कौन था नक्सलियों का माइंड? जिसने बनाया ‘नक्सल शिक्षण केंद्र’, और युवाओं को पढ़ाया ‘A’ से AK-47 और ‘B’ से बम का पाठ…

CG News: साल 2026 के मार्च महीने तक सरकार ने नक्सलवाद के खात्मे की डेडलाइन तय की है. कई राज्यों को दहलाने वाले नक्सली अब इतिहास बनते जा रहे हैं. सुरक्षाबलों ने नक्सलियों की कमर के साथ-साथ उनके 'माइंड' पर भी गहरा प्रहार किया है.
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CG News: साल 2026 के मार्च महीने तक सरकार ने नक्सलवाद के खात्मे की डेडलाइन तय की है. कई राज्यों को दहलाने वाले नक्सली अब इतिहास बनते जा रहे हैं. सुरक्षाबलों ने नक्सलियों की कमर के साथ-साथ उनके ‘माइंड’ पर भी गहरा प्रहार किया है. नक्सलियों के ‘माइंड’ कहे जाने वाले सुधाकर को जवानों ने ढेर कर दिया.

छत्तीसगढ़ के बीजापुर नेशनल पार्क में 6 जून 2025 को नक्सलियों और सुरक्षाबलों के बीच मुठभेड़ हुई, जिसमें 1 करोड़ का इनामी नक्सली सुधाकर उर्फ टीएलएन चलाम मारा गया. सुधाकर आम नक्सली नेताओं की तरह नहीं था. 66 साल का सुधाकर नक्सलियों का वैचारिक गुरु, राजनीतिक शिक्षक और तकनीकी रणनीतिकार था. चलिए जानते हैं, आयुर्वेदिक मेडिसिन की पढ़ाई करने वाला सुधाकर कैसे बना नक्सलियों का ‘टेक ब्रेन’?

कौन था नक्सलियों का ‘माइंड’ सुधाकर?

टीएलएन चलाम उर्फ सुधाकर का जन्म आंध्र प्रदेश के एलुरु के प्रागदावरम में हुआ था. सुधाकर वेलामा परिवार से ताल्लुक रखता था. वेलामा एक हिंदू जाति है, और इस जाति के लोग तेलंगाना और आंध्र प्रदेश जैसे साउथ के राज्यों में पाए जाते हैं. सुधाकर ने अपनी शुरुआती पढ़ाई एलुरु से ही पूरी की। के सी.आर.रेड्डी कॉलेज से पढ़ाई करने के बाद वो आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा चला गया. वहां उसने आयुर्वेदिक मेडिसिन कोर्स में एडमिशन लिया, लेकिन उसने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी. 1980 के दशक में सुधाकर नक्सली विचारधारा से प्रभावित होने लगा था। साल 1986 आते-आते वो पीपुल्स वॉर ग्रुप में शामिल हो गया.

नक्सल में इन पदों पर रहा सुधाकर

सुधाकर साल 2001 से 2003 तक AOBSZC (आंध्र-ओडिशा सीमा विशेष क्षेत्रीय समिति) का सचिव रहा. सुधाकर के काम से बड़े नक्सली नेता इतने प्रभावित थे कि लगातार सुधाकर का रैंक बढ़ता चला गया. उसे नक्सलियों के सेंट्रल कमेटी का मेंबर बना दिया गया. सुधाकर के पास नक्सली संगठन से जुड़ी कई बड़ी जिम्मेदारी थी. आयुर्वेदिक मेडिसिन की पढ़ाई करने वाला टीएलएन चलाम अब एक खूंखार नक्सली सुधाकर बन चुका था. जिसने एक नक्सली के रूप में अपने जीवन के 40 साल गुजार दिए. इन 40 सालों में उसने सुधाकर, गौतम, रामा राजू, चंटी बालाकृष्णा, सोमन्ना जैसे कई नाम बदले. बीते 17 सालों से अबूझमाड़ क्षेत्र में सुधाकर नक्सली विचारधारा का लोगों के बीच प्रचार-प्रसार करने में जुटा था. इसके अलावा वो पार्टी के लिए उच्च स्तरीय रणनीतिकार के रूप में भी कार्यरत था.

