकी बेटी शेख हसीना अपनी बहन के साथ जर्मनी से दिल्ली आई थीं और कई साल तक रही थीं. 1981 में बांग्लादेश लौटकर शेख हसीना ने अपने पिता की राजनीतिक विरासत को संभाला था.

पिता की हत्या से पहले जर्मनी गई थी हसीना

पिता की हत्या से ठीक 15 दिन पहले ही अपनी बहन के साथ हसीना जर्मनी चली गई थीं. हसीना के पति न्यूक्लियर साइंटिस्ट थे और जर्मनी में ही रहते थे. 30 जुलाई, 1975 की वो तारीख थी जब हसीना अपने पिता से आखिरी बार मिल पाई थीं. दो हफ्ते बाद 15 अगस्त, 1975 को हसीना को पता चला कि सैन्य तख्तापलट में उनके पिता की हत्या हो गई. बांग्लादेश की राजनीति को करीब से जानने वाले लोगों के मुताबिक, शेख हसीना को ये बात नहीं पता थी कि उनके पिता ही नहीं बल्कि पूरे परिवार को खत्म कर दिया गया है. पीएम इंदिरा गांधी को मुजीब के परिवार की चिंता हुई तो उन्होंने जर्मनी में तत्कालिन राजदूत हुमायूं राशिद चौधरी को हसीना के पास भेजा था.

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2009 से राष्ट्र की कमान संभाल रही थी हसीना

शेख हसीना का इस्तीफा और ढाका से भागना देश के उथल-पुथल भरे इतिहास में एक नया अध्याय है. हसीना ने जनवरी में विवादों से घिरे चुनाव में लगातार चौथी बार जीत हासिल की. मुख्य विपक्षी दलों ने मतदान का बहिष्कार किया था. चुनाव के दौरान हजारों विपक्षी सदस्यों को जेल में डाल दिया गया था. इसके बावजूद, चुनाव को लोकतांत्रिक रूप से आयोजित किया गया था. बांग्लादेश के इतिहास में सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाली नेता के रूप में हसीना 2009 से मुस्लिम राष्ट्र की कमान संभाल रही हैं. अब कई लोग मानते हैं कि मौजूदा अशांति उनकी कथित नियंत्रण की भूख और सत्तावादी प्रवृत्ति का प्रत्यक्ष परिणाम है.

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