33 साल बाद भी ताजा हैं भिलाई गोलीकांड के जख्म… जब पुलिस ने मजदूरों पर दागी थी गोलियां, जानें पूरी कहानी

33 Years Of Bhilai Golikand: दुर्ग जिले के भिलाई में आज से 33 साल पहले हुए गोलीकांड के जख्म आज भी नहीं भरे हैं. साल 1992 था जब पुलिस ने मजदूरों पर गोलियां दाग दी थीं. जानें क्या है इस गोलीकांड की पूरी कहानी-
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भिलाई गोलीकांड

33 Years Of Bhilai Golikand: 1 जुलाई को भिलाईवासियों को वह दिन याद आता है, जिसने पूरे शहर और देश को झकझोर दिया था. आज से 33 साल पहले साल 1992 में आज की ही तारीख पर भिलाई पॉवर हाउस रेलवे स्टेशन पर पुलिस की गोलीबारी में 17 श्रमिकों और 2 पुलिसकर्मियों की मौत हो गई थी. इस गोलीकांड को बीते भले ही 33 साल गुजर हों, लेकिन इसके जख्म आज भी ताजा हैं.

1 जुलाई 1992 को भिलाई पॉवर हाउस रेलवे स्टेशन पर मजदूर आंदोलन कर रहे थे. अपंनी मांगों को पूरा करने के लिए मजदूर आक्रोशित होकर प्लेटफार्म नंबर एक पर आंदोलन कर रहे थे. मजदूरों की संख्या इतनी बड़ी थी कि उन्हें काबू में लाना बेहद मुश्किल हो गया था. ऐसे में प्रशासन ने भीड़ को खदेड़ने के लिए गोली चलाने का आदेश दे दिया था. पुलिस की गोलीबारी में 17 श्रमिकों और 2 पुलिसकर्मियों की मौत हो गई थी.

भिलाई गोलीकांड के 33 साल

यह घटना छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के संस्थापक और लोकप्रिय मजदूर नेता शंकर गुहा नियोगी की हत्या के बाद उपजे आक्रोश का परिणाम थी. आज गोलीकांड की 33वीं बरसी पर मृत श्रमिकों के परिजन एक बार फिर उन्हें श्रद्धांजलि देने पॉवर हाउस रेलवे स्टेशन में जुटे. आंसुओं का सैलाब के बीच मर चुके अपनों को याद किया औ न्याय की गुहार लगाई.

रेल रोको आंदोलन

28 सितंबर 1991 को नियोगी की हत्या ने मजदूरों को आंदोलित कर दिया था. 9 महीने तक शांतिपूर्ण प्रदर्शन, धरना, भूख हड़ताल और ज्ञापन के बाद भी जब सरकार ने मांगों की अनदेखी की, तो मजदूरों ने 1 जुलाई को रेल रोको आंदोलन का फैसला किया. बड़ी संख्या में श्रमिक पॉवर हाउस रेलवे स्टेशन की ओर बढ़े. शाम ढल रही थी, लेकिन कोई अधिकारी उनसे संवाद के लिए नहीं पहुंचा. इसी दौरान प्रशासन ने भीड़ पर गोली चलाने का आदेश दे दिया. इस गोलीकांड में 17 मजदूरों की जान गई और सैकड़ों घायल हो गए.

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9 जुलाई को देशव्यापी हड़ताल

आज इस घटना की याद में परिजन और मजदूर संगठन एकत्र होकर श्रद्धांजलि देते हैं और न्याय की मांग दोहराते हैं. छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के नेता भीमराव बागड़े ने आरोप लगाया कि गोलीकांड पूरी तरह अवैध था, लेकिन अब तक किसी पीड़ित परिवार को सरकारी नौकरी नहीं मिली. सरकार ने स्वयं माना था कि गोली चलाना गलत था. अब वे इस मामले में उच्चस्तरीय सुनवाई और मुआवजा व नौकरी की मांग कर रहे हैं. इसके साथ ही श्रमिक संगठनों ने केंद्र सरकार द्वारा श्रम कानूनों में किए गए बदलावों का विरोध करते हुए 9 जुलाई को देशव्यापी हड़ताल की घोषणा की है.

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