युवा नक्सलियों का शिक्षक था सुधाकर

सुधाकर नक्सलियों का एजुकेशन हेड था. जिसका काम युवाओं का ब्रेनवॉश करना और उन्हें नक्सल संगठन से जोड़ना था. उसे हिंदी, तेलुगु, और गोंडी भाषाएं आती थी. जिससे उसके लिए अलग-अलग क्षेत्र के युवाओं को प्रभावित करना आसान था. सुधाकर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में बच्चों को ‘अ’ से ‘अनार’ नहीं, बल्कि ‘अ’ से ‘असलहा’ और ‘ब’ से ‘बंदूक’ सिखाता था. A,B,C,D पढ़ने की उम्र में वो बच्चों को ‘A’ से ‘AK-47’ और ‘B’ से ‘बम’ पढ़ाता था. उसने बस्तर के जंगलों में एजुकेशन सेंटर्स खोल रखे थे. जहां युवाओं को नक्सली बनने की ट्रेनिंग दी जाती थी. हर गांव में एक ऐसा स्कूल था, जहां बच्चे सुधाकर द्वारा बनाए गए नक्सली सिलेबस पढ़ते थे. सुधाकर हिंसक विचारधारा का प्रचारक था. वो बच्चों को स्थानीय लोगों पर पुलिस, वन विभाग और सरकार की ओर से किए जा रहे जुर्म की कहानी सुनाता था, और उन्हें सरकार के खिलाफ आवाज उठाने की शिक्षा देता था. सुधाकर शिक्षा की आड़ में बच्चों को AK-47, बंदूक, बम जैसे हथियार चलाने का प्रशिक्षण भी देता था. वो युवाओं को नक्सलवाद का इतिहास, नक्सली नेताओं की कहानी और कम्युनिस्ट क्रांति के सिद्धांत के बारे में जानकारी देता था. सुधाकर अपनी इस नक्सली पाठशाला में बड़े नक्सली नोताओं का व्याख्यान भी बच्चों को सुनाता था. जिससे उनपर गहरा प्रभाव पड़े और वे नक्सली नोताओं को अपना हीरो मानें. जिसका व्यापक असर भी देखने को मिला.

नक्सलियों का ‘टेक ब्रेन’ बना सुधाकर

माड क्षेत्र में सुधाकर पर RePoS (रीजनल ब्यूरो के क्रांतिकारी राजनीतिक स्कूल) और MoPoS (मोबाइल पॉलिटिकल स्कूल) चलाने की जिम्मेदारी थी। वो नक्सलियों के संचार तंत्र और उपकरण लॉजिस्टिक्स का मुख्य प्रभारी था। इन ट्रेनिंग मॉडल्स के जरिए सुधाकर GPS, वॉकी-टॉकी, डेटोनेटर और जंगली इलाकों में ऑपरेशनल मैपिंग की क्लास अपने संगठन से जुड़ने वाले नक्सलियों को देता था। वो युवाओं को राष्ट्रविरोधी विचारधारा की ओर गुमराह करता था और हिंसा के लिए उकसाने का काम करता था। सुधाकर युवाओं को गुरिल्ला युद्ध की भी ट्रेनिंग देता था।

शांति वार्ता के लिए जंगल से बाहर निकला

सुधाकर की पहचान साल 2004 में हुई, जब वो आंध्र प्रदेश सरकार और नक्सलियों के लिए शांति वार्ता के लिए लोगों के सामने आया. बड़े नक्सली नेता रामाकृष्ण और गणेश के साथ उसने गुत्तीकोंडा बिलम में एक जनसभा को संबोधित भी किया. साल 2004 में हैदराबाद में सरकार और नक्सलियों के बीच 15 से 18 अक्टूबर तक शांतिवार्ता चली. इस दौरान जल, जंगल, जमीन और कैदियों की रिहाई पर चर्चा हुई, लेकिन इस बातचीत से कोई हल नहीं निकला, और सुधाकर अपने साथियों के साथ एक बार फिर अंडरग्राउंड हो गया.

सुधाकर पर कई मामले दर्ज थे

सुधाकर पर मुठभेड़, शस्त्र और विस्फोटक अधिनियम का उल्लंघन करने जैसे अपराधों पर ओडिशा और आंध्र प्रदेश में मामले दर्ज थे. कोरापुट में घात लगाकर किए गए नक्सली हमले, मलकानगिरी में हुआ विस्फोट, बल्लुनिरी मुठभेड़, उसके मुख्य अपराध थे. उसपर 50 लाख का इनाम घोषित किया गया था। सुधाकर छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और तेलंगाना में भी मोस्ट वांटेड था. उसपर सभी राज्यों को मिलाकर कुल 1 करोड़ का इनाम घोषित था.

पत्नी भी थी नक्सली लीडर

चलपति और अरुणा की ही तरह सुधाकर भी अपनी पत्नी ककरला गुरु स्मृति उर्फ उमा के साथ जंगल में ही रहता था. उसकी पत्नी उमा भी नक्सल संगठन में उतनी ही सक्रिय है जितना कि सुधाकर. उमा दंडकारण्य क्षेत्र की राज्य समिति की सदस्य है. वो अपने पति के साथ मिलकर MoPoS (मोबाइल पॉलिटिकल स्कूल) चलाती थी.

छुट्टी से लौटने के बाद हुआ ढेर

सुधाकर बीते कुछ समय से छुट्टी पर था, लेकिन बसवाराजू के ढेर होने के बाद संगठन की ओर से लगातार आ रहे प्रेशर की वजह से वो वापस लौटकर कमान संभालने वाला था. लंबी छुट्टी के बाद वो नए सिरे से सक्रिय होकर छत्तीसगढ़ के बस्तर में आतंक फैलाने की तैयारी में था. सुधाकर को नक्सलियों की तरफ से कड़ी सुरक्षा में रखा गया था. जैसे ही नक्सलियों को लगा कि वे सुरक्षित स्थान पर पहुंच गए हैं, वैसे ही जवानों ने फायरिंग शुरू कर दी. अचानक हुए इस ऑपरेशन ने नक्सलियों को संभलने का मौका नहीं दिया, और 1 करोड़ का इनामी नक्सली सुधाकर इस मुठभेड़ में ढेर हो गया। ऐसे नक्सलियों के ‘माइंड’ और ‘टेक ब्रेन’ का अंत हुआ.

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