छत्तीसगढ़ की अनोखी परम्परा, यहां देवी-देवताओं की होती है परीक्षा, फेल होने पर मिलती है सजा

Chhattisgarh: एक अनोखी परपंरा धमतरी जिले के वनाचंल इलाके में भी दिखाई देती है. यहां गलती करने पर देवी-देवताओं को भी सजा मिलती है. ये सजा बकायदा न्यायधीश कहे जाने वाले देवताओं के मुखिया देते है. वहीं देवी-देवताओं को दैवीय न्यायालय की प्रक्रिया से भी गुजरना पड़ता है.
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धमतरी

अभिषेक मिश्रा (धमतरी)

Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ में कई ऐसी परंपराएं है, जो आदिम संस्कृति की पहचान बन गयी है. वहीं ऐसी ही एक अनोखी परपंरा धमतरी जिले के वनाचंल इलाके में भी दिखाई देती है. यहां गलती करने पर देवी-देवताओं को भी सजा मिलती है. ये सजा बकायदा न्यायधीश कहे जाने वाले देवताओं के मुखिया देते है. वहीं देवी-देवताओं को दैवीय न्यायालय की प्रक्रिया से भी गुजरना पड़ता है.

यहां देवी-देवताओं की होती है परीक्षा

छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के कुर्सीघाट बोराई में हर साल भादो माह के इस नियत तिथि पर भंगाराव माई का जात्रा होता है. जिसमें बस्तर और उड़ीसा सहित सिहावा क्षेत्र के देवी देवता शिरकत करते है. सदियों से चल आ रही है इस अनोखी प्रथा और न्याय के दरबार का साक्षी बनने हजारों की तादाद में लोग पहुंचे. वहीं कांकेर लोकसभा के सांसद भोजराज नाग, पूर्व विधायक श्रवण मरकाम सहित क्षेत्र के कई जनप्रतिनिधि इस जात्रा में शामिल हुए. जिसमें इलाके के सभी वर्ग और समुदाय के लोगों की आस्था जुड़ी है. कुवरपाट और डाकदार की अगुवाई मे यह जात्रा पुरे विधि विधान के साथ संपन्न होती है.

फेल होने पर मिलती है सजा

बताया जा रहा है कि कुर्सीघाट में सदियों पुराना भंगाराव माई का दरबार है. इसे देवी देवताओं के न्यायालय के रूप में जाना जाता है. ऐसा माना जाता है कि भंगाराव माई की मान्यता के बिना क्षेत्र में कोई भी देवी-देवता कार्य नहीं कर किया जा सकता है. वहीं इस विशेष न्यायालय स्थल पर महिलाओं का आना प्रतिबंधित है. मान्यता है कि आस्था व विश्वास के चलते जिन देवी देवताओं की लोग उपासना करते है लेकिन वही देवी-देवता अपने कर्तव्य का निर्वहन न करे तो उन्हे शिकायत के आधार पर भंगाराव माई सजा देते है. सुनवाई के दौरान देवी देवता एक कठघरे में खड़े होते है. यहां भंगाराव माई न्यायाधीश के रूप में विराजमान होते है.

माना जाता है कि सुनवाई के बाद यहां अपराधी को दंड और वादी को इंसाफ मिलता है. गांव में होने वाली किसी प्रकार की कष्ट,परेशानी को दूर न कर पाने की स्थिति में गांव में स्थापित देवी-देवताओं को ही दोष माना जाता है. भंगाराव माई की उपस्थिति में जातरा में पहुंचे देवी-देवताओं की एक-एक कर परीक्षा लेती है..इस दौरान जो देवी-देवता इस परीक्षा में फेल होते है उनके सामग्रियों को गड्ढे में फेक दिया जाता है,जिसे ग्रामीण कारागार कहते है. पूजा अर्चना के बाद देवी देवताओं पर लगने वाले आरोपों की गंभीरता से सुनवाई होती है.आरोपी पक्ष की ओर से दलील पेश करने सिरहा, पुजारी, गायता, माझी, पटेल सहित ग्राम के प्रमुख उपस्थित होते है. दोनों पक्षों की गंभीरता से सुनवाई के पश्चात आरोप सिद्ध होने पर फैसला सुनाया जाता है. मान्यता है कि दोषी पाए जाने पर इसी तरह से देवी-देवताओं को सजा दी जाती है.

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